राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया है। प्रदेश मानवाधिकार आयोग के प्रमुख जस्टिस प्रकाश टांटिया और सदस्य जस्टिस (रि) महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप पर रोक लगनी चाहिए। ऐसे रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं ‘रखैल के समान’ हैं।
जस्टिस महेश चंद्र शर्मा हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं। इससे पहले जस्टिस (रि.) शर्मा ने साल 2017 में मोर के सेक्स नहीं करने संबंधी बयान दिया था। जस्टिस (रि.) शर्मा ने कहा था कि मोर सेक्स नहीं करता है, वह ब्रह्मचारी रहता है, इसलिए राष्ट्रीय पक्षी है। लिव-इन रिलेशनशिप सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए जस्टिस (रि.) शर्मा ने कहा कि इस तरह जानवरों की तरह रहना संविधान में उनके (महिलाओं) लिए मौजूद अधिकारों और मानवाधिकारों के खिलाफ है।
जस्टिस टांटिया ने साल 2017 में लिव-इन रिलेशनशिप को ‘सोशल टेररिज्म’ कहा था। उन्होंने कहा था कि यह समाज को संक्रमित कर रहा है। उन्होंने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप में छोड़ी गई महिला की स्थिति ‘तलाकशुदा महिला से भी बदतर’ हो जाती है।
जस्टिस प्रकाश टांटिया के साथ संयुक्त आदेश में उन्होंने कहा कि इस तरह के संबंधों पर तत्काल रोक लगाए जाने की जरूरत है। यह केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि वह इस तरह के संबंधों को हतोत्साहित करें। खंडपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिख राज्य सरकार से इस मामले में कानून बनाने की अनुशंसा की। आयोग ने केन्द्र से भी इस संबंध में कानून बनाने का आग्रह किया है। आयोग के अनुसार, शादी में संबंधों को परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है।
घरेलू हिंसा कानून 2005 में इस तरह की कोई व्याख्या नहीं की गई है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का एक केस की उदाहरण दिया, जिसमें एक शादीशुदा पुरुष दूसरी महिला को रहने के लिए घर देता है। इसके अलावा उससे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करने के साथ ही नौकर की तरह काम करवाता है।
पीपुल्स यूनियन फॉर सोशल लिबर्टीज की राजस्थान की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने इस निर्णय के खिलाफ अपील करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि इस निर्णय की आलोचना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इसे राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।