राजस्थान हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की 32 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि इतना ज्यादा समय बीतने के बाद गर्भपात से उसके जीवन को “खतरा” हो सकता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पूरी तरह से विकसित भ्रूण को भी जीवन का अधिकार है। पीड़ित बालिका ने गर्भावस्था को समाप्त करने की इच्छा जताई थी “क्योंकि यह उसे अपने ऊपर हुए अत्याचारों के बारे में लगातार याद दिलाता रहेगी” और यह उसके “शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक अस्तित्व” के लिए अच्छा नहीं होगा।

अदालत के पास काफी देर से पहुंचा मामला

आदेश बुधवार को दिया गया था, लेकिन उसे शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया। इसमें न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि अदालत के पास आने में बच्ची ने देरी कर दी। इसकी वजह से “वह मुद्दा और अधिक गंभीर हो गया है।” अदालत को मेडिकल बोर्ड के बयान पर भरोसा करते हुए बालिका के अनुरोध को अस्वीकार करना पड़ा।

मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार जन्म के करीब है भ्रूण

अदालत ने कहा, “मेडिकल रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि भ्रूण का वजन बढ़ रहा है और वह अपने प्राकृतिक जन्म के करीब है। मस्तिष्क और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंग लगभग पूरी तरह विकसित हो चुके होते हैं और गर्भ के बाहर जीवन की तैयारी कर रहे होते हैं। भ्रूण वास्तव में दिल की धड़कन के साथ जीवन जीता है, इसलिए इस स्तर पर गर्भावस्था को समाप्त करना उचित और संभव नहीं है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पूरी तरह से विकसित भ्रूण को भी इस दुनिया में प्रवेश करने और बिना किसी असामान्यता के स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है।”

मामले में बच्ची के पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) की कई उपधाराओं के साथ-साथ POCSO अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, पीड़िता के वकील ने कहा कि लड़की की मां बौद्धिक रूप से कमजोर थी और पिता पर खुद उसके साथ बलात्कार करने का आरोप था। वकील ने कहा, “उसने अपने चाचा को बताया कि उसके पिता उसके साथ क्या गलत काम करते थे और वह उसे धमकी भी देते थे। फैसले के दिन तक, वह 31 सप्ताह और 2 दिन की गर्भवती थी।”

17 जनवरी को एक मेडिकल बोर्ड द्वारा बच्ची की जांच की गई। चार डॉक्टरों के बोर्ड के अनुसार, उसकी उम्र – 11 वर्ष – और 34.2 किलोग्राम वजन और उसके “कमजोर लिवर फंक्शन टेस्ट” को देखते हुए, यह गर्भावस्था के उच्च जोखिम वाला मामला है।”