राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री निकाय प्रमुख के चुनाव के मुद्दे एक दूसरे के आमने सामने थे। राजस्थान सरकार की तरफ से बिना चुनाव लड़े निकाय प्रमुख बनाने का फैसला लिया गया था। उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने इस बात का विरोध किया था। इसके बाद सरकार ने अपना फैसले में बदलाव किया।
बदलाव के तहत पहली प्राथमिकता के तहत निर्वाचित पार्षद ही निकाय प्रमुख बनने के लिए चुनाव लड़ेगा। हालांकि, बाहर से भी निकाय प्रमुख बनाने का रास्ता पूरी तरह से बंद नहीं किया गया है। सरकार के आदेश के अनुसार विशेष परिस्थितियों में एससी, एसटी, ओबीसी और महिला वर्ग के आरक्षण में किसी पार्टी विशेष के सदस्य अगर नहीं जीत पाते हैं तो ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ाया जा सकेगा जो पार्षद नहीं होगा।
स्थानीय निकाय विभाग ने इस संबंध में नई अधिसूचना जारी नहीं करने का फैसला किया है। सरकार ने नए बदलाव को सैद्धांतिक बताया है और कहा कि है 16 अक्टूबर की पिछली अधिसूचना ही प्रभावी मानी जाएगी। इस संबंध में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा कि बिना चुनाव लड़े निकाय प्रमुख बनाने का फैसला वापस हुआ है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि पूर्ववर्ती फैसला लोकतंत्र के विरुद्ध था और हमें खुशी है कि जो मुद्दा हमारी तरफ से उठाया गया था उसे मान्यता मिली।
वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बदलाव पर कहा कि बाहर का व्यक्ति यदि निकाय प्रमुख बनेगा तो पार्षद इस बात को कैसे सहन करेंगे? सीएम ने कहा कि इस मामले में गैरजरूरी भ्रम फैलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संबंधित विभाग के मंत्री की तरफ से मुझे बताया गया कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही गैर पार्षद को निकाय प्रमुख का चुनाव लड़वाया जा सकता है। सभी दलों के प्रदेशाध्यक्षों को ही टिकट को लेकर फैसला करना है।
इस संबंध में स्थानीय निकाय मंत्री शांति धालीवाल ने कहा कि बाहर से लोगों को निकाय प्रमुख बनाने के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है। निकाय प्रमुख का पुनः अप्रत्यक्ष चुनाव का फैसला किया गया है। इससे खरीद-फरोख्त पर लगाम लगेगी। मंत्री धालीवाल ने विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया पर भी निशाना साधते हुए इस मामले में जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया।

