हिमाचल में बारिश व बाढ़ के तांडव ने भले ही प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों को आठ हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाया है और जनजीवन को बुरी तरह से तहस नहस किया है, मगर कुदरत के इस तांडव का सबसे ज्यादा नुकसान नेशनल हाइवे अथारिटी आफ इंडिया यानि एनएचएआइ को हुआ है। मंडी से लेकर मनाली तक तो तबाही की तस्वीर कुदरत ने खींच दी है, उसके निशान वर्षों तक कायम रहेंगे। यूं बारिश के इस तांडव ने परवाणु से शिमला, पठानकोट से मंडी, मटौर से शिमला जैसे फोरलेन को भी खूब निशाना बनाया है और अभी तक हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। इसमें भी महीनों लग जाएंगे।
मंडी से मनाली तक जो फोरलेन कीरतपुर मनाली का हिस्सा है, इसकी तबाही ने इतना तो तय कर दिया है कि भविष्य में एनएचएआइ को पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण के मापदंड बदलने होंगे। मंडी से मनाली तक की बात करें तो मंडी में जो पठानकोट मंडी फोरलेन आकर मिलना है, वहां पर की गई अलाइनमेंट व्यास नदी की बाढ़ में कई फुट तक डूब गई है।
अभी यहां निर्माण होना है, मगर कुदरत ने पहले ही अपनी सीमा रेखा तय करके एनएचएआइ को गलती सुधारने का मौका दे दिया है। अब यह उस पर निर्भर है कि वह इस चेतावनी को कैसे लेता है। मंडी मनाली मार्ग पर जहां एनएचएआइ ने लारजी विद्युत परियोजना के बिजलीघर के पास जाने के लिए ऊपरिगामी और वापसी के लिए नदी के साथ सड़क बनाई है वह सारी पानी में डूब कर बर्बाद हो गई।
कुल्लू से लेकर मनाली तक सड़क का नामोनिशान मिट गया। अब नदी किनारे अस्थायी व्यवस्था करके कहीं-कहीं मार्ग को खोला जा रहा है ताकि लेह तक की आपूर्ति को किसी तरह बहाल किया जा सके। सवाल यह खड़ा हुआ है कि इस सारे मार्ग की डीपीआर बनाते हुए क्या एनएचएआइ ने स्थानीय लोगों को भी विश्वास में लिया, जिन्होंने नदी के इस तरह के तांडव को पहले भी देखा है।
क्या प्रदेश सरकार द्वारा जो नदी से 25 मीटर दूरी पर निर्माण करने की नीति व नियम है, उसका पालन किया? मौके पर देख कर लगता है नहीं किया गया। यदि विश्वास में लिया गया होता तो एचएफएल यानी उच्चतम बाढ़ सीमा के भीतर निर्माण नहीं होता। इस बारे में हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह का कहना है कि हिमाचल में सड़कें यहां की भौगोलिक व भूर्गीय परिस्थिति के अनुसार बननी चाहिए।
1905 में आए भूकंप से यह पूरा क्षेत्र हिला हुआ है, पहाड़ियों में टूटन है। यहां के पहाड़ नाजुक हैं, नेशनल हाइवे अथारिटी आफ इंडिया (एनएचएआइ) ने नदियों पर कब्जा करके मलबा डालकर सड़कें बना दी। यह नीति बदलनी होगी। मंडी से कुल्लू के बीच 90 डिग्री कोण से पहाड़ काटे जा रहे हैं जबकि 45 डिग्री से ज्यादा इनको नहीं काटा जा सकता है। हिमाचल में फोरलेन की जरूरत ही नहीं है, यहां तो ‘कट एंड फिल’ की नीति से यह सड़कें तैयार होनी चाहिए। मलबे को सही तरीके से खपाया जाना चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरी है कि सड़कों के साथ साथ जल निकासी का प्रावधान पहले हो और मजबूत हो।
हिमाचल प्रदेश भूमि अधिग्रहण मंच के अध्यक्ष बीआर कौंडल का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र में चौड़ी नहीं ज्यादा सड़कें बनाई जानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक क्षेत्रों तक पर्यटकों की पहुंच हो। चौड़ी सड़कों से निकलने वाला मलबा तबाही लाता है। अभी जो तबाही हुई है एनएचएआइ उसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है।
उनका कहना है कि जब भी एनएचएआइ को इतिहास पढ़ना चाहिए, कालका शिमला रेल लाइन को देखना चाहिए जो एक ग्रामीण चरवाहे भलखू राम द्वारा की गई अलाइनमेंट पर बनी थी। यहां तो किसी को विश्वास में लिया ही नहीं जाता, पता ही तब चलता है जब निर्माण शुरू हो जाता है।