रेल मंत्री सुरेश प्रभु का दूसरा बजट भी ठंडा ही रहा। रेल बजट 2016 में चौंकाने वाली कोई बात नहीं। न ही उम्‍मीद जगाने वाला कोई ठोस एलान। एक साल के भीतर रेल का सफर कितना आसान होगा, इसका कोई संकेत नहीं दिखा। मुसाफिरों की दो सबसे जटिल समस्‍याओं (कन्‍फर्म टिकट नहीं मिलना और ट्रेनों की लेटलतीफी) के समाधान के लिए उन्‍होंने 2020 तक का वक्‍त मांग लिया। यानी यह जता दिया कि 2019 के चुनाव में भाजपा को ही जिताएं।

किराया नहीं बढ़ाने का एलान नहीं होगा, यह पहले से तय था। पिछली बार भी उन्‍होंने किराया जस का तस रखा था। पर पिछले बजट से अब तक कम से कम सात अलग-अलग तरीकों से मुसाफिरों की जेब से पैसे निकलवा लिए। और, बजट में किराया नहीं बढ़ाने की ‘वाहवाही’ भी लूट ली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने दिखाने की नीति को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी बखूबी आगे बढ़ाया। मोदी बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रहे हैं, तो प्रभु ने तेजस ट्रेन का शिगूफा छोड़ा। लेकिन ऐसी कितनी ट्रेनें चलाई जाएंगी और इसके लिए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर कैसे मजबूत किया जाएगा? यह नहीं बताया। खस्‍ताहाल पटरयिों पर तेज रफ्तार ट्रेनें कहां से दौड़ेंगी?

इस बार भी नई ट्रेनों का एलान नहीं कर प्रभु ‘भेदभाव’ करने के आरोपों से तत्‍काल बच गए। जो चार तरह की ट्रेनें (हमसफर, उदय, अंत्‍योदय और तेजस) चलाने की उन्‍होंने घोषणा की, हो सकता है उसका रूट तय करने के लिए बाद में लॉबीइंग हो। हो सकता है, चुनाव वाले राज्‍यों में ये ट्रेनें चलाने के मकसद से अभी रूट का एलान नहीं किया गया हो।