सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए साल 2024 काफी खास रहा। एक ऐसा साल जिसने उन्हें फिर सियासी रूप से मजबूत होने का मौका दिया, एक ऐसा साल जिसने उन्हें फिर कांग्रेस की कमान अपने हाथों में लेने का मौका दिया, एक साल साल जिसने उन्हें पीएम मोदी के सामने फिर सबसे बड़े चेहरे के रूप में स्थापित होने का मौका दिया। अब मौके कई मिले, अवसर भी दरवाजों पर दिखे, लेकिन राहुल गांधी के लिए साल 2024 कभी खुशी कभी गम वाला रहा।
लोकसभा चुनाव में राहुल का बदला-बदला मिजाज
राहुल गांधी के लिए साल 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारियों से शुरू हुआ। इस चुनाव को कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसा माना गया, कारण यह रहा कि इससे पहले दोनों ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस काफी खराब प्रदर्शन के साथ बीजेपी से बहुत पीछे छूट चुकी थी। इस बार के चुनाव में तो क्योंकि पीएम मोदी ने 400 पार का नारा दे रखा था, माना जा रहा था कि नतीजे इसके थोड़े भी करीब रहे तो यह कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए सियासी रूप से The End साबित हो सकता है। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी ने अलग ही रणनीति पर काम किया। वे चाहते तो फिर सिर्फ पीएम मोदी पर हमला कर सकते थे, अगर वे चाहते तो फिर बस अडानी-अंबानी मुद्दे के जरिए ही हमला करते रहते।
जातिगत जनगणना का कार्ड कर गया काम
लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया, इस बार वे बीजेपी के ट्रैप में नहीं फंसे, इस बार उन्होंने पूरे लोकसभा चुनाव में सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर फोकस जमाया। उन्होंने उस वोटबैंक को अपने पाले में करने की कोशिश की जो पिछले 10 सालों से बीजेपी का परंपारगत वोटर जैसा बन चुका था। यहां बात हो रही है कि पिछड़े समाज के वोट की जिनकी भूमिका देश के कई राज्यों में निर्णायक मानी जाती है। इसी वजह से शायद ही कोई ऐसी रैली रही होगी जहां राहुल गांधी ने संविधान बचाओ और जातिगत जनगणना का जिक्र ना किया हो। उस समय तक किसी ने नहीं माना था कि यह मुद्दा इतना बड़ा बन सकता है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा, राहुल गांधी का यह मुद्दा बीजेपी को डिफेंसिव करता गया।
राहुल की मेहनत और कांग्रेस की मॉरल विक्ट्री
इसी का नतीजा रहा कि जब चुनावी नतीजे आए, सभी हैरान थे। बीजेपी जो 370 सीटें जीतने की बात कर रही थी, उसका आंकड़ा 240 पर सिमट गया, जो एनडीए 400 पार के सपने देख रही थी, वो सिर्फ 292 सीटों पर रह गई। दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपनी स्थिति काफी हद तक सुधारते हुए 99 सीटें जीत लीं, आंकड़ा 100 ना करने का दुख रहा, लेकिन इस प्रदर्शन में भी राहुल गांधी को मॉरल विक्ट्री का स्वाद जरूर मिल गया। इस एक प्रदर्शन ने इंडिया गठबंधन को एक मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित कर दिया और उसी विपक्ष में राहुल गांधी का कद काफी ज्यादा बढ़ गया।
कैसा बीता PM मोदी के लिए साल 2024
नेता प्रतिपक्ष राहुल और सरकार को कई बार झुका दिया
राहुल गांधी के लिए उन नतीजों के मायने इसलिए भी अहम रहे क्योंकि उसी वजह से वे नेता प्रतिपक्ष बन गए। जो पद 10 सालों तक कांग्रेस को मिल नहीं पा रहा था, उस एक प्रदर्शन के दम पर राहुल गांधी ने उसे हासिल किया। उस पद के मिलते ही मोदी सरकार की चुनौतियां कितनी ज्यादा बढ़ गईं, यह सभी ने देखा। पहले वक्फ बोर्ड बिल का पारित नहीं हो पाला, लेटरल एंट्री के विवाद पर कदम पीछे खींचना, ब्रॉडकास्ट बिल को लेकर विरोध का सामना करना, राहुल गांधी के हस्तक्षेप ने सरकार को कई मुद्दों पर नानी याद दिलवा दी।
हरियाणा चुनाव और फिर राहुल गांधी पर उठे सवाल
यह 2024 का वो दौर था जब बीजेपी सिर्फ सियासी रूप से कमजोर होती जा रही थी, जब लेख छप रहे थे कि पीएम मोदी का मिजाज गठबंधन राजनीति की वजह से बदल चुका है। इन खबरों का आना ही राहुल गांधी का कद बढ़ा रहा था, लेकिन फिर विधानसभा चुनावों का ऐलान हुआ। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए, नतीजे आते ही राहुल गांधी पर, उनकी रणनीति पर, उनके राजनीतिक कौशल पर गंभीर सवाल खड़े हो गए। हरियाणा चुनाव में सभी सियासी पंडितों का आकलन गलत निकल गया, जो बीजेपी हारती दिख रही थी, उसने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए फिर जीत दर्ज की। जो कांग्रेस सरकार बनाने की दहलीज पर मानी जा रही थी, वो फिर विपक्ष में बैठने को मजबूर हो गई।
हरियाणा की हार ने कांग्रेस को अहंकारी दिखा दिया, राहुल गांधी को अति आत्मविश्वास का शिकार बताया गया। ऐसा इसलिए रहा क्योंकि तमाम प्रयासों के बाद भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं हो पाया। नतीजा यह रहा कि कई सीटों पर जहां आम आदमी पार्टी को ज्यादा वोट मिल गए, वहां बीजेपी ने कांग्रेस से सीटें छीन लीं। इसके ऊपर एक आंकड़ा यह भी रहा कि राहुल गांधी ने खुद हरियाणा चुनाव के दौरान 12 विधानसभा सीटों पर प्रचार किया, लेकिन पार्टी खाते में सिर्फ 5 सीटें ही जा पाईं।
महाराष्ट्र नतीजों ने इंडिया गठबंधन में राहुल का कद घटाया
जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन वहां कांग्रेस का योगदान सिर्फ 6 सीटों का रहा, ऐसे में राहुल गांधी लिए तो वहां से भी निराशाजनक खबर ही आई। यानी कि लोकसभा चुनाव की लीड एक झटके में दो राज्यों ने छीन ली। उन नतीजों के बाद चर्चा शुरू हो चुकी थी, क्या राहुल गांधी सही मायनों में इंडिया गठबंधन को लीड कर भी सकते हैं? अब तब तक यह सिर्फ एक सवाल था, लेकिन फिर आ गए महाराष्ट्र के चुनाव और सवाल विश्वास में बदल गया- राहुल गांधी को हटा दो। यह बयान इंडिया गठबंधन के अंदर से ही आ रहे थे, शब्द ऐसे नहीं थे, लेकिन भावना बिल्कुल वही। ममता बनर्जी ने तो सामने से पेशकश कर दी- मैं गठबंधन को लीड कर सकती हूं।
यह बयान ही बताने के लिए काफी रहा कि राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में जितने चमक गए थे, साल का अंत आते-आते वे फिर कई पायदान नीचे चले गए। अब फिर उन्हें खुद को साबित करना पड़ेगा, अब फिर उन्हें इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को सम्मान वापस दिलवाना होगा। यानी कि राहुल गांधी के लिए साल 2024 में कभी खुशी कभी गम रहा। वैसे इस समय राहुल गांधी की अलग ही सियासत चल रही है, मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर विवाद है, राहुल का इस पर क्या स्टैंड है, अगर जानना है तो यहां क्लिक करें