Punjab Politics:पंजाब में दो लाख से ज्यादा यादव समाज के लोग है, और 1857 के विद्रोह के बाद से इनमें से ज्यादातर लोग पटियाला और जींद रियासत में बस गए हैं। पटियाला और संगरूर जिलों में लगभग 30 गावों में 35 से 40 हजार अहीर यादव आते हैं। ये लोग खुद को गर्व के साथ ‘पंजाब के यादव’ बताते हैं।
यादव समाज के इस गौरव के पीछे एक लंबा संघर्ष छिपा हुआ है। पंजाब में यादव समुदाय को केंद्र सरकार की पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी में रखा गया है, न कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में। पटियाला के दुगल कलां गाँव के 72 वर्षीय जरनैल सिंह यादव इसको लेकर कहते हैं कि इसका मतलब है कि पंजाब में यादव केवल राज्य स्तर पर ही आरक्षण के हकदार हैं, राज्य सरकार की नौकरियों, दाखिलों और योजनाओं के लिए हकदार है। वे यूपीएससी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों या केंद्र सरकार की नौकरियों में केंद्रीय ओबीसी कोटे का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
सिख परंपराओं वाली जीवनशैली
साठ साल के मिश्रा सिंह यादव पत्नी रानी कौर के साथ पंजाब के संगरूर ज़िले के निहालगढ़ गाँव में रहते हैं। हरे-भरे खेतों के बीच बसे उनके घर में अपना बायोगैस प्लांट है, और सारा खाना इसी गैस से बनता है, जैसा कि उनकी 80 साल की मां मुख्तियार गर्व से बताती हैं। परिवार का उपनाम भले ही यादव हो, लेकिन उनकी जीवनशैली सिख परंपराओं में गहराई से निहित है। मिश्रा पगड़ी पहनते हैं जबकि उनकी पत्नी अमृतधारी सिख हैं।
भगवान कृष्ण के अनुयायी लेकिन जाते हैं मंदिर
मिश्रा सिंह यादव ने कहा है कि उनके पूर्वज 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यहां बस गए थे और अंततः हम सिखों के रूप में पले-बढ़े। हम निस्संदेह भगवान कृष्ण के अनुयायी हैं लेकिन हम गुरुद्वारों में भी जाते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं का पालन करते हैं, और हमारे नाम से भी पता चलता है कि हम पंजाब से ही हैं और पंजाब से भी।
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लगभग 10 एकड़ कृषि भूमि के मालिक मिश्रा निहालगढ़ गांव की पहचान हैं जहां यादवों की अच्छी खासी आबादी है। वे बताते हैं कि हमारे गांव के लगभग 1,000 मतदाताओं में से लगभग 700 यादव हैं जबकि उनका बेटा मनप्रीत सिंह यादव खेती में उनकी मदद करता है। वे सभी गुरुद्वारे जाते हैं, जो पंजाब की सिख जीवनशैली में उनके समावेश का प्रतीक है।
कब पंजाब आए यादव?
पंजाब यादव महासभा के महासचिव विजय यादव ने कहा कि जब 1857 का विद्रोह देश के कई हिस्सों में उलटा पड़ गया, तो कई यादव इस क्षेत्र में आकर रहने लगे और अंततः उनमें से कुछ ने सिख धर्म अपना लिया था। निहालगढ़ से कुछ किलोमीटर दूर जरनैल सिंह यादव अपने तीन बेटों, उनकी पत्नियों और पोते-पोतियों के साथ लगभग 8 एकड़ खेत में रहते हैं। जरनैल सिंह यादव कहते हैं कि हमारे गांव में कोई मंदिर नहीं है लेकिन हर साल हम एक आम जगह पर जन्माष्टमी मनाते हैं, जहां आस-पास के गांवों के यादव भी इकट्ठा होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हमारा परिवार गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं का पालन करता है और रोज़ाना गुरुद्वारे भी जाता है।
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पारंपरिक तौर पर सिंह लगाकर करते हैं गौरवान्वित
पगड़ी पहने, लहराती दाढ़ी, पंजाबी नाम और अपने नाम के साथ पारंपरिक “सिंह” लगाकर ये लोग आत्मसात करने के सिद्धांत को साकार करते हैं। जरनैल सिंह यादव कहते हैं कि सिर्फ़ हमारा उपनाम ही बताता है कि हम यादव हैं लेकिन हमारे पूर्वज जो यहां आकर बसे थे, उन्होंने जैसा देश वैसा भेष के सिद्धांत का पालन किया।
संगरूर में कुलेरियन और पटियाला में देवीगढ़, भूतगढ़ और हरियाउ कलां जैसे गांव इन अहीर यादवों के घर हैं जबकि सीमा पार, हरियाणा के कैथल जिले के चीका और खरौदी में भी पगड़ी पहनने वाले यादव हैं। विजय यादव कहते हैं कि ज्यादातर, संगरूर और पटियाला के गांवों में रहने वाले लोग किसान हैं और उनमें से कई कंबाइन, हार्वेस्टर का उपयोग करने में कुशल हैं और वे पैसे कमाने के लिए कटाई के काम के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में ले जाते हैं।
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ग्रामीणों ने इन मुद्दों पर क्या कहा?
ग्रामीणों का कहना है कि यादवों को ओबीसी श्रेणी से बाहर रखा जाना पंजाब के सभी यादवों पर लागू होता है। निहालगढ़ के मनप्रीत सिंह यादव कहते हैं कि पंजाब के सभी यादव निवासियों के लिए यही स्थिति है; चाहे वे दशकों से रह रहे हों या दूसरे राज्यों से आकर बसे कुछ सालों से हैं। पड़ोसी राज्यों से स्थिति बिल्कुल अलग है।\
मिश्रा सिंह कहते हैं कि हालांकि, कई अन्य राज्यों में स्थिति अलग है। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यादवों को राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर ओबीसी के रूप में मान्यता प्राप्त है। परिणामस्वरूप, वे राज्य के लाभों के अलावा, केंद्र सरकार की नौकरियों और संस्थानों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के भी पात्र हैं। हम लंबे समय से अपने ओबीसी दर्जे के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक यह मांग पूरी नहीं हुई है।
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