पंजाब के कई जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। पंंजाब सरकार का दावा है कि उसकी तरफ से बाढ़ प्रभावित इलाके के लोगों को राहत सामग्री और पशुओं के लिए नियमित चारा बांंटा जा रहा है लेकिन कई क्षेत्रों से कथित “राहत सामग्री के वितरण में कुप्रबंधन और ब्लैक मार्केटिंग की शिकायतें सामने आई हैं।
लालवाला गांव के सरपंच अवतार सिंह ने आरोप लगाया कि अजनाला में राहत सामग्री वितरण में कुप्रबंधन हो रहा है। जरूरतमंद लोगों को यह नहीं मिल पा रही है। तीन दिन हो गए हैं और कोई भी प्रशासनिक अधिकारी लालवाला गांंव में नहीं आया है। इसकी वजह ज्यादा जलभराव हो सकता है।
उन्होंने बताया कि गांव के लोगों को मवेशियों के लिए अभी तक चारा नहीं मिला है। अभी तक सिर्फ चार बंडल आए हैं। एनडीआरएफ की एक नाव राशन सामग्री लेकर आई थी, लेकिन हमें अपने मवेशियों को भी चारा खिलाना है। हम आज अजनाला गए और गांवों में अस्थायी झोपड़ियों के लिए पॉलीथीन पेपर लेकर आए। ये एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराए गए थे।
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अवतार सिंह ने बताया कि उनके गांव मे अभी तक सिर्फ दो से चार इंच पानी घटना है, इसलिए अभी तक स्थिति कठिन बनी हुई है। हमें समय पर उचित सहायता नहीं मिल रही है।
किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने लगाया कालाबाजारी का आरोप
किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सरवन सिंह पंढेर ने सामान की कीमतों में भारी इजाफे के बीच “कालाबाजारी” का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अमृतसर में जरूरी सामान की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। चारे के एक पैकेट की कीमत 80 रुपये बढ़ गई है। 550 रुपये वाले 25 किलो के चारे के पैकेट की कीमत अब 630 रुपये हो गई है।
सरवन सिंह पंढेर ने यह भी दावा किया कि बचाव कार्यों के लिए जरूरी नावों की कीमत दोगुनी हो गई है। उन्होंने कहा कि एक लकड़ी की नाव, जो 30,000 रुपये में बिकती थी, अब 60,000 रुपये की हो गई है। चंडीगढ़ और रोपड़ में एक फाइबर-रबर नाव की कीमत 30,000-40,000 रुपये से बढ़कर 80,000 रुपये हो गई है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर तो और भी ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा रही है, जहां एक नाव की कीमत 125,000 रुपये से बढ़कर लगभग 250,000 रुपये हो गई है। जनरेटर और अन्य आपूर्ति की कीमतों में भी भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है।
गुरुदासपुर के अधिकारियों का क्या है कहना?
गुरदासपुर जिले के जनसंपर्क अधिकारी इंदरजीत सिंह हरपूरा ने कहा, “पूरे राज्य से ट्रक भरकर राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों के लिए आने लगी है। ज्यादातर दानदाता डेरा बाबा नानक पर ध्यान दे रहे हैं। वे दूर-दराज से आ रहे हैं और पंजाब की भौगोलिक स्थिति को ठीक से नहीं जानते। इसी वजह से वे आमतौर पर डेरा बाबा नानक रोड के गांवों में ही राहत सामग्री बाँटकर वापस चले जाते हैं। नतीजा यह है कि कलानौर क्षेत्र के सीमा से लगे गांव, जो मुख्य सड़कों से दूर हैं, वहां बहुत कम राहत सामग्री पहुंच पा रही है। कुछ स्थानीय स्वयंसेवक इन जगहों पर पहुंचे हैं, लेकिन मुख्य सड़क वाले गांवों की तुलना में उनकी संख्या कम है।”
उन्होंने बताया कि पंजाब से बाहर से आने वाले दानदाता बाढ़ प्रभावित इलाकों में अक्सर पूछते हैं कि राहत सामग्री कहांं बांटी जाए। इसे देखते हुए गुरदासपुर जिला प्रशासन ने जिले में राहत सामग्री के बंटवारे के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए हैं। इससे सेवा संस्थाओं को सही जानकारी मिलेगी और राहत उन लोगों तक पहुंच सकेगी जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
गांव के लोगों का क्या है कहना?
गांव वालों के मुताबिक, कई गैर-सरकारी संगठन और कई बार मालवा और माजा इलाकों के वे गांव, जो बाढ़ से प्रभावित नहीं हैं, बड़ी मात्रा में राहत सामग्री भेज रहे हैं। लेकिन राहत कार्यों में “अव्यवस्था और शोषण” की वजह से दिक्कत आ रही हैं। लोगों का कहना है कि समाजसेवी और स्वयंसेवक तो सक्रिय हैं, लेकिन कुछ ठग और चोर सड़क किनारे से सामान हथिया कर इसका गलत फायदा उठा रहे हैं।
यंग प्रोग्रेसिव फ़ार्मर्स प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष गुरबिंदर सिंह बाजवा ने कहा, “हमने लोगों की पहल से कई काम करने की कोशिश की, जैसे कि खडूर साहिब, डेरा बाबा नानक, कलानौर और रामदास जैसे ब्लॉकों में पशु चिकित्सकों के साथ मिलकर विभागीय रिकॉर्ड के आधार पर असली पशुपालकों तक मदद पहुंचाना। अमृतसर प्रशासन भी इसी तरह का कदम उठा सकता है।”
डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष रतन सिंह रंधावा ने कहा, “पुलिस ज्यादातर ट्रैफिक नियंत्रण पर ध्यान देती है, जबकि कानून-व्यवस्था की ढिलाई से राहत सामग्री ले जाने वालों को परेशान किया जाता है। पुलिस के लिए यह पहचानना मुश्किल होता है कि कौन लोग स्थिति का फायदा उठाकर राहत सामग्री जमा कर रहे हैं। कई बार राहत सामग्री गलत प्रबंधन की वजह से फेंक दी जाती है या बंट ही नहीं पाती। अगर अनुशासन बेहतर हो, तो काम कहीं ज्यादा असरदार हो सकता है।”
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