सफेद दाग या सोरायसिस बीमारी से पीड़ित लोगों को किसी खास व्यक्ति या समाज का तो दूर घर परिवार का भी प्यार नसीब नहीं होता। और तो और ऐसे लोगों को इस बीमारी के कारण ही पति या पत्नी से या फिर भाई-बहनों से उपेक्षा मिलती है। कई बार परिवार टूटने तक की नौबत आ जाती है। एक सर्वेक्षण में पता चला है कि सोरायसिस के 43 फीसद मरीज महसूस करते हैं कि उनकी स्थिति (बीमारी) ने उनके रिश्तों को प्रभावित किया है। इस बारे में डॉक्टरों का कहना है कि चिकित्सक इलाज कर सकते हैं पर मरीज को इसके साथ ही ज्यादा प्यार व सहयोग की जरूरत होती है। चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे में इस वैलेंटाइन डे पर यह समझने की कोशिश करें कि सोरायसिस व सफेद दाग के मरीजों को दूसरे लोगों के साथ अपने संबंधों में किस चुनौती का सामना करना पड़ता है। हाल ही की घटना है जब कि गणेश (मरीज के अनुरोध पर नाम बदला गया)डॉक्टर के क्लीनिक में फूट-फूट कर रो पड़ा था। उसने डॉक्टर को बताया कि उसकी पत्नी उसके अपने ही नवजात बच्चे को गोद में नहीं लेने देती। दरअसल, गणेश को सोरायसिस नामक बीमारी है। 35 साल के गणेश को इस बीमारी के कारण अपने ही परिवार में काफी भेदभाव झेलना पड़ता है।
क्या है यह बीमारी व इसके लक्षण: सोरायसिस एक ऑटो-इम्यून स्थिति है, जिसमें त्वचा की नई कोशिकाएं सामान्य की अपेक्षा काफी तेज रफ्तार से बनने लगती हैं। हमारा शरीर 10 से 30 दिनों में त्वचा में नई कोशिकाएं विकसित करता हैं जो पुरानी कोशिकाओं की जगह लेती हैं। सोरायसिस रोग में त्वचा में नई कोशिकाएं तीन से चार दिनों में काफी तेजी से बनती हैं और शरीर को पुरानी कोशिकाएं छोड़ने का समय नहीं मिल पाता। इससे त्वचा पर पपड़िया जमने लगती हैं। शरीर की त्वचा शुष्क और परतदार हो जाती है। उसमें खुजली होने लगती है और लाल धब्बे हो जाते हैं। गणेश की तरह दुनिया भर में लगभग ढाई करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें यह बीमारी है।
क्या कहते हैं चिकित्सक: एम्स के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ केके वर्मा ने कहा कि सोरायसिस व सफेद दाग जैसी त्वचा संबंधी बीमारियों के पीड़ित मरीजों की न तो समाज में स्वीकार्यता है, न ही कई बार परिवार समझ पाता है। उन्होंने बताया कि कई मरीज ऐसे आते हैं जिनकी बीमारी छुपा कर शादी तो कर दी जाती है बाद में परिजन सास-ससुर या पति उसे स्वीकारने की बजाय दिक्कतें पैदा कर देते हैं। परिवार टूटने के कगार पर पहुंच जाता है। कुछ मामलों में तो खास कर गावों में महिला क ो उसके ससुराल वाले छोड़ देते हैं।
गुरग्राम के आर्टेमिस अस्पताल में डर्मेटोलॉजी और कॉस्मेटोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ मोनिका बंबरू ने बताया कि मैं सोरायसिस के ऐसे कई मरीजों के संपर्क में आई हूं जिन्हें बड़े भावनात्मक आघात का सामना करना पड़ा है। हमने देखा कि मरीज इस मुश्किल स्थिति का सामना करने के लिए अपने आपको समाज से काट लेते हैं। मरीजों की जिंदगी में मौजूद लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे सोरायसिस से ग्रस्त रोगी का पर्याप्त ख्याल रखें। मरीजों के प्रति सहानुभूति और लगाव रखकर उनके तेजी से बदलते मूड को काफी हद तक ठीक रखा जा सकता है।
निजी जिंदगी पर गहरा असर: करीब 30 फीसद मरीजों ने बताया कि बीमारी ने उनके पहले के रिश्तों या वर्तमान रिश्ते को बुरी तरह प्रभावित किया है। 52 फीसद मरीजों ने कहा कि इस बीमारी के कारण निजी हिचक या साथी की उपेक्षा की वजह वे अपना वैवाहिक जीवन नहीं जी पाते। जबकि 51 फीसद मरीजों ने कहा कि वे कोई आत्मीय रिश्ता बनाने से ही परहेज करते हैं, जबकि 42 फीसद मरीजों ने कहा कि वे यह सोच ही नहीं पाते कि कोई उनकी त्वचा को छू सकता है। 17 फीसद मरीजों ने कहा कि उनके जीवन साथी बेहद बुरा बर्ताव करते हैं। यहां तक कि अगर मरीज इस बारे में खुद डॉक्टर से बात करना चाहे तो वे बिफर पड़ते हैं।
ग्लोबल क्लियर अबाउट सोरायसिस नाम से किए गए सर्वे के मुताबिक 66 फीसद भारतीय मरीजों का कहना है कि उन्हें अपनी त्वचा के कारण भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता है। दुनिया के 31 देशों के 8,338 मरीजों में किए सर्वेक्षण में पता चला कि सोरायसिस के मरीजों से हाथ मिलाने में लोगों की झिझक भी सामने आई है।
क्या करते हैं जुझारू मरीज: मुंबई की आइटी पेशेवर और सोरायसिस की मरीज सत्या मिश्र का मानना है कि इस बीमारी के बारे में जानने और समझने में प्रारंभिक तौर पर लोगों की दिलचस्पी न होना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने पहले तो सोरायसिस रोग होने के कारण लोगों को बताने की कोशिश की, लेकिन उन्हें जल्द ही यह समझ में आ गया कि लोगों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।
रिंकी उपाध्याय (28 वर्ष) लंबे समय से सोरायसिस रोग से पीड़ित हैं। अपनी स्थिति से हुए अनुभव को देखकर वह महसूस करती हैं कि सोरायसिस के मरीजों का जिंदगी के प्रति सकारात्मक रवैया होना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही प्रोत्साहन और प्रियजनों से मिलने वाला सहयोग इस रोग के इलाज के दौर को उनके लिए आसान बना देता है। वे इस लिहाज से भाग्यशाली रहीं कि उनके परिवार और उनके प्रियजनों ने उसे रोग के इलाज के दौरान पूरी तरह से अपनापन और सर्मथन मुहैया कराया।
डॉ केके वर्मा व डॉ बंबरू ने कहा कि इस वैंलेटाइन डे पर आप सोरायसिस से ग्रस्त अपने प्रियजनों को खास अहसास कराने के लिए थोड़ा सा अतिरिक्त प्रयास कीजिए। उन्हें इस हालत में बेहतरीन इलाज के लिए त्वचा रोग विशेषज्ञ (डर्मेटोलॉजिस्ट)के पास ले जाना बहुत जरूरी होता है, ताकि इस तरह के मरीजों की बेहतर उपचार योजना तैयार किया जा सके, जो उनकी स्थिति से पूरी तरह मेल खाता हो।

