2021 में प्रयागराज में अधिकारियों द्वारा घरों को गिराए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने “अमानवीय और अवैध” करार दिया। इस फैसले के एक दिन बाद, विजय कुमार सिंह (46), जिनका घर भी ध्वस्त हो गया था, राहत महसूस कर रहे हैं। अदालत ने यह माना कि अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया, और यह उनकी लंबी लड़ाई की पुष्टि थी। प्रयागराज के बेनीगंज इलाके में मेडिकल स्टोर चलाने वाले सिंह ने कहा, “कोई भी यह नहीं समझ सकता कि विध्वंस के बाद हमारे साथ क्या हुआ।”
अब सिर्फ यादों में ही जीवित है उनका घर
सिंह ने बताया, “मैंने घर को गिराए जाने से ठीक नौ महीने पहले खरीदा था, और इसके बाद मुझे फिर से किराए पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।” उनका किराए का घर उस स्थान से केवल 800 मीटर दूर है, जहां उनका घर हुआ करता था। अब वह जगह केवल उनकी यादों में ही जीवित है। पुराने जीवन के करीब रहने की चाह में, उन्होंने उसी इलाके में एक नया घर ढूंढ़ लिया। उन्होंने कहा, “विध्वंस के बाद हमारे पास कोई जगह नहीं थी, इस समय हमने एक रिश्तेदार के घर में शरण ली और फिर किराए के घर में शिफ्ट हो गए।”
सिंह ने अपनी सारी बचत उस घर को खरीदने में लगा दी थी। अब, 46 साल की उम्र में, वह फिर से अपनी जिंदगी को शुरू कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “अब मुझे पुनर्निर्माण की कोशिश करनी है।” विजय कुमार सिंह अपनी पत्नी वंदना और दो बच्चों के साथ रहते हैं, लेकिन वे अब भी अपने पुराने घर के पास से नहीं गुजरते। उन्होंने कहा, “यह बहुत दर्दनाक है। जब भी मैं उस जगह को देखता हूं, तो मुझे वह सब कुछ याद आता है जो हमने खो दिया है।”
विजय कुमार सिंह उन पांच याचिकाकर्ताओं में से एक हैं जिन्होंने स्थानीय अधिकारियों द्वारा उनके घरों को गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने 2023 में आदेश दिया कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण को छह सप्ताह के भीतर हर प्रभावित घर के मालिक को 10 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना था कि राज्य सरकार ने गलत तरीके से घरों को गिराया, यह मानते हुए कि यह जमीन अतीक अहमद की थी, जो 2023 में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।
फार्मेसी डिप्लोमा धारक विजय कुमार सिंह ने कहा, “हम अब भी समझ नहीं पा रहे हैं कि हमारे घरों को इतनी जल्दी क्यों गिराया गया।” उन्होंने कहा, “6 मार्च, 2021 को पीडीए अधिकारियों ने हमें घर खाली करने का नोटिस दिया। हमने अगले दिन अदालत का रुख किया, लेकिन आदेश पारित होने से पहले ही अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ पहुंचे और विध्वंस शुरू कर दिया। हमें सामान इकट्ठा करने के लिए सिर्फ दो घंटे का समय दिया गया था।” उनका मानना है कि नोटिस जानबूझकर जल्दी भेजे गए थे, ताकि वे अदालत से राहत न ले सकें।‘
एक अन्य याचिकाकर्ता प्रोफेसर अली अहमद फातमी ने इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि फैसले से उन्हें राहत मिली है और वे घरों को गिराने को गलत मानने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं। उन्होंने कहा, “अदालत द्वारा घोषित की गई मुआवजा राशि शायद छोटी हो, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि अदालत ने हमारे दर्द को पहचाना और पुष्टि की कि अधिकारियों ने अवैध रूप से काम किया।” उन्होंने आगे कहा, “यह विध्वंस का सही तरीका नहीं था—6 मार्च, 2021 की शाम को नोटिस जारी करना और अगली सुबह प्रभावित पक्षों को कोई समय दिए बिना घरों को बुलडोजर से गिरा देना। कम से कम 15 दिन का समय मिलना चाहिए था। अदालत ने इस प्रक्रिया को गलत ठहराया है। यह हमारी नैतिक जीत है।”
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उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अपनी लाइब्रेरी खोने का विशेष रूप से दुख है, जिसे उन्होंने छत पर बनाया था। उन्होंने कहा, “मेरे पास 1,000 से अधिक किताबें थीं, जिनमें से कई दुर्लभ थीं। विध्वंस के दौरान, कई किताबें गायब हो गईं या क्षतिग्रस्त हो गईं। अब मेरे पास कुछ ही बची हैं।” नए घर में शिफ्ट होने के बाद, उन्होंने अपनी बची हुई कुछ किताबें अपने छात्रों को दान कर दीं। प्रोफेसर फातमी ने एक और निजी नुकसान के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “घर ढहाए जाने के कुछ समय बाद, सितंबर 2021 में, मेरी पत्नी राना फातिमा, जो मधुमेह की मरीज थीं, का निधन हो गया।”
उन्होंने कहा, “हमारे घर के ढहाए जाने से करीब छह साल पहले, मेरी बड़ी बेटी नायला फातमी (46) ने मेरे घर के पास एक घर खरीदा और वहां रहने लगी। उनके पति कुवैत में शिक्षक के तौर पर काम करते हैं।” उन्होंने बताया, “हम उस घर में करीब 30 साल तक रहे, लेकिन मेरी बेटी केवल छह साल ही वहां रही। दोनों घरों के चले जाने से मेरी पत्नी पर गहरा असर पड़ा। अपने रिटायरमेंट फंड से मैंने एक फ्लैट खरीदा, जहां मैं अब अपनी बेटी के साथ रहता हूं।” नायला भी याचिकाकर्ताओं में से एक हैं।
उन्होंने कहा, “मैं उस जगह पर कभी नहीं लौटा जहां मेरा घर हुआ करता था—यह बहुत दर्दनाक है।” उस दिन को याद करते हुए उन्होंने कहा, “6 मार्च 2021 को मैं एक शादी के लिए जमशेदपुर में था। जब मैं पहुंचा तो मेरी बेटी ने मुझे फोन करके बताया कि अधिकारियों ने हमारे घर पर एक नोटिस चिपका दिया है। मैंने तुरंत एक टैक्सी किराए पर ली और अगली सुबह प्रयागराज वापस लौटा, लेकिन पाया कि प्रशासन और पुलिस पहले से ही हमारे घर को ध्वस्त कर रहे थे। यह देखना असहनीय था। वह घर मेरी मेहनत की कमाई से बना था। दर्द बहुत ज़्यादा था, इसलिए मैं अपनी पत्नी के साथ वहां से चला गया।”
उन्होंने कहा, “मैं हाउस टैक्स, पानी के बिल और सभी ज़रूरी शर्तों को पूरा कर रहा था। ज़मीन का पट्टा समाप्त हो गया था, इसलिए मैंने फ़्रीहोल्ड के लिए आवेदन किया और 14,000 रुपये की पहली किस्त भी चुका दी। अगर अधिकारियों ने फ़्रीहोल्ड का दर्जा देने से इनकार कर दिया, तो इसमें हमारी क्या गलती है? लूकरगंज और सिविल लाइंस का अधिकांश हिस्सा लीज़होल्ड ज़मीन पर है, फिर भी किसी और के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई। हमारा मानना है कि अतीक अहमद की वजह से हमें निशाना बनाया गया।”
रमज़ान अली, जो अभी भी उस मोहल्ले में रहते हैं जहां घरों को ध्वस्त किया गया था, अली अहमद के बारे में कहते हैं: “जब से वे चले गए हैं, ऐसा लगता है कि हमने अपना मार्गदर्शक खो दिया है। वे बहुत ज्ञानी और सम्मानित व्यक्ति थे। विध्वंस ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से प्रभावित किया, बल्कि इससे उनके सामाजिक संबंध भी टूट गए, क्योंकि हम उनके परिवार की तरह थे। विभिन्न विषयों पर पुस्तकों से भरी उनकी लाइब्रेरी उनके लिए गर्व और खुशी का कारण थी।”