Farmers Protest: पिछली बार के किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हुए किसान संगठन किसान आंदोलन 2.0 का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं आंदोलन से नदारद है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि कुछ किसान संगठनों की नई मांग जायज नहीं है। यह एमएसपी के मुख्य मुद्दों को कमजोर करती है।

किसान संगठनों ने दिल्ली चलो मार्च का आह्वान किया है। पिछली बार की तुलना में इस बार कई बड़े नाम गायब है। जो किसान नेता इसमें शामिल नहीं हैं उनमें, योगेन्द्र यादव, जोगिंदर सिंह उगराहां, राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, बलबीर सिंह राजेवाल, मंजीत राय, दर्शन पाल, शिव कुमार कक्का और वीएम सिंह शामिल है।

किसान संगठन एकमत नहीं

एसकेएम के सदस्यों के बीच वैचारिक मतभेद पैदा हो गया है। मोर्चा संगठन के नेताओं का एक वर्ग पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद अलग हो गया। 2020-21 में किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से कुछ का कहना है कि इस आंदोलन की तेजी में कुछ कमी आई है क्योंकि कुछ किसान यूनियन ही इसका नेतृत्व ही किया है। किसान आंदोलन 1.0 में हिस्सा लेने वाले कुल 40 किसान यूनियनों में से केवल दो संगठनों ने ही दिल्ली चलो मार्च का आह्वान किया है।

भारतीय किसान यूनयिन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि इस समय चल रहे मार्च में कुछ कट्टरपंथी तत्व काम कर रहे हैं। इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में राकेश टिकैत ने कहा कि इस विरोध में कुछ लोग सतलुज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दों को उठाने की कोशिश करेंगे। यह पंजाब और हरियाणा राज्य में दरार डालने का काम कर सकता है। यह लोग सांप्रदायिंक मतभेद पैदा करने की भी कोशिश करने में लगे हुए हैं। टिकैत ने आगे कहा कि अगर किसानों के मुख्य मुद्दें को मानने से सरकार इनकार करेगी तो मार्च में एक बड़ा आदोंलन किया जाएगा।

वहीं, हरियाणा के दूसरे किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि उन्हें दिल्ली मार्च आंदोलन में बुलाया ही नहीं गया। उन्होंने कहा कि एमएसपी पर कानून बनाने की कोई भी जरूरत नहीं है। हमें केंद्र सरकार से केवल लिखिल आश्वासन भी मिल जाए तो वह भी काफी है। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि केवल किसानों के लिए एकजुटता दिखाने के लिए ही यूनियनें भारत बंद में शामिल हो रही हैं। वहीं, किसानों से सरकार की तीसरे दौर की वार्ता भी बेनतीजा ही रही है। अब अगले बार की मीटिंग रविवार को रखी गई है। देखना होगा कि किसानों की समस्या का समाधान करने में सरकार कहां तक सफल हो पाती है।