निर्भय कुमार पांडेय

कोरोना संक्रमण और ओमीक्रान के बढ़ते मामलों की वजह से राजधानी में पिछले सप्ताह से सप्ताहांत कर्फ्यू लगने लगा है। अब इसका सीधा असर कारखानों के उत्पादन पर भी पड़ रहा है। सप्ताह के दो दिन दिल्ली के बड़े चावड़ी बाजार, सदर बाजार और पहाड़गंज के बाजारों के बंद होने और अन्य दिनों में सम-विषम के तहत दुकानों के खुलने की वजह से कारखाना मालिक कच्चे माल की खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं, जिसका सीधा असर अब उत्पादन पर पड़ रहा है। साथ ही रात्रि कर्फ्यू की वजह से तैयार माल बाजारों तक नहीं पहुंच रहा है। मालिकों का कहना है कि भले ही इस बार पूर्णबंदी की घोषणा सरकार की ओर से नहीं की गई है, लेकिन हालात करीब-करीब वैसे ही बनते जा रहे हैं। मजदूरों के बीच भी पूर्णबंदी होने का डर है। इस कारण वे गांव लौटने की तैयारी में है।

ओखला चैंबर आफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन अरुण पोली का कहना है कि इस वक्त कारखाना मालिक चार प्रकार के परेशानियां का सामना कर रहा है। पहला कि कच्चा माल बाजार से कारखानों तक नहीं पहुंच पा रहा है। कारखानों में काम करते वक्त मजदूरों के बीच समाजिक दूरी का ध्यान रखने पर उत्पादन पर असर पड़ता है और संख्या कम होने पर मजदूर काम ही नहीं कर पाते। दूसरा कि तैयारी माल स्टाक में बढ़ता जा रहा है। रात्रि कर्फ्यू की वजह से बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा है। तीसरी बड़ी समस्या यह है कि मजदूरों को कारखानों तक पहुंचने के लिए काफी वक्त लग रहा है। सप्ताहांत कर्फ्यू में पास नहीं बनाए जा रहे हैं। इस कारण दो दिन कारखाने बंद करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

इसके साथ ही मजदूरों को यह डर सताने लगा है कि यदि ओमीक्रान पर काबू नहीं पाया गया तो हालात बिगड़ेंगे। ऐसी परिस्थितियों में गांव जाने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है। यही कारण है कि वे गांव लौटने की तैयारी में है। कारखाना मालिक अनिल चड्ढा का कहना है कि सप्ताहांत कर्फ्यू को लेकर मजदूरों को ई-पास जारी नहीं किया जा रहा है।

डीडीएमए ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि पास लेकर ही यात्रा करना अनिवार्य है। उनका कहना है कि बादली, नरेला, मंगोलपुरी के अलावा बवाना इलाकों में स्थानीय प्रशासन ने कारखानों में छापामारी की थी और कारखाना को सील करने की बात कही। इसको लेकर मालिकों के बीच डर का माहौल बना हुआ है। उनको डर है कि यदि उनके टीम को एक भी कर्मचारी संक्रमित हुआ तो कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी और मालिक भी संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे में सरकार को यह तय करना चाहिए कि ये टीमें कुछ दिनों के लिए कारखानों में नहीं पहुंचें।

मंगोलपुरी में काम करने वाले एक मजदूर सुमंत कुमार ने बताया कि रात्री कर्फ्यू के बाद सप्ताहांत कर्फ्यू ने मजदूरों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सप्ताह भर काम करने के बाद मजदूर रविवार को छुट्टी के दिन बाजारों में राशन, सब्जी और अन्य सामानों की खरीदरी करने के लिए जाता है। पर सप्ताहांत कर्फ्यू की वजह से खासी दिक्कतें हो रही हैं। रोजमर्रा के सामान तक नहीं खरीद पा रहे हैं। साथ ही कच्चा माल नहीं होने की वजह से आठ घंटे तक काम भी नहीं लिया जा रहा है। पूरे घंटे काम नहीं करने पर उसका सीधा असर वेतन पर पड़ेगा।