संसद की एक समिति ने देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सिफारिश की है कि वे अपने निजी विश्वविद्यालयों में वंचित वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाएं। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल विभाग संबंधी स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी।

समिति ने देश के कुछ बड़े निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे विद्यार्थियों, उनकी फीस और अन्य संबंधित पहलुओं का गहन अध्ययन किया। इस अध्ययन में पाया गया कि निजी विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है। समिति ने यह भी बताया कि निजी विश्वविद्यालयों की वार्षिक फीस बहुत अधिक है, जिसे वंचित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए वहन करना कठिन है। यही मुख्य वजह है कि इन विश्वविद्यालयों में इन वर्गों के विद्यार्थियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है।

समिति ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत देश में उच्च शिक्षा में 50 प्रतिशत सकल शैक्षणिक अनुपात का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने में निजी विश्वविद्यालयों की भूमिका अहम होगी, क्योंकि देश में सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या पर्याप्त नहीं है।

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इसलिए समिति ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अनुरोध किया है कि वे अपने यहां मौजूद निजी विश्वविद्यालयों में वंचित वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इसमें संविधान के अनुच्छेद 15(5) को पूरी तरह लागू करने के लिए कानून बनाने का सुझाव भी शामिल है।

समिति का मानना है कि सरकारी संस्थानों की तरह निजी विश्वविद्यालयों में भी ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत, एससी के लिए 15 प्रतिशत और एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण लागू होना चाहिए। इसके साथ ही, शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत निजी विद्यालयों में लागू 25 प्रतिशत आरक्षण की तरह, निजी विश्वविद्यालयों में भी वंचित वर्ग के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाना चाहिए।