वित्त मंत्रालय में प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों को बचाने के लिए प्रर्याप्त कोशिश नहीं की। उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के इस वैकल्पिक इतिहास को दबाने के लिए क्रांतिकारियों की कहानी को जानबूझकर तोड़ा मरोड़ा गया है। बुधवार (12 जनवरी, 2020) को ‘The Revolutionaries: A Retelling of India’s History’ विषय पर गुजरात यूनिवर्सिटी में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह कहानी भारत की स्थापित राजनीति और स्वतंत्रता के बाद अंग्रेजों दोनों के लिए असुविधाजनक थी। भाषण के दौरान उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस कहानी (क्रांतिकारियों की) को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
प्रधान आर्थिक सलाहाकर ने यूनिवर्सिटी में छात्रों और फेकल्टी को संबोधित करते हुए कहा, ‘यह कहना मुश्किल है कि क्या महात्मा गांधी भगत सिंह या अन्य किसी क्रांतिकारी को फांसी से बचाने में सफल रहे होंगे, क्योंकि इसका कोई तथ्य मौजूद नहीं है… हालांकि उन्होंने पूरी कोशिश नहीं की।’
उन्होंने आगे कहा, ‘गांधी हिंसा को लेकर पर्याप्त खुश थे। आखिरकार उन्होंने भारतीय सैनिकों की अग्रेंजी सेना में भर्ती की। अगर वो पृथम विश्व युद्ध के लिए भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भेजने के लिए तैयार थे तो उन्हें उसी तरह के काम से भगत सिंह से क्या परेशानी थी? महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन के बाद मालाबार विद्रोह की हिंसा को कम करने की कोशिश की, जोकि एक तरह से एक ऐसा आंदोलन था जिसका नेतृत्व खुद उन्होंने ही किया था। उस पृष्ठभूमि को देखते हुए क्रांतिकारियों ने माना कि गांधीजी ने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों को बचाने की ज्यादा कोशिश नहीं की।’
सान्याल के भाषण के दौरान उनसे सवाल पूछा गया कि अगर क्रांतिकारियों को आजादी मिल जाती तो क्या राजनीतिक सिस्टम का भविष्य फासीवादी हो जाता? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘ऐसी कोई खास वजह नहीं थी कि भारतीय क्रांतिकारी फासीवादी जरूर बन जाते। रास बिहारी और अरबिंदो जैसे कई ऐसे क्रांतिकारी थे जो बहुत अच्छे थे। यह एक प्रोपेगैंडा है। मुझे तो लगता है कि ये बहुत अनुचित है। वास्तव में भारत की स्वतंत्रता के इस वैकल्पिक इतिहास को दबाने के लिए क्रांतिकारियों की कहानी को जानबूझकर तोड़ा मरोड़ा गया था।’