President’s Rule in Maharashtra: महाराष्ट्र में करीब तीन हफ्ते के राजनीतिक उठापटक के बाद मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया और विधानसभा को निलंबित रखा गया है। राष्ट्रपति शासन मंगलवार शाम में लागू हुआ जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र को एक रिपोर्ट भेजकर कहा कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद वर्तमान स्थिति में एक स्थिर सरकार का गठन असंभव है। ये पहली बार नहीं है जब किसी राज्य में ऐसा हुआ है। इससे पहले 2005 में बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस समय कांग्रेस द्वारा बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। तब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी।
फरवरी 2005 में महाराष्ट्र की तरह बिहार विधानसभा चुनाव ने त्रिशंकु विधानसभा का निर्माण किया। बिहार के मामले में एकमात्र अंतर यह था कि मतदाताओं ने वास्तव में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीए) भाजपा और जेडीयू को 92 सीटें के साथ खंडित जनादेश दिया था। जिसमें भाजपा की 37 और जेडीयू की 55 सीट थीं। इसके अलावा राजद को 75 जबकि कांग्रेस को 10 सीटें मिलीं थीं।
27 फरवरी, 2005 को चुनाव परिणाम घोषित किए गए। तब राज्यपाल बूटा सिंह ने सात दिनों तक प्रतीक्षा की और केंद्र को अपने पत्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की। वहीं महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी ने 19 दिनों तक इंतजार किया। बता दें राज्यपाल बनाने से पहले बूटा सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के एक दिग्गज नेता थे।
अप्रैल के मध्य में बीजेपी-जेडीयू के गठबंधन ने बिहार में सरकार बनाने का दावा करते हुए 115 विधायकों के समर्थन का दावा किया। लेकिन बूटा सिंह ने राष्ट्रपति को एक ताजा पत्र लिखकर दावा किया कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन एलजेपी के विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है। उस चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को 29 सीटें मिलीं थीं।
बता दें महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को बहुमत मिला था लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों पार्टियों में बात नहीं बनी। इसके बाद शिवसेना नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीए) से अलग हो गई और दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गए। गठबंधन टूटने के बाद किसी भी दल के पास बहुमत न होने की वजह से राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 105, शिवसेना के 56, राकांपा के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं।

