अंजिश्नु दास
मणिपुर में चल रहे संघर्ष तथा पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच खींचतान के दौरान हाल के दिनों में राष्ट्रपति शासन का विषय राजनीतिक चर्चा में कई बार सामने आया है। मणिपुर में मई महीने की शुरुआत से मैतेई और कुकी के बीच झड़पों में 150 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद विपक्षी दलों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का आह्वान किया था, जिससे किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश (UT) में सरकार को बर्खास्त कर दिया जाता है और इसे सीधे केंद्र सरकार के अधीन कर देता है। ऐसा संवैधानिक मशीनरी की विफलता के आधार पर या संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार या आपातकाल की स्थिति में होता है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार “सहयोगी” रही है।
पंजाब लंबी अवधि तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा
पंजाब में राज्यपाल ने आम आदमी पार्टी की सरकार पर विधानसभा प्रक्रियाओं, आधिकारिक नियुक्तियों, पारित विधेयकों और राज्य में नशीली दवाओं के दुरुपयोग जैसे मामलों पर उनके सवालों का जवाब देने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए केंद्रीय शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी सिफारिश भेजने की चेतावनी दी है।
पंजाब अतीत में लंबी अवधि तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा है। 1951 में पहली बार जब इसका इस्तेमाल किया गया था, तब 302 दिन तक यह लागू रहा। तब कांग्रेस में अंदरूनी कलह के कारण राज्य सरकार गिर गई थी। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद लोकसभा और राज्यसभा दोनों को दो महीने के भीतर साधारण बहुमत से इसकी पुष्टि करनी होती है। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति शासन को हर छह महीने में संसद द्वारा नवीनीकृत किया जाना जरूरी है। राष्ट्रपति इसे किसी भी समय रद्द कर सकते हैं।
मणिपुर, यूपी में सबसे ज्यादा बार लगा राष्ट्रपति शासन
लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार संयोग से 1950 में संविधान में अनुच्छेद 356 को शामिल किए जाने के बाद से मणिपुर और पंजाब में राष्ट्रपति शासन के सबसे अधिक मामले देखे गए हैं। मणिपुर और उत्तर प्रदेश दोनों जगह अब तक सर्वाधिक 10 बार राष्ट्रपति शासन लगाए गये हैं। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अब तक 9 बार राष्ट्रपति शासन लगाए गये। 1950 के बाद से 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 134 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने 14 बार लगाया केंद्रीय शासन
अकेले 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अधीन आपातकाल की दो साल की अवधि के बाद 14 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने 1977 के लोकसभा चुनावों में मौजूदा कांग्रेस को हराकर बहुमत हासिल करने के बाद राज्य सरकारों में मतदाताओं के “विश्वास की कमी” का हवाला देते हुए 9 राज्य विधानसभाओं को भंग कर दिया था।
1992 में छह बार प्रेसीडेंट रूल लगाया गया था
1980 में आम चुनावों के बाद जिसमें इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं, उन्होंने भी राज्य विधानसभाओं को भंग कर दिया और यह दावा करते हुए कि राज्य सरकारें अब मतदाताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, उन्हीं 9 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। राष्ट्रपति शासन की अगली सबसे बड़ी घटनाएं 1992 में 6 बार हुईं, जिनमें से 4 घटनाएं यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा के कारण हुईं।
1950 के बाद से 74 वर्षों में से 53 वर्षों में वर्ष में कम से कम एक बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। 1960 और 1970 के दशक में राष्ट्रपति शासन का सबसे अधिक प्रयोग देखा गया। तब से यह प्रावधान काफी कम बार लागू किया गया है। आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों की पुनरावृत्ति के कारण जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब में राष्ट्रपति शासन के तहत क्रमशः 4,668 दिन (12 वर्ष, 9 महीने) और 3,878 दिन (10 वर्ष, 7 महीने) की सबसे लंबी अवधि देखी गई है। दोनों क्षेत्रों में अस्थिर कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बन गई थी।