भारत-चीन के जटिल रिश्ते के मतभेदों और उम्मीदों का जिक्र करने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते मजबूत करने की वकालत की। भारत और चीन के प्राचीन रेशमी रास्ते को याद दिलाते हुए उन्होंने पड़ोसी देश के निवेशकों को ‘डिजिटल इंडिया’ में कारोबार के लिए आमंत्रित किया। ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टैंड अप इंडिया’ का जिक्र कर उन्होंने बदलते और आगे बढ़ते भारत की तस्वीर पेश की। प्रणब मुखर्जी चार दिवसीय यात्रा के अहम चरण में बुधवार को बेजिंग पहुंचे। बेजिंग हवाई अड्डे पर राष्टÑपति का भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे के रास्ते के दोनों ओर एक साथ लहराते हुए भारत और चीन के राष्टÑीय ध्वज दोनों देशों के बीच दोस्ती की नई बयार बहने का संदेश दे रहे थे।
इससे पहले क्वांग चाओ में भारत-चीन व्यापार मंच की बैठक को प्रणब ने संबोधित किया। चीन के इस कारोबारी गढ़ पर प्रणब पुख्ता तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने बताया कि इस शहर का भारत के गुजरात और महाराष्टÑ के साथ गहरा रिश्ता है। उन्होंने कहा, ‘ यह ऐतिहासिक शहर भारतीय कारोबार के लिए हमेशा अहम रहा है। प्राचीन काल में दो सौ सदी ईसा पूर्व भारत-चीन के कारोबारी रिश्ते की बुनियाद पड़ी जो बाद में बहुत फली-फूली। हान चू (हान वंश की किताब) में क्वांग चाओ और कांचीपुरम के बीच सीधे समुद्री रास्ते का जिक्र मिलता है। चार सौ सदी ईसा पूर्व में कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में चीन के रेशम का जिक्र किया गया है। यह भारत और चीन के लिए अपने पुराने संपर्कों को मजबूत करने और नए रिश्तों के लिए हाथ मिलाने का एक बेहतर समय है’।
उन्होंने कहा, ‘भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 100 अरब डॉलर पार कर चुका है। हम चाहेंगे कि यह आंकड़ा और बढ़े’। भारत के मानव संसाधन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘2020 तक भारतीय जनसंख्या की औसत उम्र 29 साल हो जाएगी। हम एक जवान राष्टÑ हैं और हम इस जवान जनसंख्या को अपनी संपत्ति बनाना चाहते हैं। स्किल इंडिया योजना के तहत हम 2022 तक 40 करोड़ युवक और युवतियों को प्रशिक्षित करेंगे। स्टार्ट अप इंडिया कारोबार में नवोन्मेष को बढ़ावा देने के साथ रोजगार के ढेरों विकल्प मुहैया कराएगा’। उन्होंने कहा कि भारत सरकार औद्योगिक गलियारे, राष्टÑीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्र और मालढुलाई गलियारे का निर्माण कर रही है, ताकि निवेश बढ़ाया जा सके। उन्होंने कहा कि 100 स्मार्ट शहरों की जो पहल की गई है वह विकास का इंजन साबित होगी। इसी तरह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के जरिए भारत को सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदला जा सकेगा।
उन्होंने चीनी निवेशकों को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘भारतीय अर्थव्यस्था के अहम क्षेत्रों में जो सुधार हुए हैं उनसे भारत में कारोबार की राह बहुत ही आसान हुई है। हमने विदेशी निवेश व्यवस्था को उदार बनाया है। विदेशी निवेश से अंकुश हटाया है। दोनों देशों में आर्थिक और व्यावसायिक सहयोग की काफी क्षमता है। हमारी आर्थिक भागीदारी की पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि हमारे व्यापारिक समुदाय के बीच सूचना की दूरी पाटी जाए’।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ अधिकारी से मुलाकात की। आर्थिक नीतियां विशेष तौर पर भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने का विषय दोनों नेताओं की बातचीत के केंद्र में रहा। पार्टी के गुआंगदांग प्रांत के सचिव हू चुन्हुआ ने राष्ट्रपति के सम्मान में भोज दिया। दोनों नेताओं ने चीन में संघ प्रांत संबंधों और भारत में केंद्र राज्य संबंधों के साथ दोनों देशों के ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंधों के बारे में भी चर्चा की। कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी ने भारत की आर्थिक नीतियों में रुचि दिखाई, विशेष तौर पर विदेशी निवेश से संबंधित।
राष्ट्रपति ने चीन के कारोबारी समुदाय से कहा कि 2014 में भारत में निवेश में 32 फीसद का इजाफा हुआ है। वहीं 2015 में भारत सबसे बड़े वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में उभरा है। भारत एक दशक से सालाना 7.6 फीसद की वृद्धि दर्ज कर रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत के और आगे बढ़ने के लिए चीन का साथ जरूरी है। इससे पहले बुधवार दिन में राष्ट्रपति हुआ लिन मंदिर गए और बौद्ध धर्म के प्रति अपनी भावनाएं साझा की।
प्रणब मुखर्जी का बुधवार को बेजिंग हवाई अड्डे पर भव्य स्वागत किया गया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीन के शीर्ष नेताओं के साथ गुरुवार को होने वाली बैठकों से पहले मुखर्जी का चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के अध्यक्ष च्यांग देजिआंग से मिलने का कार्यक्रम है। चीन के उपराष्ट्रपति ली युआनचाओ की मौजूदगी में प्रणब मुखर्जी ने दोनों देशों के प्रत्यक्ष आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की वकालत की।
इतिहास के समय में घूमी रिश्ते की सूई
भारत और चीन का प्राचीन रिश्ता सिर्फ बौद्ध धर्म पर आधारित नहीं है और न ही सिर्फ बौद्ध भिक्षुओं तक केंद्रित है। भारत में स्वर्णिम गुप्तकाल और चीन में शांग वंश के समय में भी बौद्ध धर्म ज्ञान और संस्कृति के आदान-प्रदान का अहम जरिया था। लेकिन आधुनिक शोधों से पता चलता है कि भारत और चीन का विभिन्न समय कालों और विभिन्न क्षेत्रों में ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। चीन के बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि बंगाल के विद्वानों केशब चंद्र सेन और रोमेश चंद्र दत्त ने चीन में ब्रिटेन के अफीम के कारोबार की कड़ी आलोचना की थी। बहुत से भारतीयों को शायद यह बात नहीं मालूम होगी कि प्रथम विश्व युद्ध के समय सन यात सेन ने भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस की अंग्रजों की कैद से भागने में मदद की थी।
-प्रणब मुखर्जी
शैक्षणिक रिश्ते के खुलेंगे द्वार
मुखर्जी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच सामरिक और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर करेगी। दो देशों के बीच आम राजनीतिक गतिविधियों के इतर राष्टÑपति की यात्रा को बहुत अहम और अलग माना जाता है। राष्टÑपति के साथ भारतीय अकादमिक संस्थाओं का एक दल भी है जो दोनों देशों के बीच अकादमिक और शैक्षणिक संबंधों को बेहतर करने की राह बनाएगा। दोनों देश इस क्षेत्र में अपने संसाधनों का आदान-प्रदान करने को लेकर सहमति बना सकते हैं।
दें एक-दूसरे को बेहतर मौका
द्विपक्षीय निवेश और व्यापार में दोनों देश बहुत कुछ कर सकते हैं। चीन के लिए भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में भागीदारी के लिए बेहतर मौका है। भारतीय अर्थव्यवस्था की शक्ति निजी क्षेत्र की सैकड़ों और हजारों कंपनियां हैं। हम वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स सहित विभिन्न क्षेत्रों में चीन के निवेश का स्वागत करते हैं। वहीं चीन का फार्मा और आइटी क्षेत्र भारतीय कंपनियों को बेहतर मौके दे सकता है।
– नौशाद फोर्ब्स, भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष
हम भारत के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्मार्ट शहर’ कार्यक्रम में भाग लेने के इच्छुक हैं। भारत में निवेश बढ़ाने पर हम पूरा ध्यान देंगे।
– च्यांग जेंगवेई, सीसीपीआइटी के अध्यक्ष