Prayagraj Mahakumbh Bhumi Pujan Rituals: प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ की तैयारियां अपने चरम पर हैं। यह आयोजन केवल भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि सनातन धर्म के गहन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी उजागर करता है। कुंभ मेला को साधु-संतों, संन्यासियों और अखाड़ों के नागा साधुओं की उपस्थिति के बिना अधूरा माना जाता है। यह आयोजन केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सनातन परंपराओं और समाज के प्रति धर्म की शिक्षाओं को स्थापित करने का अवसर है।

मंत्रोच्चार, पवित्र जल और अग्नि का सहारा

कुंभ मेला क्षेत्र में साधु-संतों के शिविरों की स्थापना से पहले भूमि का पूजन किया जाता है। संत जहां रहते हैं, वह स्थल और वहां का वातावरण तपस्थली की तरह होता है। ऐसे में यह पूजन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वैदिक परंपरा के अनुसार, भूमि पूजन से उस स्थान को शुद्ध किया जाता है, उसे किसी भी प्रकार के वास्तु, जल, वायु और जीव दोष, संकट और बाधाओं से मुक्त किया जाता है। साथ ही, इसे सकारात्मक ऊर्जा से भरने के लिए मंत्रोच्चार, पवित्र जल और अग्नि का सहारा लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बिना भूमि पूजन और बिना दोष मुक्ति विधान के न तो वहां आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रभाव होगा और न ही उसकी शक्ति लगेगी।

भूमि पूजन की प्रक्रिया शुभ मुहूर्त, लग्न और तिथि के अनुसार संपन्न होती है। इसमें वेद पाठियों द्वारा मंत्रोच्चार के साथ नारियल फोड़ने और हवन का आयोजन किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल धर्म और आस्था का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण को शुद्ध करने का माध्यम भी है।

पांच प्रमुख अखाड़ों का सामूहिक भूमि पूजन

इस बार प्रयागराज में एक अनोखा और ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला। महाकुंभ 2025 की तैयारियों के अंतर्गत बुधवार को पांच प्रमुख अखाड़ों—जूना, आह्वान, अग्नि, निरंजनी और आनंद अखाड़ा—ने सामूहिक भूमि पूजन किया। सुबह 11 बजे शुभ मुहूर्त में इस अनुष्ठान का आयोजन हुआ। वैदिक मंत्रोच्चार और नारियल फोड़ने के साथ शिविर निर्माण के लिए भूमि का शुद्धिकरण किया गया।

यह पहली बार हुआ है जब इतने बड़े पैमाने पर विभिन्न अखाड़ों ने एक साथ भूमि पूजन किया। इस आयोजन से महाकुंभ की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गरिमा में वृद्धि हुई है। भूमि पूजन के साथ ही अब इन अखाड़ों के शिविर निर्माण का कार्य जल्द शुरू होने वाला है, जिससे मेला क्षेत्र की तैयारियों को गति मिलेगी।

अखाड़ों के भूमि पूजन के बाद ही कल्पवासी वहां आते हैं

गुरुवार को बड़ा उदासीन और नया उदासीन अखाड़ा अपने-अपने आवंटित स्थान पर भूमि पूजन किया। सुबह 10 बजे गंगा पूजन के बाद यह प्रक्रिया संपन्न हुई। इस परंपरा के अंतर्गत साधु-संतों के शिविर बनने के बाद पंडे, उनके शिष्य, कल्पवासी और आम श्रद्धालु वहां निवास करने लगते हैं। यह क्रम सदियों से कुंभ मेले की परंपराओं का हिस्सा रहा है।

कुंभ मेला: साधना, मोक्ष और धर्म का संगम

कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि साधना, मोक्ष, धर्म की रक्षा और भगवत्प्राप्ति का केंद्र है। यहां साधु-संतों द्वारा सत्संग, धर्म चर्चा और आध्यात्मिक प्रवचन किए जाते हैं। श्रद्धालु इन प्रवचनों से न केवल अपने जीवन को दिशा देते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और पापों से मुक्ति की खोज भी करते हैं।

सनातन परंपरा के अनुसार, कुंभ मेला केवल एकत्रित होने का स्थान नहीं, बल्कि यह धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का माध्यम भी है। साधु-संतों के शिविरों में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, हवन और यज्ञ आयोजित किए जाते हैं, जो धार्मिक चेतना को प्रबल करते हैं।

महाकुंभ की परंपराओं का पालन

महाकुंभ में भूमि पूजन और शिविर निर्माण केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम है। अखाड़ों के संतों ने कहा है कि भूमि पूजन के साथ ही अब शिविर निर्माण का कार्य तेजी से किया जाएगा। ये शिविर न केवल संतों और श्रद्धालुओं के लिए आवास का स्थान होंगे, बल्कि धर्म, साधना और मोक्ष की शिक्षा देने वाले केंद्र भी होंगे।

महाकुंभ न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर सनातन संस्कृति और धर्म का प्रतीक है। हर बार लाखों श्रद्धालु इस आयोजन में भाग लेने के लिए आते हैं, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बनाता है। इस बार भी, महाकुंभ 2025 के आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है।

कुंभ मेला हमें अपनी जड़ों, परंपराओं और धर्म की गहराई से जोड़ता है। यह आयोजन एक संदेश देता है कि धर्म और संस्कृति केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम भी हैं। महाकुंभ 2025 निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक आयोजन के रूप में उभरेगा।