International devotees at Mahakumbh: प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार एक अद्भुत तस्वीर देखने को मिली। संगम की पावन रेती पर यूक्रेन के खारकीव के निवासी एलेक्जेंड्रा, जो अब महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद के नाम से पहचाने जाते हैं, सनातन धर्म की छत्रछाया में रूस-यूक्रेन के बैर को मिटाने का संदेश दे रहे हैं। सनातन संस्कृति को जीवन का आधार मानते हुए विष्णुदेवानंद ने अपने जीवन का लक्ष्य विश्व को एकजुट करना बना लिया है।

ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर सोमनाथ गिरि उर्फ पायलट बाबा से ली दीक्षा

महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद, जो कभी खारकीव के एलेक्जेंड्रा थे, अब जूना अखाड़े का अहम हिस्सा हैं। उन्होंने ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर सोमनाथ गिरि उर्फ पायलट बाबा से दीक्षा लेकर नागा संन्यास का मार्ग अपनाया। इस महाकुंभ में संगम लोअर मार्ग पर उन्होंने वर्ल्ड वाइड सनातन धर्म कम्युनिटी के नाम से शिविर लगाया है, जिसमें रूस, यूक्रेन, जर्मनी और जापान जैसे देशों के युवा संत और संन्यासिनियां शामिल हो रहीं हैं। ये लोग सनातन धर्म की शिक्षाओं को आत्मसात कर विश्व शांति और एकता का संदेश दे रहे हैं।

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विष्णुदेवानंद का कहना है कि रूस-यूक्रेन का युद्ध केवल राजनीतिक कारणों से हो रहा है, जबकि दोनों देशों के लोगों और साधु-संतों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है। उनके अनुसार, युद्ध ने यूक्रेन को तहस-नहस कर दिया है। चर्च, अस्पताल, और घरों को रॉकेट हमलों ने तबाह कर दिया। लोग बेघर हो गए हैं, और हर तरफ विनाश का मंजर है। इस त्रासदी के बीच विष्णुदेवानंद गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती से शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।

यूक्रेन की एक योगमाता, जो विष्णुदेवानंद के शिविर में हैं, कहती हैं, “हम बहुत दुखी हैं। यह जंग मानवता के लिए सबसे बड़ी त्रासदी है। रूस और यूक्रेन तो भाई-भाई हैं, फिर यह युद्ध क्यों हो रहा है? हमें शांति चाहिए, और हम इसे पाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।”

महाकुंभ में यह शिविर दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि सीमाओं और विवादों से ऊपर उठकर प्रेम और एकता को अपनाया जाए। युद्ध से नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता और शांति के मार्ग से मानवता को बचाया जा सकता है। महाकुंभ में रूस और यूक्रेन समेत कई देशों के लोग हिंदू धर्म की दीक्षा लेकर संन्यास को अपना लिया है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए लगातार सत्संग और प्रवचन कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि महाकुंभ मेले में आकर उनको अलौकिक शांति का आभास हुआ है। ये विदेशी लोग यहां पर विभिन्न अखाड़ों और आश्रमों में रहकर संतों के शिष्य बन गए हैं और हमेशा के लिए परिवार से मुक्त होकर भारत चले आए हैं। महाकुंभ से जुड़ी सभी खबरें पढ़ने के लिए करे यहां क्लिक