Who is Niranjani Akhara: निरंजनी अखाड़ा, वह धरोहर है जो सनातन संस्कृति की पताका को धारण किए हुए है। यह अखाड़ा, जो जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर माना जाता है, एक नई मिसाल पेश करता है, क्योंकि यहां के 70 फीसदी संन्यासी न केवल धार्मिक जीवन में रत हैं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर जैसे उच्च डिग्रीधारी भी हैं। 860 ईस्वी में स्थापित इस अखाड़े की जड़ें गहरी और व्यापक हैं, जो अब तक भारतीय संत परंपरा और संस्कृति को समृद्ध कर रहे हैं। इसका मुख्यालय मायापुर, हरिद्वार में स्थित है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु और साधु एकत्र होते हैं।

वक्त के साथ बदला नियम, अब केवल योग्यता पर आधारित है संन्यास

निरंजनी अखाड़े में शामिल होने के नियम पहले बहुत सख्त हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इनमें कुछ बदलाव आए हैं। आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद बताते हैं कि इस अखाड़े में माफिया या अपराधियों की कोई जगह नहीं है, क्योंकि यहां संन्यास लेने के लिए योग्यता का होना आवश्यक है। संन्यासी बनने के लिए साधक को पहले पांच साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। फिर, जब वह अपने गुरु की पूरी तरह सेवा करता है और शुद्धता के साथ दीक्षा प्राप्त करता है, तभी उसे नागा दीक्षा दी जाती है। यह दीक्षा केवल उन्हीं को दी जाती है जिन्होंने गुरु सेवा में पूर्ण समर्पण दिखाया हो।

शिक्षित साधु-संत: निरंजनी अखाड़े की पहचान

निरंजनी अखाड़ा अपने उच्च शिक्षा प्राप्त साधुओं के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के कई प्रमुख संत, जैसे ओंकार गिरि, जो एक इंजीनियर हैं और महंत रामरत्न गिरि, जो दिल्ली विकास प्राधिकरण में सहायक अभियंता रह चुके हैं, इस अखाड़े में शिक्षा और भक्ति के बीच संतुलन बनाए रखते हैं। डॉ. राजेश पुरी, जो पीएचडी धारक हैं, और महंत रामानंद पुरी, जो अधिवक्ता हैं, जैसे संत भी इस अखाड़े से जुड़े हैं। महंत रवींद्र पुरी, निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष, बताते हैं कि इस अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संत उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और सभी को संन्यास की दीक्षा योग्यता के आधार पर ही दी जाती है। इस अखाड़े में संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं, जो सनातन धर्म को और मजबूत बनाते हैं।

निरंजनी अखाड़े का ऐतिहासिक उद्देश्य

निरंजनी अखाड़े की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना था। यह अखाड़ा उस समय अस्तित्व में आया जब दूसरे धर्मावलंबी सनातन धर्म पर हमले कर रहे थे। इसके संस्थापक ने वेद विद्या स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की, ताकि धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा मिल सके। अखाड़े का सर्वोच्च प्राधिकरण पंच परमेश्वर होते हैं, जिनकी मंजूरी से ही सभी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। इसके अलावा, आठ श्री महंत और आठ उप श्री महंत होते हैं, जो संतों के कार्यों की निगरानी करते हैं।

महाकुंभ और कुंभ की धारा में निरंजनी अखाड़े का योगदान

निरंजनी अखाड़ा हर छह साल में होने वाले कुंभ और बारह साल में होने वाले महाकुंभ का सक्रिय हिस्सा है। इन महापर्वों के दौरान संतों और अन्य पदाधिकारियों के चुनाव होते हैं। यह चुनाव प्रक्रिया अखाड़े के सभी कार्यों को संचालित करती है और संतों को जिम्मेदारी सौंपती है। निरंजनी अखाड़ा न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक सशक्त समाज निर्माण में भी योगदान दे रहा है।

निरंजनी अखाड़ा एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है कि जहां ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का संगम होता है, वहीं आधुनिक शिक्षा और परंपरा भी एक साथ फलते-फूलते हैं। यह अखाड़ा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि अपने साधुओं की उच्च शिक्षा और उनके कार्यों के लिए भी एक मिसाल है।