What is Kalpvas: प्रयागराज के संगम तट पर हर साल माघ महीने में लाखों श्रद्धालु स्नान के साथ-साथ कल्पवास करते हैं। यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। श्रद्धालु एक महीने तक त्रिवेणी संगम के तट पर सात्विक भाव से रहते हैं और भगवान की आराधना करते हैं। यह परंपरा वेद, पुराण, महाभारत और रामचरित मानस में वर्णित है। श्रद्धालु यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर साधना कर पुण्य अर्जित करते हैं। माना जाता है कि यह साधना जन्म-जन्मांतरों के पापों से मुक्ति दिलाती है और स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती है।
प्रयागराज संगम तट पर सभी कल्पवासी अपने-अपने पुरोहितों और पंडों के शिविर में बनाए गए तंबुओं में रहेंगे। ये तंबू गंगा तट और यमुना तट दोनों ओर है। ये एक महीने तक यहीं पर रहेंगे और आश्रमों में चल रहे प्रवचन, कीर्तन-भजन, रासलीला और रामलीलाओं तथा साधुओं-संतों के वचनों को सुनने में समय व्यतीत करेंगे।
Kalpvas in Prayagraj: कल्पवास का महत्व और नियम
कल्पवास का मुख्य उद्देश्य भक्ति, तप और आत्मशुद्धि है। इसे करने वाले श्रद्धालु एक साधारण जीवन जीते हैं। वे दिन में तीन बार संगम में स्नान करते हैं, भूमि पर सोते हैं, केवल एक बार भोजन करते हैं और अपना समय भजन, ध्यान और प्रवचन में लगाते हैं।
श्री लक्ष्मी नारायण आश्रम, प्रयागराज के पीठाधीश्वर स्वामी विमलेशाचार्य जी महाराज बताते हैं कि कल्पवास तीन प्रकार से किया जाता है:
- पूर्णिमा से पूर्णिमा तक
- संक्रांति से संक्रांति तक
- अमावस्या से अमावस्या तक
कल्पवासी जिस दिन कल्पवास आरंभ करता है, वह अगले पूर्ण चंद्र या संक्रांति अथवा अमावस्या तक इसका पालन करता है।
Kalpvas in Prayagraj: श्रद्धालुओं की दिनचर्या
कल्पवास करने वाले श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त में जागते हैं और त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं। इस दौरान मौन रहना और ध्यान में समय बिताना श्रेष्ठ माना जाता है। प्रतिदिन दीपदान, दान और सत्संग का विशेष महत्व है। श्रद्धालु घी मिश्रित तिल से हवन करते हैं और भगवान माधव का 108 बार नाम-जप करते हैं।
Kalpvas in Prayagraj: संयम और साधना के नियम
कल्पवास के दौरान श्रद्धालुओं को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है:
- तेल और साबुन का उपयोग वर्जित है।
- भूमि पर सोना और दान लेने से बचना चाहिए।
- 12 वर्षों तक लगातार कल्पवास करने के बाद श्रद्धालु को अपने आचार्य की अनुमति से उद्यापन करना अनिवार्य है।
Kalpvas in Prayagraj: कल्पवास का आध्यात्मिक महत्व
स्वामी विमलेशाचार्य जी कहते हैं कि त्रिवेणी संगम पर एक महीने तक नियमपूर्वक तप और ध्यान करने से वही पुण्य मिलता है, जो एक कल्पतरु के ध्यान और तप से प्राप्त होता है। यह आत्मशुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का अवसर है। कल्पवास श्रद्धा, तप और साधना का पर्व है। यह आत्मिक शुद्धि के साथ समाज को संयम और सादगी का संदेश देता है। संगम तट पर होने वाला यह आयोजन भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का एक अनुपम उदाहरण है।
Kalpvas in Prayagraj: घी के दीप और उनकी महिमा
कल्पवास में घी के एक हजार दीप जलाने का महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि घी से किए गए दीपदान से दस पीढ़ियों का उद्धार होता है। वहीं, कपूर के दीपदान से व्यक्ति का ओज बढ़ता है और उसे आंतरिक ऊर्जा मिलती है।
Kalpvas in Prayagraj: महाभारत और कल्पवास का महत्व
महाभारत में कहा गया है कि सौ वर्षों की कठिन तपस्या से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह माघ मास में एक महीने के कल्पवास से मिल जाता है। भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस का वध करने की शक्ति कल्पवास से प्राप्त की थी। सनकादि ऋषियों ने भी आत्मदर्शन का लाभ कल्पवास से पाया।
Kalpvas in Prayagraj: कल्पवास की अवधि
कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि होती है। श्रद्धालु अपनी सुविधा अनुसार एक दिन, तीन दिन, तीन माह, छह माह, बारह वर्ष या जीवनभर संगम क्षेत्र में कल्पवास कर सकते हैं।
Kalpvas in Prayagraj: कल्पवास का नियम और अनुशासन
कल्पवास आरंभ करने से पहले गणपति पूजन किया जाता है। संगम तट पर पहुंचकर बुरी संगति और कुवचनों का त्याग करने का संकल्प लिया जाता है। व्यक्ति को संयमित जीवनशैली अपनानी चाहिए। सुबह-शाम गंगाजल से स्नान, भगवान माधव के नाम का जाप और दान करना आवश्यक है।
Kalpvas in Prayagraj: मंत्र और पूजन विधि
कल्पवासी को “ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः” मंत्रों का जाप करना चाहिए। नारियल, पुष्प और द्रव्य के साथ त्रिवेणी संगम, गंगा, यमुना, सरस्वती और अक्षयवट की स्तुति करनी चाहिए।
Kalpvas in Prayagraj: उद्यापन का विधान
कल्पवास के समापन पर उद्यापन की प्रक्रिया वेदों और पुराणों में उल्लेखित है। इसके लिए केले के पत्तों और गन्ने से मंडप बनाकर उसे फूलों और तोरण से सजाया जाता है। सफेद तिल के साथ स्नान कर, आसन पर बैठकर प्राणायाम और गणपति पूजन किया जाता है। इसके बाद, सामर्थ्य अनुसार एक, तीन या तैंतीस कलश स्थापित किए जाते हैं। कलश पर सफेद वस्त्र रखकर स्वर्ण प्रतिमा स्थापित कर उसकी पूजा की जाती है। उद्यापन के दिन रात्रि को भजन-कीर्तन और वाद्य यंत्रों के साथ जागरण किया जाता है। अगले दिन स्नान के बाद हवन और दान का विधान है।
कल्पवास व्यक्ति को आत्मशुद्धि, संयम और ध्यान का मार्ग दिखाता है। यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन को शुद्ध और साधनामय बनाने का अवसर है।