Apurva Vishwanath
सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण को कोर्ट की अवमानना मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद देश के कई वकीलों में इसे लेकर ‘बेचैनी’ का माहौल है। दरअसल 1500 से ज्यादा वकीलों ने, जिनमें बार के वरिष्ठ सदस्य भी शामिल हैं, सर्वोच्च अदालत से अपील की है कि वह ‘सुधारात्मक कदम उठाकर न्याय की विफलता को रोकें।’ वकीलों ने एक बयान में कहा है कि बार को अवमानना का डर दिखाकर चुप कराने से सुप्रीम कोर्ट की ही स्वतंत्रता और ताकत कम होगी।
इस अपील पर हस्ताक्षर करने वाले वकीलों में श्रीराम पांचू, अरविंद दतार, श्याम दीवान, मेनका गुरू स्वामी, राजू रामचंद्रन, बिश्वजीत भट्टाचार्य, नवरोज सीरवाई, जनक द्वारकादास, इकबाल चागला, दारिअस खंबाटा, वृन्दा ग्रोवर, मिहिर देसाई, कामिनी जायसवाल और करूणा नंदी शामिल हैं।
बयान में कहा गया है कि “यह फैसला जनता की नजरों में कोर्ट का अधिकार बहाल नहीं करता है बल्कि यह फैसला वकीलों को खुलकर बोलने से रोकेगा। जजों पर जब दबाव बनाया जाता था और उनके बाद की घटनाओं पर बार ही थी, जिसने पहली बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठायी थी। मूक (चुप) बार कभी भी एक मजबूत कोर्ट नहीं बना सकती।”
बता दें कि 14 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण को उनके दो ट्वीट्स के लिए कोर्ट की अवमानना का दोषी करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये ट्वीट्स तोड़े-मरोड़े गए तथ्यों पर आधारित थे और इनसे सुप्रीम कोर्ट की बदनामी हुई। कोर्ट अब 20 अगस्त को प्रशांत भूषण की सजा पर बहस करेगी।
बयान में कहा गया है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब ये नहीं है कि न्यायाधीशों पर टिप्पणी भी नहीं की जा सकती। यह वकीलों का कर्तव्य है कि वह कमियों को बार, बेंच और जनता की नजरों के सामने लाएं।
बयान में कहा गया है कि ‘प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के अच्छे वकीलों में शुमार किए जाते हैं और शायद वह एक आम आदमी नहीं हैं लेकिन उनके ट्वीट्स सामान्य से हटकर कुछ नहीं कहते हैं। कोर्ट के कामकाज पर हाल के सालों में जनता ने भी सोशल मीडिया पर टिप्पणियां की हैं। यहां तक कि कुछ रिटायर्ड जज भी इसी तरह के विचार व्यक्त कर चुके हैं।’