Pranab Mukherjee Health News Updates: छह दशक तक सियासी पारी खेलने वाले प्रणब मुखर्जी के लिए एक वक्त ऐसा भी आया था, जब तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस पार्टी से बाहर निकाल दिया था। तब उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्काटी बनाई थी। बाद में 1989 में राजीव गांधी से उनका समझौता हो गया था। पूर्व राष्ट्रपति ने ‘द टर्बुलेंट ईयर 1980-1996’ में 1980 और 1990 के दशक के उन कुछ यादगार घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिन्हें आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सर्वाधिक कलह पैदा करने वाला माना जाता है। मुखर्जी ने राजीव गांधी की कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से खुद को निकाले जाने को एक ‘नाकामी’ जैसा माना है, जिसे उन्होंने खुद पैदा किया था।
जब सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति में आईं थीं, तब प्रणब मुखर्जी उनके प्रमुख सलाहकार थे। प्रणब सोनिया गांधी को यह बताते थे कि ऐसी कठिन स्थिति में उनकी सास इंदिरा गांधी कैसे पेश आती थीं और चुनौतियों का सामना कैसे करती थीं? मुखर्जी की स्मरणशक्ति काफी अच्छी थी। वो अक्सर आंकड़ों पर बात करते थे।
साल 2018 के अप्रैल में प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996’ विवादों में घिर गई थी। तब किताब के कुछ अंश पर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप लगे थे। इसे हटाने के लिए कोर्ट में याचिका भी दी गई थी लेकिन कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।
प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996’ में लिखा है कि भारत में जूडिशियल ऑर्डर राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव का नतीजा होते हैं। किताब के इस अंश को न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने वाला बताया गया था और इसे कोर्ट की अवमानना कहा गया था लेकिन याचिका खारिज हो गई थी।
प्रणब मुखर्जी 1969 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और वे पांच बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 2004 से वह दो बार के लिए लोकसभा सांसद भी रहे।वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। 1982 में वो पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए थे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत में अभी भी कोई सुधार नहीं हुआ है। प्रणब मुखर्जी देश के उन राजनेताओं में शामिल रहे हैं जिनका राजनीति में लंबे समय तक सिक्का चला हो। उन्हें एक समय कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक भी माना जाता था। वह अभी भी वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। आर्मी के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल ने सुबह बुलेटिन जारी कर पूर्व राष्ट्रपति के बारे में जानकारी दी है। अस्पताल ने बुलेटिन में कहा है, “माननीय श्री प्रणब मुखर्जी की स्थिति अपरिवर्तित है। वह गहन देखभाल में है और वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। वर्तमान में उनके महत्वपूर्ण पैरामीटर स्थिर हैं।”
जब सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति में आईं थीं, तब प्रणब मुखर्जी उनके प्रमुख सलाहकार थे। प्रणब सोनिया गांधी को यह बताते थे कि ऐसी कठिन स्थिति में उनकी सास इंदिरा गांधी कैसे पेश आती थीं और चुनौतियों का सामना कैसे करती थीं? मुखर्जी की स्मरणशक्ति काफी अच्छी थी। वो अक्सर आंकड़ों पर बात करते थे।
प्रणब ने किताब में लिखा है, ‘इस सवाल पर कि उन्होंने मुझे कैबिनेट से क्यों हटाया और पार्टी से क्यों निकाला, मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियां की और मैंने भी की। वह दूसरों की बातों में आ जाते थे और मेरे खिलाफ उनकी चुगलियां सुनते थे। मैंने अपने मेरे धैर्य पर अपनी हताशा हावी हो जाने दी।’ गौरतलब है कि प्रणब को अप्रैल 1986 में कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) नाम की पार्टी बनाई थी।
छह दशक तक सियासी पारी खेलने वाले प्रणब मुखर्जी के लिए एक वक्त ऐसा भी आया था, जब तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस पार्टी से बाहर निकाल दिया था। तब उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्काटी बनाई थी। बाद में 1989 में राजीव गांधी से उनका समझौता हो गया था। पूर्व राष्ट्रपति ने ‘द टर्बुलेंट ईयर 1980-1996’ में 1980 और 1990 के दशक के उन कुछ यादगार घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिन्हें आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सर्वाधिक कलह पैदा करने वाला माना जाता है। मुखर्जी ने राजीव गांधी की कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से खुद को निकाले जाने को एक ‘नाकामी’ जैसा माना है, जिसे उन्होंने खुद पैदा किया था।
प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब 'द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996' में लिखा है कि भारत में जूडिशियल ऑर्डर राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव का नतीजा होते हैं। किताब के इस अंश को न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने वाला बताया गया था और इसे कोर्ट की अवमानना कहा गया था लेकिन याचिका खारिज हो गई थी।
पिछले सोमवार (10 अगस्त) को नई दिल्ली के राजाजी मार्ग पर स्थित अपने सरकारी आवास में 84 वर्षीय प्रणब मुखर्जी गिर गए थे। इससे उनके ब्रेन में ब्लॉ क्लॉटिंग हो गई थी। इसके बाद उन्हें सेना के आरआर हॉस्पिटल में लाया गया था। वहां उनके मस्तिष्क री सर्जरी हुई लेकिन उसके बाद से उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और वो कोमा में चले गए।
साल 2018 के अप्रैल में प्रणब मुखर्जी की किताब 'द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996' विवादों में घिर गई थी। तब किताब के कुछ अंश पर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप लगे थे। इसे हटाने के लिए कोर्ट में याचिका भी दी गई थी लेकिन कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।
न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पांच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे। वे बेहद अनुभवी, सूझबुझ वाले और जानकार राजनेता रहे हैं। उनके अनुभव का कांग्रेस पार्टी को संसद और संसद के बाहर काफी फायदा मिलता रहा है।
पीवी नरसिंहा राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया। सन 1985 के बाद से वह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के भी अध्यक्ष हैं। सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया।
देश के रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री के अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभालने और लंबे समय तक सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में काम करने की वजह से प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति में योग्यतम और व्यावहारिक राजनेता के रूप में विख्यात रहे हैं। लंबी सेवाओं के बाद उन्हें राष्ट्रपति बनने का अवसर मिला।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारतीय राजनीति में बेजोड़ स्मरणशक्ति, आंकड़ाप्रेमी और अपना अस्तित्व बरकरार रखने की अचूक इच्छाशक्ति रखने वाले राजनेता के रूप में माना जाता है। उन्हें कांग्रेस पार्टी और दूसरे सभी दलों में समान रूप से आदर और सम्मान मिलता रहा है।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संसदीय कैरियर करीब पांच दशक पुराना है। 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ उनका कैरियर 1975, 1981, 1993 और 1999 में सांसद बनने तक चलता रहा। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गांव के एक ब्राह्मण परिवार में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां हुआ था। उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे।
अभिजीत ने बताया, 'जब से वह रक्षामंत्री बने थे, उनका मेडिकल रेकॉर्ड आर्मी डॉक्टर मेनटेन रखते थे। इसी वजह से हम उन्हें दिल्ली कैंट स्थित आर्मी रिसर्च ऐंड रेफरल अस्पताल लेकर गए थे। तबसे मैं उन्हें पीपीई और सुरक्षा उपायों के साथ चार बार ही देख पाया हूं। जब मैंने उन्हें आखिरी बार देखा वह प्राकृतिक रूप से सांस ले रहे थे।'
तीन अगस्त को अभिजीत ने कोलकाता से ट्रेन पकड़ी थी। अभिजीत के मुताबिक, प्रणब दा और उन्हें रेल की यात्रा अच्छी लगती है। 60 साल के अभिजीत ने बताया कि कटहल खाने के बाद भी प्रणब मुखर्जी का शुगर लेवल नहीं बढ़ा था।
एक दिन इलसट्रेटिव वीकली के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रीतिश नंदी को दे रहे साक्षात्कार में उन्होंने राजीव गांधी की खुल के मुखालफत कर दी। नंदी ने उनसे पूछ दिया कि इंदिरा और राजीव में तुलनात्मक रूप से बेहतर कौन है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने इंदिरा गाँधी को बेहतर बताया। इसके बाद राजीव के सब्र का बाँध टूट गया। परिणामस्वरूप प्रणब मुखर्जी को अचानक पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जब नरसिम्हा राव जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कुछ दिन बाद प्रणब दा का निष्कासन वापस ले लिया। उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। इसके बाद से उन्होंने 2012 तक गाँधी परिवार की नज़रों में एक अच्छे विश्वासपात्र के रूप में जगह बनाये रखी। साल 2012 में यूपीए ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया।
साल 2017 में राष्ट्रपति के पद से हटने के बाद प्रणब कांग्रेसियों की आलोचना का शिकार हुए थे। वे साल 2018 में आरएसएस के एक कार्यक्रम में शरीक होने के लिए पहुंचे थे। आरएसएस और कांग्रेस का पुराना वैचारिक मतभेद रहा है। इस घटना पर उनकी बेटी और कांग्रेस नेत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने तीखी आलोचना करते हुए लिखा था कि आपका भाषण भुला दिया जाएगा, सिर्फ तस्वीरें बची रहेंगी। उस समय प्रणब दा ने अपने निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि मेरा वैचारिक छुआछूत में विश्वास नहीं है।
बात 1984 की है जब राजीव गांधी प्रणब मुखर्जी के साथ पश्चिम बंगाल के कांथी में एक बड़ी जनसभा को संबोधित कर रहे थे तभी अचानक से उन्हें इंदिरा गांधी की हत्या की खबर मिली. वह आनन-फानन में हवाई जहाज पर बैठ कर के दिल्ली वापस आने लगे। यहां भी उनके साथ में प्रणब मुखर्जी मौजूद थे। उन्होंने प्रणब दा से ऐसी स्थिति में देश में अगले प्रधानमंत्री की नियुक्ति में परंपरा संबंधी सवाल पूछा। उन्होंने गुलजारी लाल नंदा को ध्यान में रखते उन्हें यही राय दी कि ऐसी स्थिति आने पर किसी वरिष्ठ मंत्री को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला देनी चाहिए।
प्रणब मुखर्जी ने राजीव गांधी से मतभेद के बाद कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम की एक नयी पार्टी बनाई थी। इसमें कांग्रेस के बहुत सारे असंतुष्ट नेता अलग अलग प्रदेशों से जुड़े। मार्च 1987 में बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने बहुत खराब प्रदर्शन किया। वे एक भी सीट नहीं जीत सके।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे फोतेदार ने किताब में लिखा कि 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार गिरने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण चाहते थे कि सरकार कांग्रेस की बने और उसका नेतृत्व प्रणब मुखर्जी करें लेकिन राजीव गांधी राष्ट्रपति की इस राय के पूरी तरह से खिलाफ थे। किताब में एम एल फोतेदार ने लिखा है कि वी पी सिंह के इस्तीफे के बाद राजनीतिक रायशुमारी के लिए उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण से मुलाकात की थी।
2012 से लेकर 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को राजनीतिक गलियारों में 'प्रणब दा' या 'दादा' के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे प्रणब दा नेहरू- गांधी परिवार के सबसे करीबी लोगों में शामिल रहे हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे प्रणब दा नेहरू- गांधी परिवार के सबसे करीबी लोगों में शामिल रहे हैं। हालांकि, 1990 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने प्रणब दा को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था। यह दावा कांग्रेस के दिवंगत नेता और गांधी परिवार के नज़दीकी नेताओं में शामिल रहे एम एल फोतेदार ने अपनी किताब 'द चिनार लीव्ज' में किया है।
प्रणब मुखर्जी के मेडिकल बुलेटिन के बाद उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने ट्विटर पर जानकारी दी कि उनकी हालत में गिरावट नहीं आई है। उन्होंने कहा, ‘‘चिकित्सा की विशिष्ट भाषा की गहराई में नहीं जाते हुए, बीते दो दिन में मुझे जो बात समझ में आई है वह यह है कि मेरे पिता की हालत बहुत नाजुक बनी हुई है लेकिन उसमें गिरावट नहीं आई है। रोशनी के प्रति उनकी आंख की प्रतिक्रिया में थोड़ा सुधार आया है।’’
पूर्व राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने बताया कि वेंटिलेटर पर जाने से एक हफ्ते से भी पहले उन्होंने (प्रणब मुखर्जी) बुलाकर गांव से कटहल लाने को कहा था। इसके बाद अभिजीत पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के अपने पैतृक गांव मिराती पहुंचे और वहां से 25 किलो का एक कटहल लेकर आए थे।
प्रणब मुखर्जी को लोग प्यार से गांव में पोल्टू दा कहते थे। दरअसल उनका ये बचपन का नाम था। वो तीसरे ऐसे राष्ट्रपति हुए जो सबसे उम्रदराज थे। जब वो देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए तब उनकी उम्र 76 साल थी। उनसे पहले के आर नारायणन और वेंकटरमण भी सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे जो राष्ट्रपति बने थे। प्रणब दा ने पूर्वोत्तर के हीरो कहे जाने वाले पी ए संगमा को हराया था।
प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के छोटे से गांव मिराती में 11 दिसंबर 1935 को हुआ था। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें आजादी की लड़ाई में कई बार जेल जाना पड़ा था। प्रणब मुखर्जी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी से इतिहास और राजनीति शास्त्र में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने वहीं से लॉ भी किया। वो पत्रकार और कॉलेज प्रोफेसर भी रह चुके हैं। 1969 में वो राज्यसभा के लिए पहली बार चुने गए। इसके बाद उनकी संसदीय यात्रा शुरू हो गई।
प्रणब मुखर्जी देश के उन राजनेताओं में शामिल रहे हैं जिनका राजनीति में लंबे समय तक सिक्का चला हो। उन्हें एक समय कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक भी माना जाता था। प्रणब मुखर्जी 1969 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और वे पांच बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 2004 से वह दो बार के लिए लोकसभा सांसद भी रहे।वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। 1982 में वो पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए थे।
देश के13वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई, 2012 को शपथ ली थी। पांच दशकों का उनका राजनीतिक जीवन बेदाग रहा है। वो देश के रक्षा मंत्री से लेकर वित्त मंत्री और विदेश मंत्री तक की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वो गांधी-नेहरू परिवार में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के साथ काम कर चुके हैं।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत में अभी भी कोई सुधार नहीं हुआ है। वह अभी भी वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। आर्मी के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल ने आज (14 अगस्त) सुबह बुलेटिन जारी कर पूर्व राष्ट्रपति के बारे में जानकारी दी है। अस्पताल ने बुलेटिन में कहा है, "माननीय श्री प्रणब मुखर्जी की स्थिति आज सुबह (14 अगस्त 2020) तक अपरिवर्तित है। वह गहन देखभाल में है और वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। वर्तमान में उनके महत्वपूर्ण पैरामीटर स्थिर हैं।"
प्रणब मुखर्जी मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में साल 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री थे। तभी से उनका मेडिकल रिकॉर्ड आर्मी डॉक्टर मेंटेंन कर रहे हैं। उनके बेटे ने ने बताया कि इसी वजह से उन्हें आर्मी के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। अभिजीत ने बताया कि अस्पताल में बर्ती किए जाने के बाद से वह अभी तक चार बार ही उन्हें देख पाए हैं।
रविवार (10 अगस्त) को नई दिल्ली के राजाजी मार्ग पर स्थित अपने सरकारी आवास में 84 वर्षीय प्रणब मुखर्जी गिर गए थे। इससे उनके ब्रेन में ब्लॉ क्लॉटिंग हो गई थी। इसके बाद उन्हें सेना के आरआर हॉस्पिटल में लाया गया था। वहां उनके मस्तिष्क री सर्जरी हुई लेकिन उसके बाद से उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और वो कॉमा में चले गए।
पूर्व राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने बताया कि वेंटिलेटर पर जाने से एक हफ्ते से भी पहले उन्होंने (प्रणब मुखर्जी) बुलाकर गांव से कटहल लाने को कहा था। इसके बाद अभिजीत पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के अपने पैतृक गांव मिराती पहुंचे और वहां से 25 किलो का एक कटहल लेकर आए थे। तीन अगस्त को अभिजीत ने कोलकाता से ट्रेन पकड़ी थी। अभिजीत के मुताबिक, प्रणब दा और उन्हें रेल की यात्रा अच्छी लगती है। 60 साल के अभिजीत ने बताया कि कटहल खाने के बाद भी प्रणब मुर्जी का शुगर लेवल नहीं बढ़ा था।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत में अभी भी कोई सुधार नहीं हुआ है। वह अभी भी वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। आर्मी के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल ने बुलेटिन जारी कर पूर्व राष्ट्रपति के बारे में जानकारी दी है। अस्पताल के मुताबिक उनके सभी अहम अंग काम कर रहे हैं लेकिन वो कॉमा में हैं।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर उपचार का असर हो रहा है और उनकी हालत स्थिर हैं। उनके बेटे और सांसद अभिजीत मुखर्जी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। प्रणब मुखर्जी (84) को 10 अगस्त को यहां सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनकी मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। कोविड-19 जांच में उनके संक्रमित होने की भी पुष्टि हुई थी। दिन में अस्पताल ने एक बयान में कहा था , ‘‘ श्री प्रणब मुखर्जी की हालत में आज सुबह भी कोई सुधार नहीं आया। वह गहरी बेहोशी में है और अब भी जीवनरक्षक प्रणाली पर हैं।’’
इस बीच, पूर्व राष्ट्रपति के स्वास्थ्य को लेकर आ रही खबरों से नाराज उनके बेटे एवं पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी ने कहा, ‘‘ मेरे पिता श्री प्रणब मुखर्जी अभी जिंदा है और ‘हेमोडायनामिक’ तौर पर स्थिर हैं।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ कई वरिष्ठ पत्रकारों के सोशल मीडिया पर गलत खबरें फैलाने से स्पष्ट हो गया है कि भारत में मीडिया फर्जी खबरों की एक फैक्टरी बन गई है।’’ मुखर्जी की बेटी एंव कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी ट्वीट किया कि मेरे पिता के बारे में आ रही खबरें गलत हैं। मैं अनुरोध करती हूं, विशेषकर मीडिया से कि मुझे फोन ना करे.... ताकि अस्पताल से कोई भी अद्यतन जानकारी आने के समय मेरा फोन ‘बिजी’ ना हो। प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति थे।
अस्पताल ने एक बयान में कहा था, ‘‘ श्री प्रणब मुखर्जी की हालत में आज सुबह भी कोई सुधार नहीं आया। वह गहरी बेहोशी में है और अब भी जीवनरक्षक प्रणाली पर हैं।’’ अभिजीत मुखर्जी ने बाद में ट्वीट किया, ‘‘ मेरे पिता जुझारू हैं और हमेशा रहे हैं। उपचार का उन पर धीरे-धीरे असर हो रहा है। मैं अपने पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की सभी शुभेच्छुओं से कामना करने की अपील करता हूं। हमें उनकी जरूरत है।’’
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर उपचार का असर हो रहा है और उनकी हालत स्थिर हैं। उनके बेटे और सांसद अभिजीत मुखर्जी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। प्रणब मुखर्जी (84) को 10 अगस्त को यहां सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनकी मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। कोविड-19 जांच में उनके संक्रमित होने की भी पुष्टि हुई थी। दिन में अस्पताल ने एक बयान में कहा था , ‘‘ श्री प्रणब मुखर्जी की हालत में आज सुबह भी कोई सुधार नहीं आया। वह गहरी बेहोशी में है और अब भी जीवनरक्षक प्रणाली पर हैं।’’
84 साल के मुखर्जी 2012 से लेकर 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे। दिल और ब्लडप्रेशर के मरीज होने के कारण वह इस महामारी के दौरान बहुत सतर्कता बरत रहे थे। यहां तक की उन्होंने अपनी मीटिंग भी कम कर दी थी, वो कोरोना से भी पॉजिटिव हैं।
प्रणब मुखर्जी की छवि एक गंभीर और शांत राजनेता की है। हालांकि एक मौका ऐसा भी आया था जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राजदीप सरदेसाई पर बुरी तरह बिफर पड़े थे और उन्हें नसीहत दे दी थी। वाकया साल 2017 का है, जब राजदीप सरदेसाई प्रणब मुखर्जी का इंटरव्यू कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति से एक सवाल पूछा। मुखर्जी इस सवाल का जवाब देते ही कि राजदीप ने उन्हें बीच में टोकते हुए एक और सवाल पूछ लिया। इस पर प्रणब मुखर्जी झल्ला गए। उन्होंने राजदीप से कहा, ‘मुझे पूरा कर लेने दीजिए… मैं आपको याद दिला रहा हूं कि आप एक पूर्व राष्ट्रपति से बातचीत कर रहे हैं, इसलिए सलीका मत भूलिए’। प्रणब मुखर्जी यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, ‘माफ कीजिएगा मैं टीवी स्क्रीन पर दिखने के लिए उतावला नहीं हूं। आपने मुझे आमंत्रित किया है…। पहली बात तो यह कि आप इस तरीके से आवाज ऊंची नहीं कर सकते हैं…मैं आपके सवालों का जवाब दे रहा हूं’। प्रणब मुखर्जी के टोकने के बाद राजदीप सरदेसाई ने इंटरव्यू के बीच में ही उनसे माफी मांगी।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पिछले साल भारत रत्न हासिल हुआ था। राष्ट्रपति की बेटी ने अपने ट्वीट में लिखा, 'पिछले साल आठ अगस्त मेरी जिंदगी का सबसे खुशी भरा दिन था जब मेरे पिता ने भारत रत्न हासिल किया था. ठीक एक साल बाद, 10 अगस्त को वे बीमार हो गए।