पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने संस्मरण में मोदी सरकार और पीएम मोदी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। सरकार के कई फैसलों को उन्होंने काफी बारीकी से देखा और उसकी आलोचना भी की। उन्होंने अपनी किताब में यह भी लिखा कि पहले कार्यकाल में मोदी सरकार अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी भी ठीक से नहीं निभा पाई और संसद के सत्र ठीक से नहीं चले। उन्होंने कहा कि पहले कार्यकाल के दौरान मोदी का कार्यशैली ‘तानाशाही’ थी। उन्होंने पीएम मोदी की अचानक पाकिस्तान यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि बिना बुलाए ही अनावश्यक रूप से नवाज शरीफ से मिलने चले जाना दोनों देशों के संबंधों के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।
रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशत उनके अंतिम संस्करण ‘द प्रेजिडेंशल ईयर’ में उन्होंने अरुणाचल प्रदेश सरकार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। उन्होंने यह भी लिखा कि नोटबंदी करने से पहले उनसे कोई सलाह नहीं ली गई थी और कदम उठाने के बाद उनसे समर्थन मांगा गया। प्रणब मुखर्जी अपने स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नहीं करते थे। रिपब्लिक डे पर चीफ गेस्ट के रूप में जब बराक ओबमा भारत आए तो उन्होंने साफ कह दिया था कि उन्हें भारत के राष्ट्रपति के साथ ही समारोह में जाना होगा और उन्हें यहां की सुरक्षा व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए।

प्रणब मुखर्जी में संस्मरण में लिखा, ‘यह कहना की मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जापान के साथ संबंध अच्छे हुए हैं, गलत है। जापान के साथ 2014 से पहले भी बहुत अच्छे संबंध थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भी शिंजो आबे भारत आ चुके थे।’ पूर्व राष्ट्रपति ने सर्जिकल स्ट्राइक को भी सामान्य मिलिटरी ऑपरेशन बताया जो कि पाकिस्तान की हरकत के विरोध में की गई थी। उन्होंने कहा, ‘सेना की इस कवायद का इस तरह प्रचार करना उचित नहीं था। इस ऑपरेशन से हमें कुछ हासिल नहीं हुआ।’
मुखर्जी ने यह भी कहा कि नोटबंदी के कई उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाए। उनका कहना था कि नोटबंदी की योजना के बारे में उन्हें भी जानकारी नहीं थी। योजना आयोग को खत्म करने के बारे में भी उन्होंने कहा कि इस कदम का विरोध करके वह कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि यह सरकार की एक बहुत बड़ी गलती थी।