पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। पंजाब की सियासत में अपनी राजनीति से एक अमिट छाप छोड़ने वाले बादल पांच बार मुख्यमंत्री बने थे। उन्हें सबसे युवा और सबसे उम्रदराज सीएम होने का तमगा भी मिला था। आजादी के बाद जब पंजाब में मुश्किल दौर चल रहा था, हिंसा चरम पर थी, तब भी प्रकाश सिंह बादल ने स्थिति को काबू करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनका सियासी सफर कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा। उन्होंने सत्ता का सुख भी भोगा और सियासी वनवास का भी अनुभव किया।
20 साल की उम्र में सियासत का आगाज
प्रकाश सिंह बादल सियासत के एक मंझे हुए खिलाड़ी थे, इसी वजह से 20 साल की उम्र में ही उन्होंने सरपंच का चुनाव जीत लिया था। ये साल 1947 की बात थी जब देश बस आजाद ही हुआ था। इसके बाद बादल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ठीक 10 साल बाद वे पहली बार पंजाब विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हो लिए। इसके बाद उनकी सियासी पारी ने अलग ही रफ्तार पकड़ी और देखते ही देखते वे सरकार में मंत्री तक बन गए। जब पंजाब में गुरनाम सिंह की सरकार थी, तब युवा प्रकाश सिंह बादल पर काफी भरोसा जताया गया। उन्हें सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशु पालन जैसे कई मंत्रालय दिए गए। बड़ी बात ये रही कि एक समय ऐसा भी था जब पंजाब की सियासत से दूर बादल को केंद्र की राजनीति में सेवा देने का मौका मिला।
10 बार विधानसभा पहुंचे बादल
ये बात 1977 की रही जब मोरारजी देसाई की सरकार में करीब ढाई महीने के लिए प्रकाश सिंह बादल को कृषि और किसान कल्याण मंत्री बनाया गया था। लेकिन उनकी सियासी पारी का ये सिर्फ एक मौका ही रहा क्योंकि पंजाब की राजनीति से वे खुद को कभी दूर नहीं रख पाए और हमेशा उसी के इर्द-गिर्द रहे। उनकी उसी सियासत की वजह से उन्हें पंजाब की राजनीति का पितामाह भी कहा जाने लगा था।वे सिर्फ रिकॉर्ड पांच बार राज्य से मुख्यमंत्री ही नहीं रहे, बल्कि 10 बार विधानसभा भी जीतकर पहुंचे थे। सबसे पहले उन्होंने साल 1970 में पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, इसके बाद 1977 में भी उन्होंने राज्य की कमान संभाली।
बीजेपी से सियासी गठबंधन वाला दांव और सत्ता वापसी
इसके बाद उनकी पारी में ऐसा वक्त आया जब वे पूरे 20 सालों तक सीएम नहीं बन पाए। इसके कई कारण रहे, लेकिन बाद में उन्होंने फिर सूझबूझ दिखाते हुए बीजेपी से करीबियां बढ़ाईं और उन्हें उसका सियासी फल भी मिला। साल 1997 में पंजाब में चुनाव हुए और पहली बार राज्य में अकाली-बीजेपी के गठबंधन वाली सरकार बनी। उस चुनाव ने एक तरफ बादल को फिर सीएम बनने का मौका दिया, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को राज्य में मजबूत होने का अवसर मिला। इसके बाद साल 2007 और फिर 2012 में भी प्रकाश सिंह बादल की बतौर पंजाब सीएम ताजपोशी हुई। इस तरह वे अपने राजनीतिक करियर में पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 1992 उनकी सियासी पारी एक साल जरूर रहा जब वे विधायक नहीं बन पाए थे क्योंकि तब अकाली दल ने ही विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर दिया था।
लांबी सीट और लंबे समय तक अजय रहने वाला ट्रेंड
जानकारी के लिए बता दें कि प्रकाश सिंह बादल ने पिछले साल पंजाब विधानसभा के लिए अपना आखिरी चुनाव लड़ा था। प्रकाश सिंह बादल को इस चुनाव में अपने गढ़ में करारी हार का सामना करना पड़ा। पिछले साल हुए चुनाव में प्रकाश सिंह बादल आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह से करीब 12 हजार वोटों से हार गए। इससे पहले लांबी विधानसभा सीट पर प्रकाश सिंह बादल ने रिकॉर्ड 5 बार लगातार जीत दर्ज की थी। वह 1997 से लगातार यहां पर जीत रहे थे।
लांबी सीट को लेकर कहा जाने लगा था कि यहां से प्रकाश सिंह बादल को कोई नहीं हरा सकता। इसका अपना कारण भी था क्योंकि साल 1997 से वे लगातार यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे। उनके से पहले इस सीट पर तीन पर कांग्रेस की जीत हुई थी, एक बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार भी जीते, बाद में प्रकाश सिंह बादल के छोटे भाई गुरदास सिंह बादल भी यहां जीते। लेकिन फिर 1997 में खुद प्रकाश सिंह बादल ने उम्मीदवारी ठोकी और लंबे समय तक इस सीट पर अजय रहे।
2020 में बीजेपी से अलग राह, वापस किया पद्म विभूषण
वैसे प्रकाश सिंह बादल के सियासी सफर में बीजेपी का भी अहम योगदान रहा, जो साझेदारी 1996 में शुरू हुई, वो 2020 तक मजबूती के साथ चलती रही। लेकिन साल 2020 में जब मोदी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई, पंजाब में किसानों का गुस्सा फूटा, ये देख अकाली दल ने कई सालों बाद बीजेपी से अपनी राह अलग कर ली। बड़ी बात ये रही कि तब पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म विभूषण सम्मान भी वापस कर दिया. ऐसे ही थे बादल, अपने विचारों के पक्के, इरादों के अडिग।