देश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह अर्थव्यवस्था का तीसरा घटक माना जाता है। पहला घटक प्राथमिक क्षेत्र है, जिसमें कृषि, वानिकी, खनन और मछली पालन आदि जैसी गतिविधियां शामिल है। द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण और निर्माण कार्य से जुड़ी क्रियाएं शामिल हैं। तीसरा घटक, सेवा क्षेत्र काफी व्यापक है। इसमें खुदरा और थोक व्यापार, आतिथ्य और पर्यटन सेवाएं, जिनमें होटल, रेस्तरां, ट्रेवल एजंसियों और पर्यटन स्थलों से संबंधित सेवाएं शामिल होती हैं।
बैंकों, बीमा कंपनियों, निवेश फर्मों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाएं भी इसी क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। इसके अंतर्गत स्वास्थ्य सेवाएं, शैक्षणिक संस्थान, सूचना प्रौद्योगिकी, मनोरंजन और मीडिया भी काफी महत्त्वपूर्ण सेवाएं हैं। विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत पेशेवर सेवाएं जैसे कानूनी, लेखा, परामर्श और अन्य व्यावसायिक सेवाएं भी इसमें आती हैं। परिवहन के अंतर्गत माल ढुलाई और लोगों की आवाजाही से संबंधित सेवाएं भी आती हैं।
इस क्षेत्र में लगभग 2.6 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। भारत के कुल वैश्विक निर्यात में सेवा क्षेत्र का लगभग 40 फीसद योगदान है। इस क्षेत्र में वर्ष 2000 और 2021 के बीच कुल विदेशी निवेश के प्रवाह का लगभग 53 फीसद निवेश प्राप्त हुआ। अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर भी काफी संतोषजनक रही है। वित्तवर्ष 2022 में इसकी वृद्धि दर 8.4 फीसद और 2023 में 9.1 फीसद रही।
देश की जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान पचास फीसद से अधिक है। भारत सेवा क्षेत्र में वैश्विक ‘आउटसोर्सिंग’ का केंद्र माना जाता है, विशेष रूप से आइटी, बीपीओ और ज्ञान-आधारित सेवाओं, जैसे साफ्टवेयर इंजीनियरों, डाक्टरों, तकनीकी इंजीनियरों और व्यापार विश्लेषकों सहित कई उच्च कुशल पेशेवरों की सेवाओं का बड़ा निर्यातक है। भारत के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में सेवा क्षेत्र का योगदान चौवन फीसद है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि किसी भी देश का विकास उसके सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। मगर आधुनिक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, जबकि द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। उद्योगों का विकास देश के परिवहन, संचार, बिजली, बैंकिंग आदि जैसी सेवाओं के प्रदर्शन और सुधार पर निर्भर करता है।
परिवहन और संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में बेहतर सेवाओं से देश के भीतर जीवन की गुणवत्ता और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सहायता मिलती है। अच्छी तरह से विकसित सेवा क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार का विस्तार करके देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में भी सहायक होता है।
मगर सेवा क्षेत्र की चुनौतियां कम नहीं हैं। इसमें नियामक जटिलता बड़ी समस्या मानी जाती है। इस क्षेत्र से जुड़े नियम बार-बार बदलते रहते हैं, इनसे सेवा क्षेत्र के कार्य संचालन में कठिनाइयां आती हैं। अपर्याप्त आधारभूत सरंचना जिसमें सड़क, संचार सुविधाएं, बिजली, पानी की कमी जैसी समस्याएं कई बार सेवाओं के कुशल संचालन में बाधा बन जाती है।
भारत के छोटे और मध्यम उद्यम अत्यधिक श्रमप्रधान होते हैं। इनमें उत्पादन के साथ बहुत-सी सहायक सेवाओं की आवश्यकता होती है। इन सेवाओं को प्रदान करने वाले श्रमिकों को पर्याप्त मजदूरी देना और उन्हें काम पर बनाए रखना जरूरी होता है। देश के कई कुशल श्रमिक दूसरे देशों में चले जाते हैं जहां उन्हें बेहतर मजदूरी और कार्य वातावरण मिल जाता है। इस कारण इनमें अप्रशिक्षित या अकुशल कर्मचारियों को काम पर रखना पड़ता है। इसे अक्सर इन उद्यमों के उत्पादों की गुणवत्ता में कमी आ जाती और वे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर पाते।
आधारभूत ढांचागत सुविधाओं की कमी के कारण व्यावसायिक संगठनों की उत्पादन और वितरण लागत अधिक हो जाती है। विश्व व्यापार संगठन के भागीदार और गैर-भागीदार देशों के साथ व्यापार और सेवाओं के क्षेत्र में भारत का व्यापार कई प्रकार की बाजार प्रवेश बाधाओं से बाधित हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र से जुड़ी व्यापक संभावनाएं हैं।
हमारा देश एक सौ बयालीस करोड़ की विशाल जनसंख्या के साथ विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है।सरकार, शिक्षण संस्थाएं और तकनीकी संस्थान मिलजुल कर प्रभावी प्रयास करें और आधारभूत सरंचना का और तेजी से विकास किया जाए तो हमारी मानव शक्ति का सेवा क्षेत्र में अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग किया सकता है।