उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा सामने रखा। कुछ दूसरे बीजेपी शासित राज्यों में भी ऐसे कदम उठाए जाने की चर्चा है। इसको लेकर राजनीतिक बहस भी तेज हो गई है। मामले पर पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि यह बीजेपी द्वारा खेला जा रहा राजनीतिक खेल है जिससे सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और आवेग को तेज किया जा सके। इनका तथ्यों और उस साक्ष्य से कोई लेना-देना नहीं है कि कैसे पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीकों, महिला साक्षरता के प्रसार, महिला सशक्तीकरण, अर्थव्यवस्था की प्रगति, समृद्धि और शहरीकरण के जरिए राज्य दर राज्य प्रजनन दर में तेजी से गिरावट आई है।

जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार के 2018-19 के अपने आर्थिक सर्वेक्षण (अध्याय 7) में उन उपलब्धियों की चर्चा की गई है कि कैसे बीती आधी सदी में शिक्षा और प्रोत्साहन के पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीकों से प्रजनन दर में नाटकीय ढंग से गिरावट आई है। बीजेपी के सांसदों और मुख्यमंत्रियों ने यह पढ़ा ही नहीं, जो मोदी सरकार ने खुद दो साल पहले लिखा था। उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति और नरेंद्र मोदी की अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में दो बच्चों के नियमों को बलपूर्वक लागू कराने का कोई प्रावधान नहीं है। जबरदस्ती करना सबसे अधिक अनावश्यक है। हम बलपूर्वक कदमों के बिना भी प्रजनन के प्रतिस्थापन स्तर को हासिल कर रहे हैं। जबरदस्ती के तरीके संविधान की मूल भावना के खिलाफ भी होते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब ज्यादातर राज्यों में प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर के नीचे है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और उत्तर प्रदेश भी इसे 2025 तक हासिल कर लेंगे और बिहार भी 2030 तक हासिल कर लेगा। जैसे ही प्रतिस्थापन स्तर 2.1 तक पहुंच जाती है और प्रजनन दर गिरने लगती है तो एक या दो पीढ़ियों के बाद जनसंख्या स्थिर हो जाती है या फिर घटने लगती है। केरल और तमिलनाडु में जल्द ही स्थिर जनसंख्या देखने को मिलेगी और 2050 तक या इसके आसपास जनसंख्या में गिरावट भी आ सकती है। यह दूसरे राज्यों में भी होगा।

नेता ने कहा कि चीन पहले से ही अपनी एक बच्चे की नीति से पीछे हट चुका है और पहले से ही बुजुर्ग होती आबादी एवं जल्द आबादी कम होने की समस्या का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा होता है तो हम सरकारी फायदे, चुनाव लड़ने इत्यादि के मकसद के लिए अनिवार्य रूप से या जबरन लाए गए दो बच्चों के नियम का विरोध करेंगे। आखिरकार इसका कोई मतलब नहीं होता है। यह हमेशा से बीजेपी के विभाजनकारी एजेंडे का हिस्सा रहा है। समय-समय पर यह मुद्दा उठाया जाता है। 2000 से 28 गैर सरकारी विधेयक संसद में पेश किए गए हैं ताकि इस मुद्दे को जिंदा रखा जा सके।