मुकेश भारद्वाज
महाभारत में जब कौरव और पांडव सेनाएं महासंग्राम के लिए आमने-सामने थीं तो अपने नाते-रिश्तेदारों को गांडीव के निशाने पर देख युग के महायोद्धा अर्जुन विचलित हो गए और अपने शस्त्र छोड़ दिए। ऐसे में उनके सारथी भगवान कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया और कर्म के महत्व और जीवन की नश्वरता का ज्ञान देकर उन्हें युद्ध के लिए तैयार किया। जिस समय यह हुआ उस समय अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी इसी युद्ध के मैदान में लड़ाई के लिए तत्पर था।
देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रमुख प्रांत हरियाणा की प्रथम भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने प्रदेश में स्कूली स्तर पर गीता पढ़ाने की घोषणा की है। सरकार ने प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए एक विशेष शिक्षा सलाहकार समिति का गठन किया है जिसकी कमान विवादास्पद शिक्षाविद दीना नाथ बत्तरा के सुपुर्द की गई है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े बत्तरा संगठन समर्थित शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के अध्यक्ष हैं। कभी प्रचारक रहे बत्तरा ने अमेरिकी लेखिका वेंडी डोनिगर की हिंदू धर्म पर लिखी पुस्तक का प्रकाशन इस बिना पर रुकवा दिया था कि पुस्तक के अंश लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं।
संयोगवश हरियाणा सरकार की कमान भी एक कट्टर स्वयंसेवक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक मनोहर लाल खट्टर के हाथ में ही है। सोने पर सुहागा केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का यह आह्वान कि गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए। प्रदेश के शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा स्कूल के बच्चों को गीता पढ़ाने को अति उत्साहित हैं। इतना ही नहीं यह उनका राजनीतिक दम खम ही है कि वे शिक्षा के भगवाकरण का दावा छाती ठोंक के करते हैं।
खास बात यह भी है कि गीता लागू करने पर कोई खास विवाद भी नहीं है। ज्यादातर राजनेता कुछ कहने से कतराते हैं और बाकी इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहते। बकौल वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। इसे लागू किया जाए इस पर भी कोई एतराज नहीं। शिक्षा के भगवाकरण पर राम बिलास शर्मा के तर्क कमाल के हैं। ‘‘मेरा पसंदीदा रंग भगवा है, तिरंगा की सबसे ऊंची पट्टी भगवा है। सूर्य की किरणें भी भगवा हैं, ऐसे में कौन है जो भगवाकरण का विरोध करे।’’
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी साफ कह चुके हैं कि उनकी सरकार ने गीता के श्लोकों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया है क्योंकि संस्कृति के बिना कोई शिक्षा हो नहीं सकती और गीता समाज को सही दिशा प्रदान करने वाली है।
कुल मिलाकर गीता लागू हो इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं लेकिन कब लागू हो इस पर मतभेद हो सकता है। पंजाब विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर संजय वडवलकर की माने तो इस फैसले से राजनीति की बू आती है। बडवलकर ने जनसत्ता से कहा, ‘स्वामी विवेकानंद से जब विदेश की धरती पर पूछा गया कि बच्चे पहले गीता पढ़ें या फुटबाल तो उनका जवाब तुरंत था, ‘पहले फुटबाल खेलें। गीता पढ़ने को बहुत समय है।’
खास बात यह भी है कि जिन भगवान श्रीकृष्ण ने गीतोपदेश दिया उनका स्वयं का बचपन खेलते-खाते गुजरा। फिर वह चाहे मक्खन चुराना हो या फिर गोपियों को परेशान करना। उनकी दिव्य शक्तियों को छोड़ दें तो कृष्ण के बचपन पर कवियों व लेखकों ने अपने दिल खोलकर रख दिए हैं और यह सब किस्से उनके बालपन के हैं।
वडवलकर, जिन्होंने कृष्ण के जीवन व उनकी शिक्षा को अपना आदर्श माना है, का यह भी कहना है कि सरकार की स्कूली स्तर पर बच्चों और शिक्षकों से यह अपेक्षा थोड़ी ज्यादा है कि वे आसानी से गीता जैसे गूढ़ ग्रंथ को समझ और समझा सकेंगे।
सरकार ने यह बीड़ा तब उठाया है जब स्कूलों में संस्कृत पढ़ने वाले नहीं है और न ही है पढ़ाने वाले। हरियाणा सरकार ने जनवरी 2012 में संस्कृत शिक्षकों की जो ग्रेडेशन सूची जारी की थी उसके मुताबिक प्रदेश में कुल 545 संस्कृत शिक्षक हैं जिनमें से कई पिछले तीन वर्ष में रिटायर हो गए होंगे। ऐसे में 500 शिक्षकों के दम पर गीता समझने-समझाने का लक्ष्य लगभग असंभव है। भले सरकारी कागजों में इसकी खानापूर्ति हो जाए। शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने प्रदेश में संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा की है, लेकिन कितने?
हरेक स्कूल में एक शिक्षक भी दें तो हजारों शिक्षकों की जरूरत और शिक्षकों की उपलब्धता का आलम यह कि प्राथमिक स्कूलों के 12 हजार से ज्यादा पद खाली हैं जबकि सीनियर सेकंडरी स्कूलों में यह संख्या इससे कहीं ज्यादा है। राज्य के स्कूलों में 26 लाख से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं जिनको गीता और संस्कृत पढ़ाने का वीणा सरकार ने उठाया है। मंत्री ने कह दिया और पाठ्यक्रम में सुधार कर लिया तो बस हो गई गीता लागू? सरकार की घोषणा अभी तो घोषणा ही है। इसे स्कूल शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण समिति के पास भेजा गया है ताकि यह तय हो कि गीता के कौन-कौन से अंश पाठ्यक्रम में शामिल होने हैं।
सरकारी स्कूलों पर सरकार का बस चल भी गया तो निजी स्कूलों में क्या होगा, जहां संस्कृत को ऐच्छिक रूप से लागू करने का भी कोई उत्साह नहीं।
अंग्रेजियत के रंग में रचे बसे इन गैर सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी की अनिवार्यता और फ्रेंच जैसी दूसरी विदेशी भाषाओं को लागू करने की होड़ है। ऐसे में गीता और संस्कृत की अनिवार्यता लागू कर भी दी तो कौन निश्चित करेगा कि गीता उपदेश बच्चे समाहित भी करें। कहीं ऐसा न हो यह भी नैतिक शिक्षा की तरह पाठ्यक्रम की सूची को सज्जित करने का काम ही करें।
जल्दबाजी और अपने केंद्रीय नेतृत्व को खुश करने की होड़ में गीता के प्रचारकों ने अपने मंतव्य की घोषणा से पहले राज्य में इसे लागू करने को लेकर जमीनी हकीकत समझने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वरना यह इल्म होते जरा भी देर न लगती कि जब पढ़ाने वाले ही नहीं तो पढ़ाएंगे कैसे?
सरकार की इस मुद्दे पर मौजूदा स्थिति गीता के ही एक श्लोक में ही पूर्णतया संरक्षित होती है।
किं कर्म किंअकर्मेति कवयोप्यत्र मोहिता:।
तत्ते कर्म प्रवाक्ष्यामि यज्ग्यात्वा मोक्ष्यसेअशुभात्।।
अर्थात् क्या करना चाहिए, क्या नहीं, इसमें सद्ज्ञानियों को भी भ्रम ही रहता है। इसीलिए मैं तेरे लिए कर्म को उद्भासित कर रहा हूं जिसे जानकर तू अशुभ से मुक्त हो जाएगा…। (श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद)
किसने क्या कहा…
हरियाणा सरकार ने भगवद् गीता के श्लोकों को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया है ताकि विद्यार्थी नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बेहतर तरीके से समझ सकें।… मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा
लोगों की गीता में गहन आस्था है इसमें कोई दो राय नहीं। इस महान धार्मिक ग्रंथ को लेकर किसी तरह का विरोधाभास नहीं है। लेकिन इसका राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। शिक्षा के राजनीतिकरण पर हर किसी को एतराज हो सकता है। ऐसे में इस संवेदनशील मुद्दे को हलके में नहीं लिया जा सकता।… भूपेंद्रसिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा
भगवद् गीता सभी समस्याओं का हल है। यह उच्च संस्कृति का प्रमुख स्रोत है। इसके अध्ययन से समाज में गिरते मूल्यों को थामा जा सकेगा। इससे शिक्षा के स्तर को बढ़ावा मिलेगा साथ ही आने वाली पीढ़ी अपनी विरासत को समझ सकेगी।… रामबिलास शर्मा, शिक्षामंत्री, हरियाणा
भगवद् गीता में हर किसी की हर समस्या का हल है। इसीलिए मैंने संसद में कहा था कि श्रीमद्भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाना चाहिए।… सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री
यह शिक्षा का भगवाकरण करने जैसा है। स्कूलों में बच्चे सभी धर्मों के होते हैं ऐसे में किसी को विशेष धार्मिक पुस्तक पढ़ने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है।… दुष्यंत चौटाला, सांसद इनेलो
जब भी हम अपनी संस्कृति, विरासत और इतिहास की बात करते हैं तो राष्ट्रविरोधी ताकतों को समस्या हो ही जाती है।… अनिल विज, स्वास्थ्य मंत्री, हरियाणा