शरद पवार को आजकल हर कोई सियासी अजूबा मान रहा है। वे किस पल कौन सी चाल चलेंगे, कोई नहीं जानता। कभी सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ अपनी अलग पार्टी राकांपा बनाई थी। बाद में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ मिलकर ही न केवल महाराष्ट्र में साझा सरकार चलाई बल्कि खुद भी सोनिया गांधी की अगुआई वाले यूपीए की केंद्र सरकार में मंत्री बने। यूपीए में तो रहे ही, अब कांग्रेस की अगुआई वाले नए बने गठबंधन ‘इंडिया’ में भी शामिल हैं। लेकिन भतीजा अजित पवार भाजपा की अगुआई वाली महाराष्ट्र सरकार में उपमुख्यमंत्री बने हैं।

शरद और अजित के पास कितने विधायक-सांसद

हालांकि अभी तक स्पष्ट नहीं है कि राकांपा के कितने विधायक और सांसद अजित पवार के साथ हैं और कितने शरद पवार के साथ। चुनाव आयोग में जरूर चाचा भतीजे एक-दूसरे से उलझे हैं। पर इसे भी सियासत के जानकार दोनों की नूरा कुश्ती ही बता रहे हैं। विवाद और तेज तो पिछले शनिवार को हुआ जब पुणे में एक उद्योगपति के घर पर चाचा भतीजे के बीच गोपनीय मुलाकात हुई। शुरू में एनसीपी के सूबेदार जयंत पाटिल भी मौजूद थे पर कुछ देर रुककर वे चले गए। चाचा भतीजे के बीच क्या खिचड़ी पकी, कोई नहीं जानता। शरद पवार की सफाई कि राजनीतिक मतभेद अपनी जगह ठहरे पर खून का रिश्ता तो रहेगा ही, पर किसी को यकीन नहीं हुआ।

किसी ने कहा कि भाजपा की तरफ से भतीजा चाचा के लिए केंद्रीय मंत्री पद का प्रस्ताव लेकर आया था तो किसी ने कहा कि पवार की बेटी सुप्रिया सुले जल्द मोदी सरकार में मंत्री बनेंगी। नुक्ताचीनी उद्धव ठाकरे की शिवसेना और महाराष्ट्र की कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने भी की। अटकलें तो यहां तक लगाई जा रही हैं कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी में अब कांग्रेस और उद्धव की शिवसेना ही रहेंगे और दोनों दलों ने सभी 48 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की रणनीति भी बना ली है। हालांकि मराठा छत्रप कहे जाने वाले शरद पवार अभी भी यही सफाई दे रहे हैं कि वे भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि केंद्रीय एजंसियों की गिरफ्त से बचने के लिए अजित पवार अपने समर्थकों सहित भाजपा के साथ गए और इसमें मूक सहमति उनके चाचा की भी होगी।

चाचा-भतीजा में मतभेद नहीं हुआ दूर

विपक्षी दलों के नए बने गठबंधन ‘इंडिया’ में मतभेदों को लेकर खबरें सामने आ रही हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ममता बनर्जी का नाम प्रधानमंत्री के लिए उछाला जाना कांग्रेस और वामदलों को अखरा होगा तो दिल्ली में कांग्रेस की तरफ से सभी सात सीटों की तैयारी की जानकारी से आम आदमी पार्टी नाराज हुई। मतभेद और अनबन राजग के दलों में भी कम नहीं दिख रहे। मसलन बिहार में चाचा-भतीजे दोनों राजग में आ तो जरूर गए पर आपसी मतभेद बरकरार हैं। संदर्भ रामविलास पासवान के भाई और बेटे का है। पार्टी तोड़कर पांच सांसदों के साथ भाई पशुपति कुमार पारस केंद्र सरकार में मंत्री बन गए थे। बेटा चिराग पासवान अकेला ही रह गया। अब दोनों की अदावत हाजीपुर सीट को लेकर है। चिराग चाहते हैं कि हाजीपुर उनके पिता की सीट होने के नाते उन्हें मिले।

अभी चिराग जमुई से सांसद हैं। लेकिन पशुपति कुमार पारस ने कह दिया कि पासवान का असली उत्तराधिकारी मैं हूं। किसकी औकात है जो मुझे हाजीपुर से लड़ने से रोक देगा। हाजीपुर से सांसद हूं और हाजीपुर से ही लडूंगा। ऐसे तो बारह करोड़ की आबादी वाले बिहार से हर कोई कहेगा कि हाजीपुर से लडूंगा पर मैंने 1977 से की है हाजीपुर की सेवा। उत्तर प्रदेश में सुभासपा के नेता ओमप्रकाश राजभर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी तक नाराज हैं। तभी तो विधानसभा सत्र के पहले दिन डिजिटल कारीडोर के उद्घाटन के लिए पहुंचे राजभर को एक अदद कुर्सी तक मयस्सर नहीं हुई। जबकि कांग्रेस की आराधना मिश्रा तक को सम्मान से बिठाया सरकार के इंतजाम बहादुरों ने। राजभर के छह विधायक हैं और कांग्रेस के सिर्फ दो तो क्या फर्क पड़ता है?

चुनावी चेहरा में पीछे वसुंधरा राजे सिंधिया

भाजपा आलाकमान ने राजस्थान में नया नेतृत्व उभारने की रणनीति अपनाई है। गुजरात और उत्तराखंड की तर्ज पर। गुजरात में तो तमाम कद्दावर नेताओं के टिकट ही काट दिए थे भाजपा ने। राजस्थान में भाजपा ने अपनी चुनावी तैयारी तेज कर दी है। पर दो बार सूबे की मुख्यमंत्री रह चुकी और पार्टी की राजस्थान के नजरिए से सबसे कद्दावर नेता कही जाने वाली वसुंधरा राजे पटल से नदारद हैं। यह घोषणा तो खैर पार्टी ने पहले ही कर दी थी कि किसी को भी पहले से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताकर तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं उतरेगी।

नेतृत्व सामूहिक होगा और चेहरा होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा। सूबे के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह ने चुनाव के नजरिए से दो अहम समितियों का एलान किया तो वसुंधरा का नाम गायब दिखा। चुनाव प्रबंधन समिति की कमान उपाध्यक्ष नारायण पंचारिया को दे दी तो संकल्प पत्र समिति का मुखिया केंद्रीय मंत्री और दलित नेता अर्जुनराम मेघवाल को बना दिया। कांग्रेसी भी मानते हैं कि अशोक गहलोत को टक्कर राजे ही दे सकती हैं। मगर भाजपा आलाकमान अपनी रणनीति तय कर चुका है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)