हरियाणा के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह लगभग हर सुबह अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भावुक और प्रेरक पोस्ट करते हैं। बुधवार को भी उन्होंने एक पोस्ट में जीवन के विभिन्न पहलुओं और ख़ास तौर पर अपने काम के बारे में बात की।
हिंदी में लिखे अपने नोट में, सिंह ने समय की अवधारणा के बारे में बात की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह बहुत अलग होती है। उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में उनके प्रवेश और 30 से अधिक वर्षों के अपने करियर के दौरान क्या हासिल किया इस पर भी बात की। ओपी सिंह को अक्टूबर में शीर्ष पद पर नियुक्त किया गया था और वह 31 दिसंबर 2025 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
हरियाणा डीजीपी ने बताया कब आईपीएस में जाने के बारे में सोचा था
अधिकारी ने लिखा, “लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने कब आईपीएस में जाने के बारे में सोचा था। मेरा जवाब है, ‘कभी नहीं।’ मेरे स्कूल और कॉलेज के दिन मज़ेदार थे। परीक्षाएँ अपनी क्षमता दिखाने का एक मौका होती थीं। मैं इतना निडर था कि मुझे लगता था कि मैं वो सब कुछ कर सकता हूँ जो सिर्फ़ दो हाथ-पैर वाला इंसान कर सकता है। किसी ने मुझे बताया था कि सिविल सेवा परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। मैंने कहा, देखते हैं। मैं आईपीएस में पहुँच गया। या तो कोई संघर्ष नहीं था, या फिर मैंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया।”
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59 वर्षीय सिंह ने कहा, “अक्टूबर में मुझे राज्य पुलिस प्रमुख बनने का अवसर मिला। यह एक बड़ी चुनौती थी। हर जगह लोग पूछ रहे थे कि क्या हो रहा है। मैंने कहा, कुछ नहीं। मैंने एक नीति बनाई कि मैं खाली नहीं बैठूँगा, चुप नहीं रहूँगा। बंद कमरों में मीटिंग का खेल खेलने के बजाय, मैं बाहर गया। मैंने पुलिसकर्मियों से कहा कि वे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें और धोखेबाजों और अपराधियों को जेलों में छोड़ दें। सुरक्षा के नाम पर लोगों का जीना मुश्किल न करें। मीडिया के ज़रिए, मैंने लोगों के बारे में ठीक वैसे ही बात की जैसे वे थे।”
1992 बैच के अधिकारी ने आगे कहा, “शुरुआत में लोगों को मेरे निर्देश पसंद आए जैसे अनावश्यक तौलिये हटाना और बड़े आकार की मेज़ों को छोटा करना। दोपहिया और चार पहिया वाहनों पर लगाम कसने से लेकिन उन लोगों को चिढ़ हुई जो इसका दुरुपयोग करते थे। फिर भी, 100 में से 95 लोग मेरी बात से सहमत थे। आज़ादी के सात दशक बाद भी, मुट्ठी भर लोग खुद को क़ानून से ऊपर समझते हैं।”
मेरा सामना ऐसे लोगों से भी होता है जो खुद को ‘डीप स्टेट’ समझते हैं- ओपी सिंह
अपनी बात आगे बढाते हुए डीजीपी ने लिखा, “अब लगभग 50 दिन हो गए हैं। अपराधी या तो जेल में हैं या फिर बेखौफ घूम रहे हैं। पीड़ित और ज़रूरतमंद मेरे दफ्तर में बेखौफ आते हैं और अपनी बात बेखौफ रखते हैं। मैंने उनके लिए ऑडिटोरियम खुला रखा है। मैंने कर्मचारियों से कहा है कि उन्हें कुछ खाने को दें – वे दूर-दूर से आते हैं। दिन में एक-दो बार मेरा सामना ऐसे लोगों से भी होता है जो खुद को ‘डीप स्टेट’ समझते हैं। वे सचमुच मानते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं। यह सुनकर मुझे हंसी आती है” सिंह ने आगे लिखा, “मेरे ज़हन में मुकेश का एक पुराना गाना बजने लगता है – ‘एक दिन सब कुछ कौड़ियों के दाम बिक जाएगा।”
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ओपी सिंह ने लिखा, “ज़िलों और रेंजों में अपने कार्यकाल के दौरान मैं अपने अधीनस्थों को लोगों के प्रति दया दिखाने की सलाह देता रहा। हज़ारों साल की गुलामी के बाद, वे पहली बार आज़ादी की साँस ले रहे थे। वे क़ानून को समझने की कोशिश कर रहे थे। गलतियों और मूर्खता को माफ़ कर दो लेकिन अपराध और धोखाधड़ी के लिए, उससे सख्ती से निपटो। जो ख़ुद कुछ नहीं करते वे दूसरों को सुविधा नहीं दे सकते। मैंने अपने वरिष्ठों से कहा था कि अगर कोई चीज़ मुझे या किसी और को नुकसान पहुँचाए बिना लोगों के लिए फ़ायदेमंद हो तो मुझे निर्देश देने में संकोच न करें। तब से, 34 साल बीत चुके हैं। मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं हुई। कुछ बड़ा करने की चाहत मुझे आगे बढ़ाती रही।”
डीजीपी की सलाह- पुलिसवालों को जादू की झप्पी दीजिए
डीजीपी सिंह ने आगे लिखा, “लोकतंत्र है इसलिए आलोचकों की एक बड़ी फौज है। मैं उनसे बस यही कहूँगा कि अपने अनुयायियों से कहो कि वे कोई भी बात गढ़ने से पहले थोड़ी जाँच-पड़ताल कर लें। वे बकवास करते रहते हैं। पुलिसवाले ही तो हैं जो दिन-रात, अकेले, खुलेआम अपराधियों से लड़ते हैं। वे अकेले घर जाते हैं। अकेले सोते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए कोई सुरक्षा घेरा नहीं होता। वे अपना ख्याल खुद रख सकते हैं लेकिन एक कृतज्ञ नागरिक बनें। उन पुलिसवालों को जादू की झप्पी दीजिए जो आपके लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं।”
