प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुनी मथुरा में रह रहे वीरेंद्र जी के मन की बात। वीरेंद्र जी का पूरा नाम वीरेंद्र कुमार अग्रवाल है। वह कभी अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीब रहे हैं। जनसत्ता ने बीती 11 जनवरी को बकल्लम खुद कॉलम में ‘अब मन की बात सुनने का समय’ शीर्षक से वीरेंद्र जी के मन की बात प्रकाशित की थी।

उस कॉलम में वीरेंद्र जी ने अपनी पीड़ा बताई थी। उनके मुताबिक, ‘‘मैंने आर्य समाज, फिर जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के ध्वज के नीचे ही अपनी राजनीति की। लेकिन अब राजनीति धनार्जन का साधन हो गई है। इससे त्याग का भाव उठ गया है। पहले ऐसा नहीं था। अब गिरफ्तारियां महज कैमरे में कैद होने के लिए होती हैं, जबकि पहले उनका मकसद संघर्ष का होता था।’’

इस आलेख के प्रकाशित होने के बाद पीएमओ ने वीरेंद्र कुमार अग्रवाल की सुध ली। पीएमओ ने फोन पर उनसे जनसत्ता के साथ हुई बातचीत का ब्योरा लिया। यह जानकारी वीरेंद्र कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन करने वाले शख्स ने जनसत्ता में छपी मेरी तमाम बातों की सच्चाई जाननी चाही। उस शख्स से उन्होंने कहा कि जो छपा है, वह मेरी ही कही बातें हैं, साथ ही इसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि देश को बुलेटप्रूफ ट्रेन नहीं, बुलेटप्रूफ जैकेट की जरूरत है। इसके लिए बजट में एक प्रावधान किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार यह काम आज भी कर सकती है। तब फोन करने वाले शख्स ने कहा कि आपकी बात रिकॉर्ड कर ली गई है।

ये बातें बताते हुए वीरेंद्र ने जी ने कहा कि उनकी पार्टी (भाजपा) की छवि तभी बनेगी, जब नेता चापलूसी को दरकिनार कर अपने अनुभवों को शीर्ष नेतृत्व के सामने बिना हिचक और डर के रखेंगे। बकल्लम खुद कॉलम में छपे आलेख में पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं के संबंधों को याद करते हुए आज की स्थिति से आहत दिखे थे वीरेंद्र जी।

उन्होंने अटल जी के वक्त को याद करते हुए बताया था कि कैसे अटल जी उनकी बेटी का हाथ पकड़ कर स्कूल में दाखिला दिलाने पहुंच गए थे। इस सरकार के मार्गदर्शक मंडल की उपेक्षा पर चिंतित वीरेंद्र जी ने कहा था कि ‘‘मेरा अपना कुछ दांव पर नहीं, न कोई चाहत। मेरा तो जो भी है वह पार्टी के लिए है, जिसे कई वर्षों की मेहनत के बाद सत्ता सुख मिला है। ऐसा न हो कि यह सब यों ही व्यर्थ चला जाए।’’