PM Modi 2024 Performance Analysis: देश की सियासत ऐसी है कि यहां पर कई नेताओं को एक हार के बाद वापसी करने का मौका तक नहीं मिल पाता। लेफिर फिर बात जब नरेंद्र दोमोदर दास मोदी की आती है तो सियासत को नए ढ़ंग से समझना पड़ जाता है। इस समय एक सवाल जहन में लगातार आ रहा है- आखिर 2024 पीएम मोदी के लिए कैसा बीता है? सवाल इसलिए क्योंकि पिछले 12 महीनों में इतने उतार-चढ़ाव देखने को मिल गए हैं, सियासत इतनी बार पलटी मारी है कि सबकुछ रोलर कोस्टर सा दिखाई पड़ता है।

लोकसभा चुनाव की तैयारी और जरूरत से ज्यादा विश्वास

इस साल की शुरुआत पीएम मोदी के लिए राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से हुई थी। वो ऐतिहासिक लम्हा लोगों की धार्मिक भावनाओं के लिहाज से तो महत्वपूर्ण रहा ही, इसके अलावा सियासी तौर पर भी इसके मायने अलग ही निकाले गए। ऐसा कहा जाने लगा कि पीएम मोदी अब हिंदुत्व की लहर पर सवाल होकर लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जनादेश हासिल कर लेंगे। उसी हौसले की वजह से उन्होंने नारा दे दिया- अब की बार 400 पार। दावा हुआ कि खुद बीजेपी अपने दम पर 370 सीटें लाएगी और एनडीए का आंकड़ा 400 पार चला जाएगा।

जब बीजेपी से भी बड़े लगने लगे थे मोदी

पीएम मोदी का जो अंदाज शायद 10 सालों में कभी दिखाई नहीं दिया था, वैसा रूप तब देखने को मिला। अप्रैल में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई थी, हर रैली में पीएम मोदी की तरफ से कुछ ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे थे जिन्हें ‘हिंदू-मुस्लिम’ के चश्मे से देखा जाने लगा। इसके ऊपर पीएम मोदी ने उस चुनाव में खुद की निजी छवि को जिस तरह से सबसे आगे रखा, जिस तरह से हर दूसरे बयान में उन्होंने ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे का इस्तेमाल किया, यह बताने के लिए काफी रहा कि व्यक्तित्व बीजेपी से भी बड़ा बन चुका था।

लेडी माउंटबेटन एडविना और पंडित नेहरू का रिश्ता

असल नतीजों का रियलिटी चैक और विपक्ष की मॉरल विक्ट्री

अब अगर उस अंदाज के साथ बीजेपी को प्रचंड जनादेश मिलता, सही मायनों में पीएम मोदी को सियासी तौर पर उनके समर्थक अजय घोषित कर सकते थे। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और जीतकर भी पीएम मोदी ने खुद को हारा हुआ ही महसूस किया। उसका कारण यह था कि नारा 400 पार का दिया गया, लेकिन खाते में सिर्फ 240 सीटें गईं। तीसरी बार केंद्र में सरकार तो बनाई गई, लेकिन खुद वे इसे ‘मोदी सरकार’ नहीं कह पाए। उनकी सियासी कुर्सी का एक पैर अगर नीतीश कुमार बने तो दूसरा पैर चंद्रबाबू नायडू रहे।

कमजोर बहुमत और चुनौतियां अनेक

हर तरफ खबर चल पड़ी थी इस बार नरेंद्र मोदी ज्यादा मजबूत नहीं है, इस बार उनके पास अपने दम पर बहुमत नहीं है। सारे विश्लेषण इस दिशा में इसलिए हो रहे थे क्योंकि पीएम मोदी ने खुद के लिए और बीजेपी के लिए ऐसे टारगेट सेट कर दिए थे कि तीसरी टर्म मिलने के बावजूद भी कहा जाने लगा कि मॉरल विक्ट्री तो विपक्ष को मिली है। अब यह कहने के पीछे भी तर्क यह रहा कि कांग्रेस ने 2019 की तुलना में अपनी सीटें दोगुनी कर लीं। ऐसे में तीसरे कार्यकाल में हारने के बाद भी कांग्रेस के सामने चुनौतियां कम और बीजेपी के सामने ज्यादा खड़ी हो गईं।

हरियाणा चुनाव और पासा फिर पलट गया

अब यह हाल पीएम मोदी के लिए लोकसभा चुनाव के वक्त तक था। उसके बाद कुछ महीने भी ऐसे ही गुजर गए, कई बड़े विधेयक पारित नहीं हो पा रहे थे, कम बहुमत की वजह से कई बार पैर पीछे खींचने पड़ रहे थे। लगने लगा था कि इस बार यह पुराने वाले सशक्त मोदी नहीं है। लेकिन फिर सियासत ने बीजेपी और पीएम मोदी दोनों को पासा पलटने का मौका दिया और दस्तक दिया हरियाणा चुनाव ने।

हरियाणा को लेकर जितने भी ओपिनियन पोल आ रहे थे, माना जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार आएगी। लेकिन बीजेपी की रणनीति, सैनी के ओबीसी चेहरे और पीएम मोदी के रणनीति के तहत किए गए कम प्रचार ने ऐसा कमाल किया कि कांग्रेस के हाथों से जीती हुई बाजी छिन गई। पीएम मोदी का कॉन्फिडेंस बूस्ट हुआ, फिर उनकी लोकप्रियता का लोहा माने जाने लगा।

महाराष्ट्र जनादेश और फिर चल गया मोदी मैजिक

अब पीएम मोदी के लिए बड़ी चुनौती इस साल यह रही कि उनके हर प्रदर्शन को लोकसभा चुनाव के नतीजों से तुलना कर देखा जा रहा था। इसी वजह से हरियाणा जीत के बाद कहा गया कि महाराष्ट्र में तो महायुति वापस नहीं आ सकती। वहां तो एंटी इनकमबेंसी जबरदस्त चल रही है। लेकिन फिर पीएम मोदी जमीन पर उतरे, योगी के बंटेंगे तो कटेंगे नारे को सहारा देते हुए ‘एक हैं तो सेफ हैं’ वाला दांव चला और महाराष्ट्र की सियासी फिजा भी बदल गई। ऐतिसाहिक जनादेश महायुति को मिला, सीटों का आंकड़ा 200 पार चला गया और पीएम मोदी का विश्वास सातवें आसमान पर।

रिफॉर्म पॉलिटिक्स पर लौट आए मोदी

माना झारखंड में हार मिली, वहां प्रचार के बाद भी सोरेन की सत्ता को चुनौती नहीं मिल पाई, लेकिन सियासी गलियारों में महाराष्ट्र की वजह से मैसेज जा चुका था- मोदी इज बैक, मोदी मैजिक इज बैक। असल में अब तो कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने लोकसभा में लगे झटके से सीख लेते हुए और ज्यादा मेहनत की और उन्हें वापसी करने का बड़ा मौका मिल गया। उसी वापसी का नतीजा है कि फिर देश उनके नेतृत्व कुछ बड़े रिफॉर्म होते देख सकता है। एक देश एक चुनाव का बिल लोकसभा में पेश हो चुका है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भी चर्चाएं तेज चल रही हैं। यानी कि लोकसभा का झटका, विधानसभा के चुनावों में फायदे से कम हो गया। इसी वजह से तो कहना पड़ रहा है- हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, या कहना चाहिए मोदी कहते हैं।