प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम के दौरान भारतीय वायु सेना द्वारा अपने एयरक्राफ्ट में बायोफ्यूल के इस्तेमाल की तारीफ की। पीएम मोदी ने कहा कि इस तरह के अविष्कार कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ ही देश के ऑयल आयात के बिल को भी कम करेगा।

बता दें कि भारतीय वायुसेना के एन-32 एयरक्राफ्ट के ईंधन में 10% बायोफ्यूल मिक्स करके इस्तेमाल किया गया था। इस एयरक्राफ्ट ने लेह के कुशक बाकुला रिमपोचे एयरपोर्ट से 31 जनवरी को उड़ान भरी थी। यह पहली घटना थी, जिसमें किसी एयरक्राफ्ट में बायोफ्यूल का इस्तेमाल किया गया है।

क्या है बायोफ्यूलः बायोफ्यूल एक अखाद्य (ना खाया जाने वाला) और वनस्पति से मिलने वाले तेल से बनाया जाता है। बायोफ्यूल जेट्रोफा तेल से बनाया जाता है, जिसे छत्तीसगढ़ बायोडीजल डेवलेपमेंट अथॉरिटी द्वारा बनाया गया है। इसके बाद इसे CSIR-IIP देहरादून द्वारा प्रोसेस किया गया है।

सरकारी रिलीज के मुताबिक एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल करन से पहले बायो फ्यूल को छत्तीसगढ़ एयर बेस पर वैलिडेट किया गया था। उल्लेखनीय है कि लेह समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह दुनिया के सबसे मुश्किल और ऊंचे एयरफील्ड में गिना जाता है। साफ मौसम में भी लेह में एयरक्राफ्ट को ऑपरेट करना काफी मुश्किल काम है, ऐसे में इन मुश्किल परिस्थितियों में भी बायोजेट फ्यूल से एयरक्राफ्ट का उड़ान भरना और सफल लैंडिंग काफी महत्वपूर्ण है।

बायोफ्यूल से एयरक्राफ्ट उड़ाने की प्रक्रिया की निगरानी पायलट और सिस्टम्स टेस्टिंग इस्टैबलिशमेंट, बेंगलुरू द्वारा की गई। बायो फ्यूल से एयरक्राफ्ट उड़ाने की घटना से भारतीय वायुसेना की नई तकनीक को अपनाने की खासियत का भी पता चलता है।

बायोफ्यूल से विमान उड़ाने की तकनीत का विकास CSIR-IIP द्वारा 2013 में डेवलेप किया गया था। हालांकि इसे कमर्शियल उड़ानों में अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है। 2018 में एयरफोर्स ने इस प्रोजेक्ट को स्पॉन्सर किया और इसका टेस्ट किया।