गरीबी को लेकर देश में बड़े-बड़े दावे होते रहे हैं। मोदी सरकार ने भी पिछले दिनों दावा किया था कि देश में महागरीबी खत्म हो गई है। अब एक अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स ने मोदी सरकार के दावे पर मुहर लगा दी है। इसमें कहा गया कि अब भारत महागरीबी को खत्म कर चुका है। थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबी अनुपात में तेज गिरावट आई है जो कि घरेलू खपत में इजाफे के चलते महसूस किया जा सकता है। जानकारी के मुताबिक यह रिपोर्ट सुरजीत भल्ला और करण भसीन द्वारा तैयार की गई है।

ब्रुकिंग्स की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यह पुनर्वितरण पर सरकार की मजबूत नीति का परिणाम है जिससे पिछले एक दशक में भारत में मजबूत समावेशी विकास देखा गया है। भारत ने अभी 2022-23 के लिए अपना आधिकारिक उपभोग व्यय डेटा जारी किया है, जो दस वर्षों में भारत के लिए पहला आधिकारिक सर्वेक्षण-आधारित गरीबी अनुमान प्रदान करता है।

ब्रुकिंग्स के अनुसार उच्च वृद्धि और असमानता में बड़ी गिरावट की मदद से भारत में गरीबी उन्मूलन में मदद मिली है और गरीबी रेखा के नीचे के लोगों में क्रय शक्ति समानता 1.9 डॉलर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गई है। गौरतलब है कि भारत ने हाल ही में 2022-23 के लिए अपना आधिकारिक उपभोग व्यय डेटा (Consumption Expenditure Data) जारी किया है, जिनके आंकड़ों से पिछले 10 वर्षों में भारत की गरीबी को लेकर अनुमान लगाया जा सकता है।

गरीबी का नया पैमाना सेट करे भारत

साल 2011-12 के मुकाबले वर्ष 2022-23 में प्रति व्यक्ति घरेलू मासिक खर्च दोगुने से ज्यादा हो गया है। भारत के लिए अब समय आ गया है कि वह अन्य देशों की तरह गरीबी की उच्च रेखा अपनाए। गरीबी की उच्च रेखा अपनाने से सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को फिर से परिभाषित करने का मौका मिलेगा, जिससे जरूरतमंद लोगों की बेहतर पहचान हो सकेगी और उन्हें अधिक सहायता दी जा सकेगी।

हेडकाउंट पॉवर्टी रेशियो यानी HSR के मुताबिक साल 2011-12 में 12.2 फीसदी से घटकर 2022-23 में 2 प्रतिशत हो गया है। सरकार द्वारा आबादी के लगभग दो-तिहाई लोगों को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन (गेहूं और चावल) और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा के उपयोग को इस आंकड़े में शामिल नहीं किया गया है।

शहरी और ग्रामीण असमानता में गिरावट

यूएस की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विश्व बैंक के अनुमानों की तुलना में भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या काफी कम है। खास बात यह भी है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में असमानता में बड़ी गिरावट भी देखी गई है। शहरी गिनी इंडेक्स 36.7 से घटकर 31.9 हो गया और ग्रामीण गिनी इंडेक्स 28.7 से घटकर 27.0 हो गया है।

बता दें कि गिनी इंडेक्स को आमतौर पर आर्थिक असमानता के पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जो एक जनसंख्या के बीच आय या संपत्ति के वितरण को मापता है।