रामानुज पाठक
प्लास्टिक के कुल उत्पादन का आधे से अधिक भाग एकल उपयोगी प्लास्टिक है। 1.9 से 2.3 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल तालाबों, नदियों और समुद्र में फेंक दिया जाता है। स्थिति की इस गंभीरता को समझते हुए पिछले साल प्रधानमंत्री ने लोगों से प्लास्टिक प्रदूषण रोकने की अपील की थी। मगर प्रतिबंध के बावजूद विकल्पहीनता के कारण यह धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है।
सिंथेटिक फाइबर की तरह प्लास्टिक भी एक पालीमर है। जब रासायनिक पदार्थों की छोटी-छोटी इकाइयां मिलकर एक बड़ी इकाई बनाती हैं तो उसे पालीमर कहते हैं। ये पालीमर प्राकृतिक भी होते हैं, जैसे- सूत, रेशम आदि और ये कृत्रिम भी होते हैं, जैसे सिंथेटिक फाइबर यानी नायलान, पालिस्टर, रेयान, एक्रेलिक आदि। प्रकृति के आधार पर प्लास्टिक दो प्रकार के होते हैं- थर्मोप्लास्टिक और थर्मोसेटिंग प्लास्टिक। जहां थर्मोप्लास्टिक गर्म होने पर आसानी से अपना आकार बदल लेते हैं, वहीं थर्मोसेटिंग प्लास्टिक गर्म होने के बाद भी अपना आकार नहीं बदलते।
पालीथिन और पीवीसी थर्मोप्लास्टिक के उदाहरण हैं, जिनका प्रयोग खिलौनों और विभिन्न प्रकार के डिब्बे बनाने में किया जाता है। बेकेलाइट और मेलामाइन थर्मोसेटिंग प्लास्टिक के उदाहरण हैं, जिनका प्रयोग बिजली के सामान बनाने में किया जाता है। चूंकि प्लास्टिक जल और हवा के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता और भार में हल्का, मजबूत, टिकाऊ और धातु की अपेक्षा सस्ता होता है, इसका उद्योग और घरेलू सामान बनाने में काफी प्रयोग होता है।
भले प्लास्टिक के कई अहम उपयोग हैं, लेकिन एकल उपयोगी यानी सिंगल यूज प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता बढ़ती ही जा रही है। इसके चलते पर्यावरण संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस प्लास्टिक का निस्तारण बड़ी समस्या है। गौरतलब है कि जो पदार्थ बैक्टीरिया आदि की क्रियाओं से अपघटित होते हैं, वे बायोडिग्रेडेबल यानी गलनीय कहलाते हैं।
जो इन क्रियाओं से अपघटित नहीं होते वे ‘नान- बायोडिग्रेडेबल’ यानी अगलनीय कहलाते हैं, उनमें प्लास्टिक भी आता है। अध्ययन बताते हैं कि प्लास्टिक को पूरी तरह अपघटित होने में सौ से पांच सौ साल तक लग जाते हैं। इसके अलावा, इन सिंथेटिक पदार्थों के जलने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है और ये आसानी से पूरी तरह जलते भी नहीं हैं। जलाने की प्रक्रिया में ये वातावरण में काफी विषैला धुआं भी छोड़ते हैं, जो वायु प्रदूषण का कारण बनता है। कचरे में फेंका हुआ प्लास्टिक हमारे प्राकृतिक स्थलीय, स्वच्छ जल और समुद्री आवासों को प्रदूषित करता है।
हालांकि समुद्र के नितल या सी-बेड पर थोड़ी मात्रा में ही प्लास्टिक कचरा पाया जाता है, लेकिन चिंता की बात यह है कि गहरे समुद्र में सूर्य का प्रकाश न पहुंचने और कम तापमान होने के कारण इनकी गलन दर बहुत कम है। वहीं, हल्के प्लास्टिक अपनी उत्प्लावी प्रकृति के कारण समुद्र की सतह पर बने रहते और समुद्री धाराओं की मदद से समुद्र में प्लास्टिक के ‘गेयर’ बनाते हैं। एक बार गेयर के अंदर प्लास्टिक के आ जाने के बाद ये तब तक उससे बाहर नहीं निकल पाते, जब तक कि सूर्य की किरणें उन्हें माइक्रोप्लास्टिक में न बदल दें। आजकल माइक्रोप्लास्टिक भी वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बनते जा रहे हैं।
समुद्री प्लास्टिक कचरे का सबसे चिंताजनक पहलू है कछुआ, मछली, सी-बर्डस, मैमल्स और अकशेरुकी जीवों द्वारा प्लास्टिक के इन कचरों को भोजन समझ कर खा लेना। ये प्लास्टिक उनके शरीर में जाकर जैव-संचयन या बायो एक्युमुलेशन का कारण बनते हैं। जैव-संचयन के तहत, अगलनीय प्रदूषक किसी पारितंत्र की खाद्य शृंखला में विभिन्न पोषण स्तरों से गुजरते हैं। चूंकि इन प्रदूषकों का जीवों के भीतर उपापचय नहीं हो पाता, इसलिए जीव में उनका सांद्रण बढ़ता जाता है। इन प्लास्टिकों से रिसने वाले खतरनाक रसायनों के कारण या फिर पाचनतंत्र में प्लास्टिक के फंस जाने से इन जीवों की मृत्यु तक हो जाती है। इससे इनकी प्रजनन क्षमता में कमी आ जाती है।
प्लास्टिक प्रदूषण न सिर्फ समुद्र, बल्कि ताजा जल निकायों, भूमि, जानवरों और मनुष्यों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। मिट्टी में मिलकर प्लास्टिक खनिज, जल और पोषक तत्त्वों के अवशोषण में बाधा पहुंचाता और इसकी उर्वरता को कम करता है। कचरे के ढलाव में डाले गए प्लास्टिक, जल के साथ प्रतिक्रिया कर खतरनाक रसायन बनाते और भूजल की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। प्लास्टिक में पाए जाने वाले जहरीले रसायन, जैसे स्टाइरीन ट्रिमर, बिसफेनाल ए और पाली स्टायरेन में पाया जाने वाला बेंजीन हमारे पीने योग्य पानी की गुणवत्ता को खराब कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक हर वर्ष चालीस लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन विश्व भर में होता है, पर केवल दस फीसद का पुनर्चक्रण होता है। प्लास्टिक के कुल उत्पादन का आधे से अधिक भाग एकल उपयोगी प्लास्टिक है। 1.9 से 2.3 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल तालाबों, नदियों और समुद्र में फेंक दिया जाता है। स्थिति की इस गंभीरता को समझते हुए पिछले साल प्रधानमंत्री ने लोगों से प्लास्टिक प्रदूषण रोकने की अपील की थी। इसमें 2022 तक भारत से हर तरह के एकल उपयोगी प्लास्टिक को हटाने की प्रतिज्ञा भी की गई थी। मगर प्रतिबंध के बावजूद विकल्पहीनता के कारण यह धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और ठोस कचरा प्रबंधन कानून, 2016 के अनुसार, सूखे कचरे यानी प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच और गीले यानी रसोई और बगीचे के कचरे को उनके स्रोत पर ही अलग करना होगा। लगभग बीस राज्यों ने प्लास्टिक के किसी न किसी रूप को प्रतिबंधित किया हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एकल उपयोगी प्लास्टिक मुक्त विश्व बनाने हेतु अनेकानेक प्रयास किए जा रहे हैं।
साल भर पहले नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण परिसंघ में दो सौ से ज्यादा देशों ने समुद्रों से प्लास्टिक प्रदूषण हटाने के लिए एक संकल्प पारित किया था। हालांकि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि नहीं है, लेकिन आगे का रास्ता तय करने में मददगार साबित होगी। यह संकल्प, यूएनईपी घोषणा का ही एक भाग है, जो कचरे में कमी लाने, प्रदूषण के खिलाफ कड़े नियम बनाने और जीवन-शैली के लिए नुकसान की भरपाई करने की बात करता है। कुछ समय पहले चिली, ओमान, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका ने भी ‘क्लीन सीज कैंपेन’ नामक एक अभियान को शुरू किया।
देखने की बात है कि चर्चा में रहे ये सारे कदम प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को रोकने में कितने असरदार हो पाते हैं। प्लास्टिक कचरे में तत्काल कमी लाने के लिए जरूरी है कि कचरे का बेहतर तरीके से निपटान और उसका प्रबंधन किया जाए। कचरे के प्रबंधन के लिए ‘रिड्यूस, रीयूज और रीसायकल’ के सिद्धांत को अमल में लाने की जरूरत है। पुनर्चक्रण प्रक्रिया में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है। प्लास्टिक के निर्माण से लेकर कचरे के प्रबंधन तक के विभिन्न चरणों में प्रभावी नीतियों को अपनाना बहुत जरूरी है।
हमारी अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण भाग बन चुके इस सर्वव्यापी पदार्थ को बनाने और इस्तेमाल करने के तरीके पर जल्द ही दुबारा सोचने की जरूरत है, क्योंकि ‘लेना-बनाना-फेंकना’ वाली व्यवस्था को त्यागना ही होगा। एकल उपयोगी प्लास्टिक को व्यक्तिगत संकल्प लेकर त्यागा जा सकता है, अन्यथा जिस प्लास्टिक ने मानव जीवन को खुशी और आनंद दिया है वही इंसानों और अन्य जीवों को इस पृथ्वी से सदा के लिए खत्म कर देगा।