हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) के दलित शोधार्थी रोहित वेमुला के भाई को नौकरी देने के आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह फैसला अवैध, मनमाना और राजनीतिक रूप से प्रेरित है। बता दें कि रोहित ने जनवरी में कथित रूप से यूनिवर्सिटी प्रशासन के दबाव के चलते आत्महत्या कर ली थी। याचिका में ‘आप’ के 24 फरवरी के फैसले को चुनौती दी गई है। 3 मार्च को अधिसूचित किए गए इस फैसले के तहत रोहित के भाई वेमुला राजा चैतन्य कुमार को ‘ग्रुप सी’ की सरकारी नौकरी और समय से पहले सरकारी आवास की पेशकश की गई थी।
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कैबिनेट के मुताबिक रोहित के भाई से मिले एक पत्र पर फैसला किया गया। पत्र के जरिए रोहित के भाई ने अपने और अपने परिवार के लिए रोजगार के जरिए सहयोग मांगा था। याचिका में दलील दी गई है कि रोहित के परिवार से ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता अवध कौशिक ने आरोप लगाया है कि कैबिनेट का फैसला मनमाना और अनुचित है। उन्होंने यह भी दलील दी कि यह फैसला देश के कानून और लोकनीति का स्पष्ट उल्लंघन करता है, इस तरह यह सामान्य रूप से लोगों और विशेष रूप से दिल्ली के युवाओं के कानूनी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जो अपनी प्रतिभा के बूते नौकरी पाने की कोशिश कर रहे हैं। यह विषय मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की एक पीठ के समक्ष आज सुनवाई होने के लिए सूचीबद्ध था। हालांकि पीठ नहीं बैठी इसलिए याचिका को सुनवाई के लिए 17 मई को सूचीबद्ध कर दिया गया।
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याचिका में दलील दी गई है कि रोहित के निकट परिजन को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह न तो दिल्लीवासी था और न दिल्ली प्रशासन के तहत कोई सरकारी कर्मचारी था। वह किसी भी तरह से दिल्ली से संबद्ध या मान्यता प्राप्त किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज का भी छात्र नहीं था। याचिका के जरिए कैबिनेट के फैसले को रद्द करने और रोहित का भाई यदि नियुक्ति ले चुका हो तो उसकी नियुक्ति को निरस्त करने की मांग की गई है।