बीते दिनों दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर यातायात नियमों की अनदेखी एक पूरे परिवार को लील गई। इस त्रासद और भयावह दुर्घटना में गलत दिशा से आ रही स्कूल बस ने पल भर में छह लोगों का जीवन छीन लिया। इस दुर्घटना से सुविधापूर्ण और तय सीमा में तेज गति के लिए बनाए गए एक्सप्रेस-वे पर जानते-बूझते की गई लापरवाही उजागर होती है। इस हादसे के लिए विपरीत दिशा में स्कूल बस चला रहे चालक की लापरवाही तो जिम्मेदार है ही, एक्सप्रेस-वे पर यात्रा प्रबंधन से जुड़े अन्य लोग भी जवाबदेह हैं।
आखिर कैसे वाहनों के लिए गति सीमा और सही दिशा के सख्त नियम होने के बावजूद बस पूरे आठ किलोमीटर तक गलत दिशा में निर्बाध चलती रही? इस दुर्घटना की जिम्मेदार बस पर नियमों का उल्लंघन करने के कारण अब तक पंद्रह चालान हो चुके हैं। बावजूद इसके, चालक निडर होकर तेज रफ्तार उल्टी दिशा में बस दौड़ा रहा था। जिस चालक ने बार-बार लापरवाही करते हुए यातायात नियमों का उल्लंघन किया हो, उसके विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई! यह दुर्घटना दरअसल, बहुस्तरीय लापरवाही का दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है।
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां सर्वाधिक हादसे होते हैं
भारत वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा जन-धन गंवाने वाले देशों में है। दूर-दराज के गांवों से लेकर महानगरों तक, आए दिन कितने ही लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। युवा भीषण दुर्घटनाओं में विकलांग हो रहे हैं। परिवार और समाज को सहारा दे रहे कितने ही लोग स्वयं आश्रित बन जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत सड़क हादसों में दुनिया का अग्रणी देश है। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाओं वाले जिन दस देशों की पहचान की थी, उनमें भी भारत सबसे ऊपर है।
बावजूद इसके यातायात नियमों के पालन को लेकर सजगता नहीं दिखती। देश के कोने-कोने में आए दिन होने वाले भयावह सड़क हादसे हर बार सड़कों पर दौड़ती मौत का सच सामने ला देते हैं। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे जैसी हृदयविदारक घटनाएं बार-बार चेताती हैं कि आखिर कब इन दुर्घटनाओं को गंभीरता से लिए जाएगा?
ज्ञात हो कि एक्सप्रेस-वे छह से आठ लेन नियंत्रित पहुंच और तयशुदा गति का सड़क संजाल होते हैं। आधुनिक सुविधाओं वाली इन सड़कों पर प्रवेश और निकास भी छोटी-छोटी सड़कों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कुछ निर्धारित स्थानों से ही वाहन एक्सप्रेस-वे पर पहुंच सकते हैं। ऐसे में सही लेन और दिशा में चल रहे चालक वाहन की तयशुदा गति को लेकर इतने निश्चिंत होते हैं कि अचानक गलत दिशा में चल रहे वाहन का सामने आ जाना भयावह हादसे का ही रूप लेता है। अफसोसनाक तो यह है कि ऐसे सुविधाजनक रास्तों पर भी यातायात के नियमों का दुस्साहस किया जाता है। स्वयं अपनी और दूसरों की जान को जोखिम में डालने की यह प्रवृत्ति वाकई दुखद है।
हमारे देश में दुपहिया वाहनों से लेकर भारी वाहनों तक, शराब पीकर, नियमों की अनदेखी करते हुए और अनियंत्रित गति से गाड़ी चलाना आम बात है। गौरतलब है कि मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019 में यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने आदि पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। बावजूद इसके, यातायात नियमों के कड़े प्रावधान होने के बावजूद सख्ती से लागू न किया जाना इस दुस्साहस को और बढ़ाता है। हर दिन सड़कों पर उतर रही महंगी गाड़ियों के चालक भी कितनी ही असामान्य गतिविधियां करते दिखते हैं।
विडंबना है कि शिक्षित-सजग नागरिक भी यातायात नियमों के उल्लंघन अपनी शान समझते हैं। सड़क दुर्घटनाओं के अधिकतर विश्लेषण यही बताते हैं कि कुल सड़क दुर्घटनाओं में 78.7 प्रतिशत वाहन चला रहे लोगों की गलती से ही होते हैं। यही वजह है कि छोटे-मोटे हादसों के अलावा हर दिन कोई न कोई भीषण दुर्घटना भी होती रहती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार बीते साल सड़क हादसों में हर घंटे सोलह लोग मारे गए। ऐसे में सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था से लेकर देश की अर्थव्यवस्था तक को प्रभावित करने वाले इन हादसों का आंकड़ा वाकई चिंतनीय है।
कम से कम यातायात नियमों के पालन को लेकर तो सजगता होनी चाहिए। विशेषकर एक्सप्रेस-वे का तो निर्माण ही वाहनों की तेज और निर्बाध गति के लिए किया जाता है। यहां वाहनों के लिए तयशुदा लेन और दिशा में चलना आवश्यक होता है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के चलते होने वाली 63 फीसद मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर होती हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में हुईं 4,03,116 दुर्घटनाओं में 1,55,662 की जान चली गई। वहीं घायल लोगों का आंकड़ा 3,71,884 रहा। सरकारी आंकड़े के अनुसार देश में सड़क दुर्घटना में प्रतिदिन 415 लोगों की मौत होती है।
इनमें सीमा से ज्यादा गति के कारण 58.7 प्रतिशत और चालकों की लापरवाही या ओवरटेकिंग के कारण 25.77 फीसद हादसे हुए। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में साल 2021 में सड़क हादसों में जितनी मौतें हुई, उसमें से नब्बे प्रतिशत जानें इन्हीं कारणों से गई हैं। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर हुए ताजा हादसे में भी बस ड्राइवर लंबी दूरी तक गलत दिशा में चलता रहा और अंतत: मासूम बच्चों और बड़ों सहित छह लोगों की जान चली गई। ऐसे में यातायात नियमों का अनुपालन ही जीवन बचा सकता है।
देश में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं
देश में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों में जीवन गंवा रहे हैं। घायल होने वालों में पचासी फीसद बीस से पच्चीस साल की उम्र के युवा हैं। साथ ही लापरवाही जनित इन दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले अधिकतर लोग पच्चीस से चालीस वर्ष के आयु समूह के होते हैं। विश्व बैंक के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं से हमारी अर्थव्यवस्था को हर साल सकल घरेलू उत्पाद का तीन से पांच प्रतिशत नुकसान होता है।
इन हादसों में मृत्यु या अपंगता के कारण गरीब परिवारों की लगभग सात महीने की घरेलू आय कम हो जाती है। इन हालात में बहुत से परिवार ऋण के कुचक्र में फंस जाते हैं। ऐसे दुखदायी आंकड़ों के पीछे यातायात नियमों की अनदेखी सबसे बड़ी वजह है। ऐसी गलती के लिए सख्त सजा के बजाय नाममात्र जुर्माने की राशि और मृतकों के लिए मुआवजे के खेल ने इस समस्या की गंभीरता को ही दबा दिया है। कोई ठोस कदम उठाने के बजाय हर हादसे के बाद कार्यवाही जुर्माने और मुआवजे तक सिमट जाती है।
यही वजह है कि कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर गहरी चिंता जताई थी। उच्चतम न्यायालय ने सरकार और संसद से आग्रह किया था कि इस तरह के मामलों में दोषी की सजा बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन करने पर विचार करें। इतना ही नहीं, ट्रैफिक सिग्नल पर कुछ पल की प्रतीक्षा न करके हड़बड़ी दिखाने और यातायात नियमों की अनदेखी के चलते आमजन ने भी इन हादसों को रोकने का जिम्मा केवल सरकार पर छोड़ दिया है।
जबकि सुरक्षा के मामले में जागरूकता के प्रयासों और कानूनी प्रावधानों के साथ-साथ जन सहभागिता और सहयोग भी जरूरी है। सड़क हादसों की लगातार गहराती समस्या को देखते हुए अब यातायात नियमों के उल्लंघन पर सख्त सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान जरूरी है। साथ ही प्रशासनिक व्यवस्थाओं से लेकर जन सामान्य तक सभी को सजग और संवेदनशील बनना होगा। साझे रास्तों के सफर में दायित्व बोध का भाव ही जीवन सहेज सकता है।