भारत में क्रिकेट केवल खेल नहीं, धर्म की तरह है। यहां क्रिकेट की दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों को भगवान की तरह पूजा जाता है। क्रिकेट मैच के दौरान सड़कें खाली हो जाती हैं, दुकानें बंद हो जाती हैं और पूरा देश टीवी स्क्रीन से चिपक जाता है। लोगों के बीच क्रिकेटरों की इसी लोकप्रियता को भुनाने के लिए गाहे-बगाहे राजनीतिक दल क्रिकेटरों को चुनावी मैदान में उतार देते हैं। कई बार इन्हें सफलता मिलती है, तो कई बार ये ‘क्लीन बोल्ड’ भी हो जाते हैं।

हाल ही में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट से दाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के आफ-ब्रेक गेंदबाज यूसुफ पठान को टिकट दिया है। यहां उनका मुकाबला कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी से हो सकता है।

देश में सबसे पहले भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी ने 1971 में विशाल हरियाणा पार्टी के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया, जो अब अस्तित्व में नहीं है। पटौदी ने 1971 और 1975 में दो संसदीय चुनाव लड़े और दोनों हार गए। यानी क्रिकेटरों की चुनावी पिच पर पारी की शुरुआत कुछ खास नहीं रही।

गंभीर ने की सियासत से तौबा

पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वी दिल्ली सीट से भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान गौतम गंभीर ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 3.91 लाख मतों के अंतर से शानदार सफलता हासिल की। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने दावेदारी नहीं पेश करने का निर्णय किया है और इस संबंध में भाजपा नेतृत्व को भी अवगत करा दिया है। गंभीर का कहना है कि वो भविष्य में क्रिकेट को अधिक महत्त्व देना चाहते हैं।

क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 2004 में भाजपा में आने के साथ की थी। 2004 लोकसभा चुनाव में सिद्धू अमृतसर सीट से जीतकर लोकसभा में पहुंचे। इसके बाद 2007 में उपचुनाव और 2009 में भी उन्होंने चुनाव जीता। लेकिन पार्टी में अंदरूनी मतभेदों के कारण उन्होंने 2016 में पार्टी का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया।

कीर्ति आजाद को टीएमसी ने दिया टिकट

भारत ने 1983 में पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। इस टीम में कीर्ति आजाद भी थे। कीर्ति आजाद के पिता भागवत झा आजाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे और कीर्ति ने भी क्रिकेट छोड़ने के बाद राजनीति में कदम रखा था। वे दरभंगा लोकसभा सीट से तीन बार भाजपा सांसद बने, लेकिन 2019 में कांग्रेस का दामन थामा लिया। अब वे तृणमूल कांग्रेस के साथ आ गए हैं।

चेतन चौहान ने 1991 में चुनावी पिच पर उतरने का फैसला किया। वे 1991 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे। अपने पहले ही चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद साल 1996 के चुनाव में चेतन चौहान को हार मिली। साल 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर उनपर भरोसा जताया। इस बार अमरोहा की जनता ने उन्हें निराश नहीं किया और फिर लोकसभा भेजा। हालांकि, इसके बाद 1999 और 2004 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश के अमरोहा की नौगांव सीट से जीत हासिल की थी और योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल का हिस्सा बने।

अजहर कांग्रेस के साथ

भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने साल 2009 में कांग्रेस का हाथ थामा था। 2009 लोकसभा चुनाव में उन्हें उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद सीट से जीत मिली, लेकिन 2014 के चुनावों में उन्हें हार झेलनी पड़ी थी। उन्होंने पिछले साल तेलंगाना विधानसभा चुनाव में जुबली हिल्स क्षेत्र से दावेदारी पेश की, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

पूर्व भारतीय क्रिकेटर चेतन शर्मा ने 2009 लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर से फरीदाबाद सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। उसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। चेतन शर्मा भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य चयनकर्ता भी रह चुके हैं। 

एस श्रीसंत साल 2016 में केरल विधानसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम की सीट से दावेदारी पेश करने के कारण सुर्खियों में आए थे। उन्हें भाजपा का साथ मिला था, लेकिन चुनावी मैदान में उन्हें हार झेलनी पड़ी थी। मोहम्मद कैफ ने 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे अपने पहले ही चुनावी मैच में हार गए।

मनोज तिवारी ने 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ओर से शिबपुर सीट पर जीत हासिल की थी। वे इस समय पश्चिम बंगाल सरकार में खेल मंत्री हैं। हरभजन सिंह ने 2021 में क्रिकेट को अलविदा कह दिया था और वे अभी आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं। विनोद कांबली ने 2009 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लोक भारती पार्टी की ओर से विखरोली सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी थी।