संसद में पेश की गई रिपोर्ट में संसदीय स्थायी समिति ने बुधवार को ग्रामीण विकास मंत्रालय से मनरेगा श्रमिकों के लिए अपनी जाति-आधारित मजदूरी पेमेंट सिस्टम को वापस लेने को कहा है। साथ ही समिति ने मंत्रालय से इसकी जगह पुराने मैकेनिज्म को बहाल करने को भी कहा है।

2 मार्च, 2021 को, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यों को एक एडवाइजरी भेजकर कहा था कि वे वित्तीय वर्ष 2021-22 से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य श्रेणियों के अनुसार मनरेगा श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

नए सिस्टम के तहत, उदाहरण के लिए अगर 20 लोग (6 एससी, 4 एसटी और 10 अन्य) मनरेगा साइट पर काम कर रहे हैं तो तीन कैटेगरी के लिए तीन अलग-अलग फंड ट्रांसफर ऑर्डर (FTO) के जरिए उनका पेमेंट किया जाता है। 1 अप्रैल 2021 से इस व्यवस्था के लागू होते ही मनरेगा के लाभार्थियों की तरफ से समय पर मजदूरी नहीं मिलने की शिकायतें आने लगीं। सामान्य और ओबीसी श्रेणियों के श्रमिकों को अक्सर देरी से पेमेंट मिल रहा था।

अब स्थायी समिति ने भी वेतन भुगतान को लेकर अलग कैटेगरी की आलोचना की है। शिवसेना सांसद प्रतापराव जाधव की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मनरेगा वर्कर ‘आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और वे किसी भी धर्म/जाति से हो सकते हैं।”

इसमें आगे कहा गया, “ऐसा पेमेंट सिस्टम बनाना जिसमें केवल जाति के आधार पर एक विशिष्ट समुदाय को दूसरे पर वरीयता दी जाती है, यह मनरेगा के लाभार्थियों में आक्रोश और दरार पैदा करेगा।” ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक, कैटेगरी के आधार पर वेतन भुगतान के सिस्टम को विभिन्न जनसंख्या समूहों को फंड वितरण को जमीन पर सटीक रूप से प्रतिबिंबित करने के लिए लाया गया था।” मनरेगा के तहत पंजीकृत 15.52 करोड़ एक्टिव श्रमिकों में से 20.12% अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं और 16.06% अनुसूचित जनजाति से हैं।