केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आइआइटी और आइआइएम सहित उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी पर संसदीय समिति ने ‘नाराजगी’ जताई है। समिति ने इसे देश में शिक्षा के स्तर को बनाए रखने और विकास करने के लिए ‘सबसे बड़ी बाधा’ बताया है। समिति ने तुरंत सुधार होता नहीं देख स्थिति को ‘भयावह’ बताया है और सुझाव दिया है कि किसी पद के खाली होने से पहले ही भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए। शिक्षण को अधिक लुभावना बनाने के लिए इसने सुझाव दिया है कि संकाय को कंसल्टेंसी भी करनी चाहिए।
इस हफ्ते की शुरुआत में पेश रिपोर्ट में एचआरडी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद सत्यनारायण जटिया ने पूरे देश में उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की ‘अत्यंत’ कमी पर चिंता जताई। समिति ने कहा कि इसे सूचित किया गया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक संकाय की कुल मंजूर संख्या 16600 हैं जिसमें 2376 पद प्रोफेसर के, 4708 पद एसोसिएट प्रोफेसर के और 9521 पद सहायक प्रोफेसर के हैं।
इन खाली पदों में 1277 पद प्रोफेसर के, 2173 पद एसोसिएट प्रोफेसर के और 2478 पद सहायक प्रोफेसर के हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आइआइटी में शिक्षक के लिए न्यूनतम योग्यता पीएचडी है और इस तरह के उम्मीदवारों की कमी है। इसने गौर किया कि कमी को दूर करने के लिए संस्थान शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर रख रहे हैं। समिति ने कहा, ‘समिति ने पाया कि सुव्यवस्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर हाल में स्थापित विश्वविद्यालयों, राज्य विश्वविद्यालयों के साथ ही निजी विश्वविद्यालय और आइआइटी, एनआइटी तथा आइआइएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में यह समस्या है जो शिक्षा के विकास के साथ ही उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को बनाए रखने में बाधक बना हुआ है।’
समिति ने कहा कि निकट भविष्य में कोई सुधार होता नहीं देख स्थिति ‘विकट’ ही दिख रही है। समिति ने कहा कि या तो युवा छात्र शिक्षण पेशे की तरफ आकर्षित नहीं हो रहे हैं या भर्ती प्रक्रिया में कई खामियां हैं जिनमें कई प्रक्रियागत औपचारिकताएं हैं। एचआरडी मंत्रालय में उच्च शिक्षा विभाग से सक्रिय भूमिका निभाने की बात कहते हुए समिति ने सुझाव दिया कि कोई पद खाली होने से पहले ही भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए। समिति ने कहा कि शिक्षण पेशे को और आकर्षक बनने के लिए ‘शिक्षकों को कंसल्टेंसी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और शुरू में उन्हें वित्तीय सहयोग भी दिया जाना चाहिए।’