पाकिस्तान से संभावित बातचीत के दौरान भारत उसे यह सबूत देने की तैयारी में है कि हाल में गिरफ्तार आतंकवादी मोहम्मद नावेद को लश्करे-तैयबा के कैंप में प्रशिक्षित किया गया। लेकिन एक तल्ख हकीकत यह भी है कि 150 से ज्यादा पाकिस्तानी ऐसे हालात में धरे गए। लेकिन बाद में उन्हें वापस भेजना पड़ा क्योंकि पुलिस और अभियोजन उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं पेश कर सके।

इन आतंकवादियों में सन 2000 में हुए छत्तीसिंहपुरा सामूहिक हत्याकांड के दो संदिग्ध भी हैं। इन लोगों के खिलाफ मामूली आरोप ही साबित हो पाए और अब वे अपने घर पाकिस्तान भेजे जा चुके हैं।

इसी माह के शुरू में भारत ने जम्मू-कश्मीर जेल में बंद रहे आठ जेहादियों को रिहा कर पाकिस्तान भेज दिया गया। भेजे गए कथित आतंकियों में कराची निवासी तनवीर अहमद तनवल्ली भी है जिसे 2009 में भारत की सीमा में घुसते समय पकड़ा गया था। उस छह साल की सजा सुनाई गई और 1000 रुपए का जुर्माना लगाया।

फखरुज्जमा खोखर को सितंबर 2008 में श्रीनगर में एके-47 और हथगोलों के साथ गिरफ्तार किया गया था। चार साल की कैद के बाद उसे भी छोड़ दिया गया। इस तरह के कैदियों को वापस भेजने की प्रक्रिया 2004 में शुरू हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत-पाक संबंध सामान्य करने के प्रयास के तहत यह प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसके बाद अगले दशक में जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में काफी कमी देखी गई थी।

पाकिस्तान को लौटाए गए कैदियों में मुहम्मद सुहैल मलिक और वसीम अहमद भी हैं। इन पर पंद्रह साल पहले दक्षिण कश्मीर के छत्तीसिंहपुरा में 36 सिखों की हत्या का आरोप था। लेकिन अदालत में सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया, क्योंकि गवाह उन्हें पहचानने में नाकाम रहे। हरकत उल जेहादे-इस्लामी का सरगना आतंकी नसुरुल्लाह मंसूर ‘लंगरियाल’ 2011 में छोड़ दिया गया। उस पर दर्जनों आतंकी हमलों का आरोप था। कत्ल का कोई आरोप उस पर साबित नहीं हो पाया। अब वह शादी करके गुजरांवाला में है। चार साल पहले उसके निकाह में जेहादियों का मेला लगा था। इसी साल बिना जरूरी कागजात के पाकिस्तान से भारत में घुसे नौ कथित आतंकवादियों को तेरह अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था। जम्मू-कश्मीर जेल से उन्हें रिहा कर वापस पाकिस्तान भेज दिया गया है।

इस बाबत हासिल किए गए दस्तावेज से पता चलता है कि कई जघन्य अपराधों और विदेशी नागरिकता के बावजूद कई कथित आतंकवादी कुछ ही सालों में अपने देश लौटने में सफल रहे, क्योंकि इनके खिलाफ अभियोजन कमजोर रहा और पक्के सबूत नहीं मिल सके।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित 23 में से 16 लोगों के बारे में पड़ताल करने से पता चलता है कि इन लोगों को घातक असलहों और विस्फोटकों के साथ गिरफ्तार किया गया था। इनमें केवल तीन पर हत्या की कोशिश का आरोप था। एक पर कत्ल का आरोप था। 23 संदिग्धों में सिर्फ तीन ने चौदह साल से ज्यादा की सजा काटी।

6 जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद में हुए सार्क सम्मेलन के बाद जनरल मुसर्रफ ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आश्वस्त किया था कि आतंकवादियों को पाकिस्तानी जमीन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। 2004 में कैदियों को स्वदेश भेजने के कार्यक्रम के बाद इस प्रक्रिया को कामयाबी मिली। पाकिस्तान को सरेआम शर्मिंदगी से बचाने के लिएप्रत्यर्पण की यह प्रक्रिया बिना किसी प्रचार के अंजाम दी गई।

रॉ के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कैदियों को वापस भेजने का फैसला कैसे लिया गया और क्यों?

उन्होंने कहा कि हालांकि सार्क सम्मेलन के बाद की गई घोषणा पाकिस्तान की ओर से किया गया पहला वादा था कि आतंकवादी-जेहादी उसकी जमीन इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। और इससे भारत के आरोपों की पुष्टि हुई पाकिस्तान ‘आजादी की लड़ाई’ के नाम पर आतंकवाद को शह दे रहा था।

बहरहाल इस करार के बाद सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिकों का रिहाई का रास्ता साफ हो गया जो मामली जुर्म में पकड़े गए थे। केवल जम्मू-कश्मीर से 168 ऐसे लोग पकड़े गए थे जो सीमा पार करने जैसे गुनाह में शामिल थे। ऐसे लोगों को 2004 के बाद स्वदेश भेज दिया गया। हालांकि इस दौरान 137 कथित आतंकवादियों को भी राज्य की जेलों से छोड़ा गया।

दस्तावेज दर्शाते हैं कि इन मामलों न तो जम्मू-कश्मीर और ना ही केंद्र की यूपीए सरकार ने पाकिस्तान से साक्ष्य मांगे। हालांकि 2006 में दोनों देशों ने आतंकवाद निरोधक कार्यप्रणाली शुरू की। रेकार्ड दर्शाते हैं कि साक्ष्य के लिए दबाव बनाने के लिए इनका कोई इस्तेमाल नहीं किया गया। इससे अभियोजन को मदद मिलती। कई मामलों में अभियोजन पक्ष सबूत देने में कामयाब रहा। 2010 में राजा किफायत अली को विस्फोटकों और असलाह से भरे एक बैग के साथ पकड़ा गया था। श्रीनगर की अदालत ने उसे दोषमुक्त करार दिया और अगले साल उसे पाकिस्तान भेज दिया गया।