पाकिस्तान की एक शीर्ष अदालत ने लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों द्वारा 2008 मुंबई हमले में इस्तेमाल की गई नाव के परीक्षण की इजाजत दे दी है। इससे पहले एक एंटी-टेररिज्म कोर्ट ने भारतीय जांच आयोग को इसकी इजाजत नहीं दी थी। शीर्ष अदालत ने पिछली अदालत के फैसले को ‘त्रुटिपूर्ण’ बताया है। मुंबई हमला मामले में प्रॉसीक्यूशन चीफ चौधरी अजहर ने कहा, ”इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने मुंबई मामले में ट्रायल कोर्ट (एंटी टेररिज्म कोर्ट) के मुंबई आतंकी हमलों में इस्तेमाल की गई अल-फौज नाव की जांच के लिए एक जांच आयोग को कराची भेजने की इजाजत न देने के फैसले को पलट दिया है।” उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को ‘त्रुटिपूर्ण और कानून के विपरीत’ पाया। अदालत ने कराची में नाव की जांच की इजाजत दे दी है।
प्राॅसीक्यूशन ने मई में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि एक आयोग बनाकर मुंबई हमले के लिए आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की गई ‘अल-फौज’ नाव की जांच की इजाजत दे ताकि उसे ‘मामले की संपत्ति’ बनाया जा सके। अल-फौज फिलहाल कराची में पाकिस्तानी अधिकारियों की कस्टडी में है। यही से 10 आतंकवादी एके-47 रायफलों और हैंड ग्रेनेड्स से लैस होकर भारत आए थे। आतंकियों में 2008 में मुंबई आतंकी हमले को अंजाम दिया जिसमें 164 लोगों की जान चली गई थी। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स (एनएसजी) और आतंकियों के बीच हुई लंबी मुठभेड़ में 9 आतंकी मारे गए और दसवें आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया। 26/11 मुंबई हमले के अकेले जिंदा पकड़े गए गुनहगार अजमल आमिर कसाब को पूरी कानूनी प्रक्रिया के बाद पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई थी।

