रविवार तीन सितंबर, 2023 को जब आप इस स्तंभ को पढ़ रहे हैं, आगामी जी-20 बैठक को लेकर चलाया जा रहा अभियान और प्रचार चरम पर पहुंचा हुआ है। मुझे खुशी है कि भारत इस साल जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है लेकिन इस आयोजन और इसके परिणाम को लेकर ज्यादा से ज्यादा विनम्रता बुद्धिमानी है।

मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? क्योंकि जी-20 की बैठकें नियमित होती हैं और 1999 से हर साल आयोजित की जाती रही हैं। पहला शिखर सम्मेलन 2008 में वाशिंगटन में आयोजित किया गया था (अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के मद्देनजर)। जी-20 की दो बैठकों के दरम्यान, नेताओं के पास विभिन्न बैनरों के तहत मिलने के कई अवसर होते हैं – संयुक्त राष्ट्र, जी -7, डब्ल्यूईएफ, आइपीसीसी, एससीओ, ब्रिक्स, क्वाड, एयूकेयूएस, आसियान, अंकटाड आदि। मजे की बात यह है कि अगर आप अंग्रेजी भाषा के किसी भी चार या पांच अक्षर लेते हैं, तो संभावना है कि यह एक नए बहुपक्षीय निकाय को निरूपित करे!

विनम्रता जरूरी

जी-20 का अध्यक्ष पद बारी-बारी से देशों को मिलता है। भारत 2003 में अध्यक्ष था और 2023 में अध्यक्ष है। भारत 2043 में फिर से अध्यक्ष होगा। जी-20 के सदस्य देशों में भारत की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम (2,085 डालर), यहां गरीबों की सबसे बड़ी संख्या (23 करोड़) है और वैश्विक भूख सूचकांक में 107वें (123 में) स्थान पर है।

इसका मतलब यह नहीं है कि 1991 के बाद से भारत के विकास को कमतर आंका जाए। केवल कुछ ही देश हैं, जिन्होंने लगभग हर 10 साल में अपने सकल घरेलू उत्पाद को दोगुना कर दिया है। 1991-92 25 लाख करोड़ रुपए, 2003-04 50 लाख करोड़ रुपए, 2013-14 100 लाख करोड़ रुपए,वर्ष 2014-15 में अच्छी शुरुआत के बावजूद 2023-24 तक जीडीपी दोगुनी नहीं होगी और यह मौका गंवाना होगा।

एनडीए के नौ वर्षों के दौरान विकास की औसत दर केवल 5.7 फीसद रही है, जबकि यूपीए के 10 वर्षों के दौरान यह 7.5 फीसद थी। वर्ष 2004 के बाद से हमने 41.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। फिर भी 23 करोड़ गरीब हैं। यह स्थिति तब है, जब व्यक्तिगत खपत शहरी क्षेत्रों में 1,286 रुपए प्रति माह और ग्रामीण क्षेत्रों में 1,089 रुपए है। हमारे पास चंद्रमा पर यान उतारने का वैज्ञानिक कौशल तो है, लेकिन आठवीं कक्षा के बच्चों में से 30 फीसद कक्षा दो का पाठ नहीं पढ़ सकते और 55 फीसद सरल गुणा और भाग नहीं कर सकते। हमारे विकास का स्वाद कड़वा मीठा है।
घातक मस्से

दुनिया में हमारी पैठ बढ़ेगी -अगर हम लोकतांत्रिक साख को बेहतर करें और उदारवाद, बहुलता और सभी धर्मों के लिए समान सम्मान रखे;अगर संसद और राज्य विधानसभाएं अधिक से अधिक चर्चा करें, असंतोष व्यक्त करने के लिए अनुमति दें और पूरी तरह से जांच और बहस के बाद कानून पारित करें,अगर सभी स्थानों और सभी स्तरों पर कानून का शासन कायम हो और हम ‘बुलडोजर’ न्याय, भीड़ द्वारा हत्या और घृणा अपराधों को खत्म कर दें,अगर हम बाजार के अनुकूल हों (कारोबारियों से अनुकूलता के उलट) और हमारी अर्थव्यवस्था को निवेश, प्रौद्योगिकी और प्रतिस्पर्धा के लिए व्यापक रूप से खोलें,अगर न्यायालय, भारत का निर्वाचन आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा-महालेखाकार, मानवाधिकार आयोग व सूचना आयोग जैसे हमारे प्रमुख संस्थान वास्तव में स्वतंत्र व निष्पक्ष हो जाएं और अगर जांच एजंसियां खुद में कानून न बन जाएं व सभी व्यक्तियों, संस्थानों व राजनीतिक दलों को प्रभावित न करने लगें।

अगर हम सोचते हैं कि केवल देश में रह रहे भारतीय ही हमारी गड़बड़ियों, विफलताओं को देख रहे हैं, तो हम अंधेरे में हैं। जैसे ही हम दुनिया की निरंकुशता, दिखावटी चुनावों, व्यापक नस्लवाद, महिलाओं के दमन, राजनीतिक व मानवाधिकारों का हनन, समूहों के संघर्ष व कारर्पोरेट एकाधिकार की ओर नजर उठाते हैं और स्वतंत्र रूप से उन पर टिप्पणी करते हैं – दुनिया हमारी विफलताओं का जायजा लेने लगती है।

आर्थिक चिंताएं

वर्तमान संदर्भ में, जी-20 समूह दुनिया की अर्थव्यवस्था को लेकर काफी चिंतित है। सभी अर्थशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि विकास एक ऐसा ज्वार है, जिससे सभी का बेड़ा पार कर जाता है। मैंने देखा है कि किस प्रकार आर्थिक समृद्धि ने लोगों के व्यवहार, सार्वजनिक आचरण और सामान्य विमर्श की भाषा को भी ‘सभ्य’ बना दिया है। (अब कोई भी उतना ‘मद्रास तमिल’ नहीं सुनता जितना चेन्नई में 60 और 70 के दशक में सुनाई दिया करता था।)

कुछ देश अमीर क्यों हैं और वे अमीर कैसे बन गए? मेरे विचार में, उन्होंने चार चीजें कीं : बुनियादी ढांचे में निवेश किया, शिक्षा पर खर्च किया, स्वास्थ्य पर खर्च किया, और अन्य देशों के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार किया। भारत इनपर आंशिक रूप से ध्यान दिया है। हम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहे हैं लेकिन पर्याप्त नहीं है। शिक्षा (जीडीपी का तीन फीसद) और स्वास्थ्य (जीडीपी का 1.4 फीसद) पर हमारा खर्च कम है। और, ऐतिहासिक व्यापार सुधारों के बाद, हम सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, आयात लाइसेंसिंग, देश-विशिष्ट शुल्कों में वृद्धि और मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर हिचकिचाहट जैसे प्रतिगामी उपाय अपनाकर रास्ते बंद कर रहे हैं।

दूसरी चिंताजनक बात बढ़ती असमानता है। लगभग सात करोड़ आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की औसत आय में वृद्धि (आधे से अधिक शून्य कर रिटर्न दाखिल करते हैं) को सभी 140 करोड़ भारतीयों की आय में वृद्धि के रूप में गिनाया जा रहा है। जब बेरोजगारी की दर 8.5 फीसद है और 15-24 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर 24 फीसद है, तो सभी भारतीय अमीर कैसे हो सकते हैं? जब निचली कतार की 50 फीसद आबादी की औसत कमाई राष्ट्रीय आय का केवल 13 फीसद हो और उनके पास सिर्फ तीन फीसद संपत्ति हो तो सभी भारतीय अमीर कैसे हो सकते हैं? दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेता भारत और उसकी अर्थव्यवस्था पर करीब से नजर रखने के लिए यहां आएंगे। काश हम खुद को करीब से देख पाते।