पिछले कुछ वर्षों में तस्करी का काला धंधा बहुत तेजी से बढ़ा है। इनमें घृणित और भयावह मानव अंग तस्करी की चर्चा सबसे ज्यादा हुई है। गौरतलब है कि देश में फूल-फल रहे काले धंधों में मानव अंग तस्करी भी एक है। कड़े कानून होने के बावजूद मानव अंग तस्करी को रोका नहीं जा सका है या यों कहें, रोकना असंभव जैसा हो गया है। यह धंधा अमूमन डाक्टरों, नर्स, दलालों, पुलिस और तस्कर गिरोहों की मिलीभगत से होता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसे रोक पाना संभव होगा? सामाजिक मसले पर काम करने वाले विचारकों का मानना है कि मानव अंग तस्करी रोकने के लिए मौत की सजा का प्रावधान होना चाहिए।

भारत में मानव अंगों की तस्करी 30 वर्षों में ज्यादा तेजी से बढ़ी

कुछ वर्षों से देश में मानव अंगों की तस्करी सबसे मुनाफा देने वाला व्यवसाय का रूप ले रही है, इसका संजाल पूरे देश और विदेश में फैले होने की वजह से इसको खत्म करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। आए दिन राज्यों की पुलिस की अपराध शाखाएं अंतरराष्ट्रीय गिरोहों का भंडाफोड़ करती रहती हैं। देश में चोरी-छिपे, विश्वासघात कर और मजबूरी का फायदा उठा कर रोजाना पता नहीं कितनी घटनाएं होती हैं, जो पुलिस रेकार्ड में नहीं होतीं। ऐसी घटनाओं को रोकना शासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जानकारों के अनुसार भारत में मानव अंगों की तस्करी पिछले तीस वर्षों में ज्यादा तेजी से बढ़ी है।

सवाल है कि कड़े कानून के बावजूद क्या मानव अंगों की तस्करी की जा सकती है? अमेरिका की सरकारी ‘कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस’ के अनुसार, मानव अंगों की तस्करी, आमतौर पर ऐसी आपराधिक गतिविधियों को कहते हैं, जिनमें अवैध तरीके से किसी जिंदा या मृत व्यक्ति से अंग निकाल लिए जाते हैं और फिर उसकी अवैध बिक्री और प्रत्यारोपण कर दिया जाता है। पिछली तमाम जहालत भरी घटनाओं पर गौर करें, तो मानव अंग को पाने के लिए किसी को बंदी बनाना या जबर्दस्ती उसके अंग निकाल लेना भी मानव अंग तस्करी के दायरे में आता है। अंतरराष्ट्रीय जानकारों के मुताबिक कानूनी दायरे से जब मानव अंगों की मांग पूरी नहीं होती, तब मानव अंगों की तस्करी को बढ़ावा मिलता है, जिसमें आपराधिक तत्त्व भी शामिल हो जाते हैं।

गरीब देशों में मानव अंगों की तस्करी विकसित देशों की अपेक्षा ज्यादा

आर्थिक रूप से कमजोर देशों में मानव अंगों की तस्करी करना विकसित देशों की अपेक्षा ज्यादा आसान है। इसकी वजह जागरूकता की कमी है। विकासशील देशों में जागरूकता की कमी तो है ही, गरीबी की वजह से धन के लालच में आकर गरीब लोग अंग तस्करों के झांसे में फंस जाते हैं। दूसरी बड़ी वजह, कई बार आइसीयू में भर्ती व्यक्ति के पास उसका कोई अपना नहीं होता है, ऐसे नाजुक हालत में भी बेईमान शल्य चिकित्सक यकृत, गुर्दे या कोई अंग चुपचाप निकाल कर बेच दें, तो पता नहीं चलता है। इसलिए हर स्तर पर जागरूकता बहुत जरूरी है।
मानव अंगों की तस्करी आमतौर पर भ्रष्ट अधिकारियों और आपराधिक समूहों की सांठगांठ से होती है।

बिचौलियों की भूमिका इसमें खास होती है। मजबूर लोगों को लालच देकर या बीमार व्यक्ति के इलाज के नाम पर शरीर के उस अंग को निकाल लिया जाता है, जिसके निकालने के तत्काल बाद मौत नहीं होती। इसके बाद बिचौलियों का खेल चलता है, जो एक अंग का बीस लाख रुपए से लेकर करोड़ों तक की मांग करते हैं। भारत और पड़ोसी देशों में मानव अंगों की तस्करी वर्षों से चल रही है। नेपाल, श्रीलंका, भूटान, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में मानव तस्करी का धंधा बड़े पैमाने पर चलता है। ये गिरोह हर महीने करोड़ों का वारा-न्यारा करते हैं।

ऐसे लोग कभी-कभार ही पुलिस की गिरफ्त में आते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में इन्हें लंबी सजा नहीं होती। जाहिर है, भारत सहित दुनिया के तमाम विकसित और विकासशील देशों में गैर कानूनी अंग प्रत्यारोपित किए जाते हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोगों की जान चली जाती है। इंसान के जरिए किए जाने वाले काले धंधे में यह सबसे काला धंधा कहा जा सकता है, क्योंकि यह इंसान की मजबूरी, विश्वासघात, ठगी और धन के लालच में चोरी-छिपे चलाया जाता है। इस पर जब तक नकेल नहीं कसी जाएगी, तब तक इससे ताल्लुक रखने वाले धंधेबाजों में डर पैदा नहीं होगा।

आज की ताजी खबरें और अहम जानकारियां यहां पढ़ें…

अंग प्रत्यारोपण विशेषज्ञों का कहना है कि अंगदान की सत्यता की जांच करने वाली समिति अगर सही तरीके से जांच करे, तो धंधेबाजों के गैर-कानूनी दस्तावेजों को पकड़ा जा सकता है। अच्छी तरह ‘एचएनए टाइपिंग’ की जांच करने से गैर-कानूनी कागज को बाहर किया जा सकता है। मतलब साफ है, अगर जांच करने वाले अधिकारी और डाक्टर चाहें, तो मानव अंगों की तस्करी के धंधे को रोका जा सकता है। अमेरिका की ‘क्रांग्रेसनल रिसर्च’ रपट के मुताबिक चीन में अल्पसंख्यकों के अंगों की तस्करी की घटनाएं बढ़ी हैं। विवादित जगह विस्थापित हुए लोगों के बीच ये घटनाएं ज्यादा तेज हुई हैं। रपट बताती है कि वहां जातीय अल्पसंख्यकों को उनके अंगों की तस्करी के लिए मारा गया। भारत में मानव तस्करी के खिलाफ सख्त नियम बनाए गए हैं। बावजूद इसके, बड़े पैमाने पर चोरी-छिपे मानव अंगों की तस्करी होती है।

आंकड़े बताते हैं कि जिन देशों में आतंक या युद्ध के हालात रहे, वहां मानव तस्करी बड़े पैमाने पर हुई। आतंकवादी गिरोहों, अंतरराष्ट्रीय तस्करों और नए गिरोहों के जरिए भी मानव तस्करी तेजी से बढ़ी, खासकर 2005 से लेकर 2015 तक। आज भी ये गिरोह सक्रिय हैं और बड़े पैमाने पर मानव अंगों की तस्करी कर धन की उगाही करने में लगे हैं। दरअसल, मानव अंगों की तस्करी उन देशों में ज्यादा फूल-फल रही है जहां गरीबी बहुत है। इस मामले में पुलिस, डाक्टर, अधिकारी और दलालों का गठजोड़ आसानी से हो जाया करता है। मानवीय संवेदनाएं टूट रही हैं और धन बटोरने के फेर में लोगों को सभी तरह की विश्वसनीयता का गला घोटने में कोई डर नहीं लगता। यानी कानून और समाज का डर खत्म होता जा रहा है। आंकड़े के मुताबिक पिछले बीस वर्षों में विकसित और विकासशील देशों में मानव तस्करी तेजी से बढ़ी है, विकसित देशों में भी बढ़ी है, लेकिन उतनी नहीं, जितनी विकासशील देशों में।

मानव अंग तस्करी का बाजार अरबों रुपए का है। सोशल मीडिया पर यह भी दावा किया जा रहा है कि हर वर्ष मानव अंग तस्करी के कम से कम दो हजार मामले चुपचाप चलते रहते हैं। गैर-सरकारी संगठन ‘ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी’ के आकलन के मुताबिक दुनिया में मानव तस्करी का बाजार 84 करोड़ डालर से 1.7 अरब डालर तक का है। जीएफआइ के मुताबिक हर साल दुनिया में बारह हजार से ज्यादा मानव अंगों का गैर-कानूनी प्रत्यारोपण होता है और इनमें से आठ हजार गुर्दे का होता है। इसके बाद हृदय, फेफड़े, यकृत, और अग्नाशय जैसे अति महत्त्वपूर्ण अंगों का गैरकानूनी ढंग से प्रत्यारोपण होता है।