धर्मनिरपेक्षता के एजंडे पर विपक्षी गठबंधन खड़ा करने की तैयारी चल रही है। विपक्षी राजनीति में गैर कांग्रेसी और गैर भाजपा विकल्प खड़ा करने की कोशिश परवान नहीं चढ़ने पर बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार नए फार्मूले पर काम कर रहे हैं। नीतीश गैर भाजपा दलों को कांग्रेस के नेतृत्व में इकट्ठा करने में जुटे हैं। आधिकारिक तौर पर इस गठबंधन का ‘परीक्षण’ संसद के शीतकालीन सत्र में होगा, जब विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस, जनता दल (यू) और बंगाल में सत्ताशीन तृणमूल कांग्रेस एक साथ हो सरकार के घेरते दिखेंगे। इसके मद्देनजर दक्षिण भारत के राज्यों की कई पार्टियों को भी टटोला जा रहा है।
ममता बनर्जी की तरफ से हरा सिग्नल मिलने के बाद नए समीकरण तैयार हो रहे हैं। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल और कांग्रेस के बीच चार साल के बाद दूरी खत्म होने के संकेत हैं। नीतीश कुमार का संदेश लेकर उनके विशेष दूत संजय झा ने कोलकाता में ममता बनर्जी से मुलाकात की। उसके बाद कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ममता बनर्जी के साथ अलग-अलग टेलीफोन- वार्ता हुई। बातचीत का विषय राजनीतिक था। दरअसल, राजगीर में जनता दल (यू) की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राष्ट्रीय स्तर धर्मनिरपेक्ष मोर्चा बनाने की जरूरत बताते हुए प्रस्ताव पारित किया गया। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के इसी प्रस्ताव के साथ अपने दूत को ममता के पास भेजा।
जद (यू) की इस पेशकश को तृणमूल कांग्रेस की रविवार को खत्म हुई दो दिन की कोर कमेटी की बैठक में रखा गया। फौरी तौर पर पश्चिम बंगाल और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ चलने के लिए तृणमूल तैयार हो गई। आगे का एजंडा तैयार करने के लिए रविवार को सांसद दिनेश त्रिवेदी, सुखेंदु शेखर राय और सौगत राय की कमेटी बना दी गई, जो कांग्रेस समेत विभिन्न गैर-भाजपा पार्टियों के साथ समन्वय करेगी। तीनों के ही कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।
दिनेश त्रिवेदी ने ‘जनसत्ता’ से कहा, ‘कोर कमेटी की बैठक में ममता बनर्जी ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस को छोड़कर कोई धर्मनिरपेक्ष गठबंधन नहीं बन सकता।’ जनता दल (यू) ने भी राजगीर की अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यही लाइन ली है। कांग्रेस को साथ लेने का मकसद यह भी है कि दक्षिण भारत के क्षत्रपों से बातचीत आसान हो सकेगी। ममता बनर्जी और नीतीश कुमार के साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक के क्षत्रपों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन धर्मनिरपेक्ष गठबंधन पर कांग्रेस को सामने रखकर ही बात की जाएगी।
वामपंथी पार्टियों को इस गठबंधन में रखे जाने की तस्वीर अभी साफ नहीं है। इस मुद्दे पर ममता बनर्जी को कांग्रेस मनाने की कोशिश कर सकती है। बहरहाल, अभी तो शुरुआती ढांचे को लेकर ही संसद के शीतकालीन सत्र में सक्रियता दिखाने की तैयारी है। बंगाल और बिहार में केंद्र सरकार के ‘कथित असहयोग, सौतेला रवैया व बढ़ती सांप्रदायिकता’ को लेकर वहां की सत्ताधारी पार्टियां अपने राज्यों में नवंबर के पहले हफ्ते से सड़कों पर उतरेंगी। उसके बाद संसद के दोनों सदनों में यही मुद्दे उठाए जाएंगे।