Operation Sindoor: कांग्रेस पार्टी ने एक महीने पहले अहमदाबाद में अपने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में पार्टी के ‘राष्ट्रवाद’ के विचार को परिभाषित करने का प्रयास करते हुए कहा था कि यह सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय तथा लोगों के सशक्तिकरण पर आधारित है, जो BJP-RSS के “छद्म राष्ट्रवाद” के विपरीत है, जिसका “उद्देश्य भारत की विविधता को मिटाना” है।
पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य गतिरोध काफी अहम रहा। अब बीजेपी द्वारा देशव्यापी अभियान शुरू करने से कांग्रेस को फिर से रणनीति बनाने पर मजबूर होना पड़ा है। यह पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि इस मुद्दे पर भाजपा से मुकाबला करती रही है।
कांग्रेस ने इस बार बरती ज्यादा सावधानी
इस बार कांग्रेस ने रणनीतिक सावधानी के साथ अपने पत्ते खोले और कुछ ऐसा ही देश के अन्य विपक्षी दलों ने भी किया था। पार्टी ने 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के बाद मोदी सरकार और ऑपरेशन सिंदूर के बाद सशस्त्र बलों के लिए स्पष्ट समर्थन की घोषणा की। सुरक्षा और खुफिया चूक के बारे में सवाल को लेकर साफ कह दिया कि ये सारे विषय बाद के हैं।
कश्मीर के मुद्दे पर सवाल
वहीं जब भारत-पाकिस्तान के बीच अचानक युद्ध विराम की घोषणा हुई, तो कांग्रेस आक्रामक हो गई क्योंकि इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी सरकार से पहले सीजफायर का ट्वीट कर दिया था। कई भारतीय साझेदारों द्वारा भी सवाल पूछे जाने पर, कांग्रेस ने अमेरिका के “हाथ” की ओर इशारा किया और पूछा कि क्या इसका मतलब यह है कि मोदी सरकार ने कश्मीर विवाद को सुलझाने में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया है।
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मार्को रुबियो के बयान पर उठाए सवाल
कांग्रेस के ही कई नेताओं ने सरकार से अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के उस बयान की व्याख्या करने को कहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत और पाकिस्तान “तटस्थ स्थल पर व्यापक मुद्दों पर वार्ता शुरू करने” पर सहमत हो गए हैं। यह भी बताने को कहा है कि संघर्ष विराम पर सहमत होने के लिए आतंकवादी ढांचे को नष्ट करने के बारे में इस्लामाबाद से उसे क्या आश्वासन मिला है।
हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व का वह वर्ग जो पार्टी में फैसले लेता है, इस बात को पुख्ता कर रहा है, वहीं कुछ अन्य लोग ऐसे भी हैं जिन्हें डर है कि कहीं पार्टी एक बार फिर बीजेपी के हाथों में खेल तो नहीं रहा है। यह आशंका मोदी के नेतृत्व वाली BJP द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर अपना रुख बदलने और इस पर सार्वजनिक अभियान शुरू करने से और मजबूत हो गई है। इन नेताओं का तर्क है कि अमेरिका की स्पष्ट मध्यस्थता पर मोदी सरकार को जवाबदेह ठहराना गलत है, क्योंकि यह “अपरिहार्य” और “आश्चर्यजनक” नहीं था, यह देखते हुए कि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु हथियार संपन्न हैं।
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पीएम मोदी ने किया था राष्ट्र को संबोधित
मंगलवार को ऑपरेशन सिंदूर पर राष्ट्र के नाम संबोधन के बाद पीएम मोदी ने बुधवार को आदमपुर वायु सेना बेस का दौरा किया और इस न्यू नॉर्मल को रेखांकित किया। सरकार ने ऑपरेशन पर अपनी ब्रीफिंग भी बढ़ा दी है, जिसमें बुधवार को एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कई देशों के रक्षा अताशे को संबोधित किया। इस बीच BJP ने देश भर में तिरंगा यात्राएं शुरू की हैं।
संघर्ष विराम पर पार्टी से सहमत न होने वाले कांग्रेस नेताओं के अनुसार मोदी एक बार फिर राष्ट्रवाद की कहानी गढ़ रहे हैं और कांग्रेस इसे और हवा दे सकती है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी द्वारा उठाई गई अन्य मांगों पर भी सवाल उठाए। नेता का मानना है कि सरकार को अमेरिकी भागीदारी के बारे में सवालों का जवाब देना चाहिए, लेकिन सर्वदलीय बैठक और संसद के विशेष सत्र की हमारी मांग मोदी की सख्त बातों के आगे फीकी पड़ जाती है।
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कांग्रेस ने उठाए थे सवाल
इस प्रक्रिया में इस मुद्दे पर अलग-अलग आवाजें न उठाने का पार्टी का संकल्प कमजोर पड़ गया है। मंगलवार को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में बोलते हुए वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उसने एक सुनहरा मौका हाथ से जाने दिया।
पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि अज़रबैजान और तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। दूसरे देशों, हमारे पड़ोसियों को हमारा समर्थन करना चाहिए था। प्रधानमंत्री को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। सरकार ने नैतिक अधिकार और नैतिक साहस खो दिया है। हमारे पास पाकिस्तान में आतंकवाद को हमेशा के लिए मिटाने का मौका था। छह महीने बाद, वे (आतंकवादी) वापस आ जाएंगे। यह प्रधानमंत्री और देश के लिए एक सुनहरा मौका था। उसको हमने खो दिया, युद्ध विराम कर दिया।
बीजेपी द्वारा आयोजित तिरंगा यात्रा को भी एक घबराई हुई पार्टी की प्रतिक्रिया करार दिया। मोदी सरकार के खिलाफ इस जोरदार प्रतिरोध का समर्थन करने वाले एक नेता ने तर्क दिया कि अचानक युद्ध विराम के बारे में जनता पार्टी की भावनाओं से सहमत है। हमें यह बात समझाने की जरूरत है कि सरकार को अमेरिका के दबाव में युद्ध विराम के लिए सहमत होना पड़ा।