कश्‍मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर सरकारें भले ही बड़े-बड़े दावे करती हों, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले 25 साल में सिर्फ एक ही परिवार घाटी में लौट सका है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है। 90 के दशक में जब जम्‍मू-कश्‍मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था, तब करीब 4.5 लाख कश्‍मीरी पंडित घाटी छोड़कर चले गए थे। इन्‍हें फिर से घाटी में बसाने के लिए केंद्र सरकार ने 2008 में योजना बनाई, जिसके तहत जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार को 1600 करोड़ का पैकेज दिया गया। मोदी सरकार ने भी कश्‍मीरी पंडितों की घर वापसी को अपनी प्राथमिकता बताया है। इस समय जम्‍मू-कश्‍मीर में भाजपा-पीडीपी के साथ मिलकर सरकार चला रही है, इसके बाद भी हालात जस के तस हैं।

जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार की ओर से वकील सुनील फर्नांडिस ने सुप्रीम कोर्ट में जो एफिडेविट दिया है, उसमें राज्‍य सरकार ने माना है कि कश्‍मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर अभी तक किए गए सारे प्रयास विफल रहे हैं। सरकार ने यह भी बताया कि उन्‍होंने घाटी में लौटने की इच्‍छा रखने वाले लोगों से एप्‍लिकेशन मंगवाई थीं। करीब 6501 लोगों ने इच्‍छा भी जताई, लेकिन सिर्फ एक ही परिवार लौट सका। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने राज्‍य सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि कश्‍मीरी पंडितों के पलायन के बाद उनके घर बेच दिए गए। क्‍या आपने किसी एक घर की बिक्री को अवैध करार दिया? गौरतलब है कि जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि 1990 से से 1997 के बीच बेची गई प्रॉपर्टी को वह अवैध करार देगी, लेकिन अभी तक वह ऐसा करने में नाकाम रही है।

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