प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल इन्हीं दिनों में 2022 तक शहरों में रहने वाले सभी गरीबों को मकान देने के मकसद से प्रधानमंत्री आवास योजना लॉन्च की थी। इसके तहत हर साल 30 लाख मकान बनने थे लेकिन पिछले एक साल में केवल 1623 मकान बनाए गए। यहां तक कागजों में भी 25 जून 2016 तक केवल 7 लाख मकान बनाने की ही मंजूरी दी गई। 1623 मकानों में से 718 छत्तीसगढ़ में, 823 गुजरात में बनाए गए हैं। ये मकान अफॉर्डेबल हाउसिंग की सब स्कीम की के तहत बनाए गए हैं। आवास योजना में चार अलग स्कीम्स हैं। इसमें 1.50 लाख रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिल्डर, सरकार को सब्सिडी दी जाती है। तमिलनाडु में 82 मकान बनाए गए हैं। ये मकान लाभार्थी को 1.50 लाख रुपये की आर्थिक मदद के जरिए बनाए गए हैं।
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योजना की तीसरी स्कीम के तहत छह लाख रुपये तक के होम लोन पर 6.5 प्रतिशत की ब्याज दर होती है। इसके तहत 7700 लोगों को मदद मिली है। झुग्गियों का पुनर्विकास स्कीम का सबसे बुरा हाल रहा। इसमें एक भी मकान नहीं बना है। इसके तहत बिल्डर्स झुग्गियों के विकास का बेड़ा उठाएंगे और लोगों को बसाएंगे। इसके बाद जो जमीन बच जाएगी उस पर वे निर्माण कर बाजार रेट पर बेच सकेंगे। यह गुजरात और मुंबई के मॉडल पर आधारित है। हाउसिंग सेक्टर से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना प्राइवेट सेक्टर पर काफी आश्रित है। इससे पहले यूपीए सरकार की राजीव गांधी आवास योजना में प्रोजेक्ट कोस्ट की 50-75 फीसदी राशि सरकार वहन करती, बाकी का राज्य सरकार और नाममात्र की राशि लाभार्थी को देनी होती थी। लेकिन एनडीए सरकार ने इस योजना को रद्द कर दिया।
यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन के चंदन दास बताते हैं, ”दिल्ली और मुंबई समेत कई छोटे शहरों में भी एक से डेढ़ लाख रुपये की केंद्रीय मदद अपर्याप्त है। राज्यों की अपनी प्राथमिकता है और वे इस योजना के लिए पर्याप्त फंड नहीं दे सकते। यह योजना प्राइवेट बिल्डर्स पर आश्रित है।” शुरुआत में इस योजना में प्रस्ताव रखा गया था कि मकान किराए पर भी दिए जाएंगे। लेकिन प्रधानमंत्री ने मकान के मालिकाना हक पर जोर दिया। इसके बाद किराए वाली बात हटा दी गई। 2013 में हाउसिंग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार गरीबों के पास मकान खरीदने जितनी बचत नहीं होती है इसलिए सस्ते किराए के मकान अच्छा विकल्प है।
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उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों ने तो इस योजना पर काम भी शुरू नहीं किया है। वहीं उत्तर-पूर्वी और केंद्रशासित प्रदेशों में निराशाजनक रूप से काम हुआ है। एक अधिकारी ने बताया कि कई राज्यों ने राजनीतिक कारणों से इस पर काम नहीं किया।