एक देश-एक चुनाव (One Nation One Election) के लिए रोडमैप तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित समिति ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंप दी। 18,626 पेज की यह रिपोर्ट आठ खंडों में है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली यह उच्च स्तरीय समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है।
लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं को लेकर बनी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। जानकारी के मुताबिक, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए एक ठोस मॉडल की सिफारिश की है।
191 दिनों के रिसर्च वर्क का परिणाम
यह रिपोर्ट 2 सितंबर 2023 को समिति के गठन के बाद से हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ चर्चा और 191 दिनों के रिसर्च वर्क का परिणाम है। समिति ने कहा है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, जिसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं।
एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश
सूत्रों के अनुसार, इसमें लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश की गयी है। साथ ही एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश भी की गयी है। प्रस्तावित रिपोर्ट लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एकल मतदाता सूची पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सितंबर 2023 में गठित समिति को मौजूदा संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावनाएं तलाशने और सिफारिशें करने का काम सौंपा गया है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी शामिल हैं। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी समिति का सदस्य बनाया गया था लेकिन उन्होंने समिति को पूरी तरह से छलावा करार देते हुए मना कर दिया था।
जर्मन मॉडल पर भी बहस
सूत्रों के मुताबिक, कमेटी ने जर्मन मॉडल ऑफ कंस्ट्रक्टिव वोट ऑफ नॉन कॉन्फिडेंस पर भी बहस की। जहां पदधारी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन इसकी सिफारिश न करने के खिलाफ फैसला किया गया। एक सूत्र ने कहा कि पैनल ने इसे भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ पाया।
समिति ने चुनाव आयोग (EC) को कम से कम दो बार बैठक के लिए पत्र लिखा था लेकिन चुनाव आयोग ने समिति से मुलाकात नहीं की और अपनी लिखित प्रतिक्रिया भेज दी। समिति ने एक साथ चुनावों के व्यापक आर्थिक प्रभाव के साथ-साथ अपराध दर और शिक्षा परिणामों पर प्रभाव की भी जांच की।
(Story By- Damini Nath)