एक देश एक चुनाव को सरकार काफी गंभीर दिखाई दे रही है। कुछ दिन पहले जिस मुद्दे पर सिर्फ चर्चा की जा रही थी, अब कमेटी का ऐलान भी कर दिया गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह के साथ सात और नेताओं को जगह दी गई है।

कमेटी में कौन-कौन शामिल?

अमित शाह के साथ इस कमेटी में अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आज़ाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे को शामिल किया गया है। संजय कोठारी को भी इस महत्वपूर्ण कमेटी का एक हिस्सा बनाया गया है। अब ये सभी एक देश एक चुनाव वाली प्रक्रिया पर मंथन करने वाले हैं, रामनाथ कोविंद की अगुवाई में इनकी तरफ से एक रूपरेखा तैयार की जाएगी, तमाम पहलुओं पर चर्चा भी देखने को मिल जाएगी।

जानकारी के लिए बता दें कि 18 से 22 सितंबर को संसद का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। ऐसी अटकलें हैं कि उस सत्र के दौरान सरकार एक देश एक चुनाव को लेकर बिल पेश कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो ये अपने आप में एक बड़ा रीफॉर्म साबित हो जाएगा। असल में एक देश एक चुनाव कोई अभी का मुद्दा नहीं है, कई सालों से इस पर चर्चा चल रही है। कई सरकारों के दौरान ये मुद्दा उठा भी है, लेकिन हर बार सहमति नहीं बनने की वजह से बात अटक जाती है।

आज का नहीं, पुराना है ये मुद्दा

सबसे पहले 1983 मे चुनाव आयोग ने साथ में चुनाव करवाने की बात की थी, फिर 1999 में जीवन रेड्डी की अगुवाई वाली LAW COMMISSION ने इस कॉन्सेप्ट की पैरवी की। इसके बाद 2015 में संसद की STANDING COMMITTE ने भी इस सुझाव को पसंद किया और फिर 2018 में LAW COMMISSION ने कदम पर लोगों की राय मांगी थी। वैसे समय-समय पर पीएम नरेंद्र मोदी भी इस प्रक्रिया का स्वगात कर चुके हैं। उनका हर बार तर्क रहा है कि पूरे समय चुनावी मोड में रहने की वजह से सरकार के कामकाज पर भी असर पड़ता है। कई राज्यों में आचार संहिता लग जाती है, जिस वजह से कई प्रोजेक्ट अटक जाते हैं।

किसे फायदा किसे नुकसान?

अभी तक विपक्ष के नेताओं ने सरकार की इस मुहिम में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है, लेकिन अगर ऐसी कोई प्रक्रिया लागू हो जाती है तो उस स्थिति में क्षेत्रीय पार्टियों के सामने ज्यादा चुनौतियां आएंगी, वहीं राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कई दूसरे विकल्प भी खुल जाएंगे।